नई दिल्ली: एशिया की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ में कैदियों के जीवन को सुधारने के लिए प्रशासन द्वारा कई काम किये जाते हैं. तिहाड़ प्रशासन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में हाईकोर्ट की जज मुक्ता गुप्ता ने बताया कि तिहाड़ प्रशासन को कैदियों के जीवन में बदलाव के लिए क्या कदम उठाने की आवश्यकता है.
हाईकोर्ट की जज मुक्ता गुप्ता ने कहा कि आज न केवल जेल बल्कि जेल के बाहर भी लोग मानसिक बीमारी से परेशान हैं. शारीरिक बीमारी के लक्षण पता लग जाते हैं और उसका उपचार हो जाता है. लेकिन मानसिक बीमारी का जल्दी पता ही नहीं लग पाता. ऐसे में जेल की चारदीवारी के भीतर रहने वाले कैदियों की मानसिक स्थिति को समझने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि जेल प्रशासन ने इसके लिए बकायदा प्रोफेशनल, साइकेट्रिक एवं काउंसलर रखे हुए हैं. लेकिन इनके अलावा भी कुछ अन्य कार्य तिहाड़ प्रशासन को उठाने चाहिए.
यह कदम उठाने से आएगा बड़ा बदलाव
जज मुक्ता गुप्ता ने कहा कि सबसे पहले जेल में कैदियों की अधिकारी तक पहुंच होनी चाहिए. उनके पास यह अधिकार होना चाहिए कि वह अधिकारी से मिलकर अपनी समस्या बता सकें. दूसरा उनकी देखभाल करने वाले लोग होने चाहिए जिससे वह अंदर अच्छा माहौल देखें.
प्रशासन को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जेल के भीतर अफवाह न फैले. इसके अलावा जेल में बंद कैदी को यह चिंता होती है कि बाहर निकलने के बाद उसका क्या होगा. कई लोगों को जेल के भीतर पढ़ाया जाता है, लेकिन इससे उनके पास कोई हुनर नहीं आता. इसलिए तिहाड़ प्रशासन को चाहिए कि वह कोई ऐसा कोर्स बनाएं जिसमें पढ़ाई के साथ-साथ कैदी को कोई काम भी सीखने को मिले. इससे वह न केवल जेल से बाहर निकलने पर खुश रहेगा बल्कि अपराध से भी दूर रहेगा.
लंबी सुनवाई डिप्रेशन का बड़ा कारण
जज मुक्ता गुप्ता ने यह माना कि कैदियों में डिप्रेशन का एक बड़ा कारण उनके मामले की लंबी सुनवाई होना है. जेल में कई वर्षों तक कैदी बंद रहते हैं और उनकी सुनवाई धीमी रफ्तार से चलती रहती है. उन्होंने माना कि न्यायिक प्रक्रिया को रफ्तार नहीं मिल पा रही है.
उन्होंने बताया कि उनके पास आने वाले मामलों में उन्होंने ऐसे कैदियों को हाईकोर्ट में बुलाया जो ज्यादा समय से जेल में बंद हैं. उन्होंने ऐसे कैदियों को पांच से दस मिनट तक सुना और पाया कि वह अपनी बात कहने के बाद काफी खुश महसूस करते हैं. जज मुक्ता गुप्ता ने जेल प्रशासन, न्यायिक अधिकारी, अधिवक्ता, एनजीओ से अपील की कि वह कम से कम कैदियों की बात अवश्य सुनें. इससे उनके भीतर का तनाव कम हो जाएगा.