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कारगिल विजय: 21 वर्षीय शहीद कैप्टन सुमित रॉय की कहानी देशवासियों के लिए प्रेरणा - कैप्टन सुमित रॉय की कहानी

कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले 21 वर्षीय कैप्टन सुमित रॉय की कहानी काफी प्रेरणादायक है. उनकी मां ने ईटीवी भारत से खास बातचीत कर अपनी भावनाएं और विचार साझा किए.

martyr Captain Sumit Roy
शहीद कैप्टन सुमित रॉय
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Published : Jul 23, 2020, 6:05 PM IST

नई दिल्ली: कारगिल युद्ध में देश के कई वीर जवान, देश की सुरक्षा के लिए अपना बलिदान देकर भारत के इतिहास में अमर हो गए. ऐसे ही एक वीर जवान की कहानी आज ईटीवी भारत आपके लिए लेकर आया है. 3 जुलाई 1999 को द्रास में दुश्मनों का सीना छलनी करते हुए अपने देश के लिए शहीद होने वाले कैप्टन सुमित रॉय की बहादुरी और देश प्रेम आज भी सब के दिलों में जिंदा है.

शहीद कैप्टन सुमित रॉय की मां से खास बातचीत

कैप्टन सुमित रॉय 12 दिसंबर 1998 में फौज में भर्ती हुए थे और 18 गढ़वाल राइफल्स में कमिशंड हुए थे. जिनकी पहली पोस्टिंग कुपवाड़ा में हुई थी, लेकिन कारगिल युद्ध छिड़ने के बाद उन्हें द्रास भेज दिया गया. जिस दौरान उन्होंने और उनकी टीम में शामिल अन्य सैनिकों ने पाकिस्तानी फौज को भगाने के लिए ना सिर्फ गोलियों का इस्तेमाल किया था, बल्कि हाथ से लड़ाई करके भी उन्हें भगाया था.

पाकिस्तानी सैनिकों को किया था ढेर

शहीद कैप्टन सुमित की मां ने बताया कि उन्हें उनकी इस बहादुरी के लिए भारत सरकार द्वारा वीर चक्र से सम्मानित भी किया गया. उस दौरान सुमित ने 21 साल की आयु में ही 4700 के पॉइंट पर पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर किया था.

कैप्टन सुमित की मां ने बताया कि उनका बड़ा बेटा भी आर्मी में सर्वे ऑफिसर के पद पर तैनात है. उन्होंने कहा-

मेरा छोटा बेटा नहीं रहा. इस दुख से कहीं ज्यादा इस बात की खुशी है कि मेरे बेटे ने अपने देश, अपनी मिट्टी के लिए खुद को न्योछावर कर दिया, ताकि देश में सुरक्षा बनी रहे और हमारा देश आजाद रहे.

नई दिल्ली: कारगिल युद्ध में देश के कई वीर जवान, देश की सुरक्षा के लिए अपना बलिदान देकर भारत के इतिहास में अमर हो गए. ऐसे ही एक वीर जवान की कहानी आज ईटीवी भारत आपके लिए लेकर आया है. 3 जुलाई 1999 को द्रास में दुश्मनों का सीना छलनी करते हुए अपने देश के लिए शहीद होने वाले कैप्टन सुमित रॉय की बहादुरी और देश प्रेम आज भी सब के दिलों में जिंदा है.

शहीद कैप्टन सुमित रॉय की मां से खास बातचीत

कैप्टन सुमित रॉय 12 दिसंबर 1998 में फौज में भर्ती हुए थे और 18 गढ़वाल राइफल्स में कमिशंड हुए थे. जिनकी पहली पोस्टिंग कुपवाड़ा में हुई थी, लेकिन कारगिल युद्ध छिड़ने के बाद उन्हें द्रास भेज दिया गया. जिस दौरान उन्होंने और उनकी टीम में शामिल अन्य सैनिकों ने पाकिस्तानी फौज को भगाने के लिए ना सिर्फ गोलियों का इस्तेमाल किया था, बल्कि हाथ से लड़ाई करके भी उन्हें भगाया था.

पाकिस्तानी सैनिकों को किया था ढेर

शहीद कैप्टन सुमित की मां ने बताया कि उन्हें उनकी इस बहादुरी के लिए भारत सरकार द्वारा वीर चक्र से सम्मानित भी किया गया. उस दौरान सुमित ने 21 साल की आयु में ही 4700 के पॉइंट पर पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर किया था.

कैप्टन सुमित की मां ने बताया कि उनका बड़ा बेटा भी आर्मी में सर्वे ऑफिसर के पद पर तैनात है. उन्होंने कहा-

मेरा छोटा बेटा नहीं रहा. इस दुख से कहीं ज्यादा इस बात की खुशी है कि मेरे बेटे ने अपने देश, अपनी मिट्टी के लिए खुद को न्योछावर कर दिया, ताकि देश में सुरक्षा बनी रहे और हमारा देश आजाद रहे.

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