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प्रवासी दिवस विशेष: हुनर सीख बने आत्मनिर्भर, इस संस्था ने उठाया शिक्षित करने का बीड़ा - सेहरो इंडिया संचालक सुरजीत सिंह बच्चों को शिक्षा

सेहरो इंडिया एनजीओ दिल्ली में प्रवासी मजदूरों के बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहा है. इस पहल से जहां बच्चे खुश हैं, वहीं वह नए हुनर सीखकर आत्मनिर्भर भी बन रहे हैं.

Skill learning becomes self-sufficient
हुनर सीख बने आत्मनिर्भर
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Published : Dec 18, 2020, 5:20 PM IST

नई दिल्ली: प्रवासी गरीब मजदूर अपने-अपने घर बार को छोड़कर राजधानी दिल्ली की ओर पलायन कर लेते हैं. उन्हें यही उम्मीद रहती है कि राजधानी दिल्ली में उनके हालात बदल जाते हैं. कुछ लोगों के हालात तो वास्तव में बदल जाते हैं, लेकिन कुछ लोगों के हालात जस के तस बने रहते हैं और जो प्रवासी रहने के लिए घरों का किराया नहीं उठा सकते वे लोग दिल्ली के अलग–अलग इलाके में झुग्गियां बनाकर रहते हैं.

हुनर सीख बने आत्मनिर्भर.

पति मजदूरी करता है तो उसकी पत्नी कोठियों में काम. मां-बाप के सामने आर्थिक तंगी होने की वजह से वे लोग अपने बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा पाते.

'गरीब बच्चों को पढ़ाने का उठाया बीड़ा'

इन्हीं सब को देखते हुए कानपुर के रहने वाले सेहरो इंडिया एनजीओ के संचालक सुरजीत ने ये निश्चय किया कि वे गरीब बच्चों को पढ़वाने का काम करेंगे साथ ही स्लम एरिए में रहने वाले बच्चों को अतिरिक्त ज्ञान देकर उन्हें शिक्षित करने का काम करेंगे और वे बीते कई महीनों से कर भी रहे हैं.

शिक्षा पाकर बच्चे भी हैं खुश

स्थानीय लोग बतातें हैं कि उन्हें झुग्गियों मे रहते हुए 30 साल हो गए. लेकिन इस तरीके का प्रयास किसी ने नहीं किया कि गरीब बच्चों को पढ़ाया जाए जिससे वे भी आगे अपनी जिंदगी में तरककी कर सकें. साथ ही स्थानीय लोगों का यही मानना है कि जब से सेहरो इंडिया के माध्यम से बच्चों को शिक्षा दी जा रही है तब से बच्चे काफी खुश हैं.

ये भी पढ़ें- प्रवासी दिवस विशेष: मजदूरों को अब भी है रोटी का संकट, रोजी का अनलॉक कब?

लॉकडाउन खुलते ही शुरू हुईं वर्कशॉप

बच्चों को पढ़ाने वाली टीचर ईटीवी भारत को बताती हैं कि सप्ताह में 2 दिन का वर्क शॉप चलाया जा रहा है और अलग- अलग जगहों पर बैठाकर करीब 400 बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है. वहीं सेहरो इंडिया के संचालक सुरजीत सिंह बताते हैं कि 3 स्लम इलाके में 2 वर्क शॉप करा देते हैं. लॉकडाउन में बच्चे कैद हो गए थे.

सुरजीत बताते हैं कि बच्चों की समस्या को देखते हुए उनके लिए इन्होंने शिक्षित करने का काम कर रहे हैं. वसंत विहार नेपाली कैंप, भंवर सिंह कैंप और मुनिरका स्लम में वर्कशॉप चल रहा है. बच्चों को खाने के साथ साथ हर एक जरूरत के सामान दे रहे हैं और वे स्पोकन इंगलिश और कम्प्यूटर सिखा रहे हैं वे 140 लोगों के नौकरी दिला चुके हैं.

नई दिल्ली: प्रवासी गरीब मजदूर अपने-अपने घर बार को छोड़कर राजधानी दिल्ली की ओर पलायन कर लेते हैं. उन्हें यही उम्मीद रहती है कि राजधानी दिल्ली में उनके हालात बदल जाते हैं. कुछ लोगों के हालात तो वास्तव में बदल जाते हैं, लेकिन कुछ लोगों के हालात जस के तस बने रहते हैं और जो प्रवासी रहने के लिए घरों का किराया नहीं उठा सकते वे लोग दिल्ली के अलग–अलग इलाके में झुग्गियां बनाकर रहते हैं.

हुनर सीख बने आत्मनिर्भर.

पति मजदूरी करता है तो उसकी पत्नी कोठियों में काम. मां-बाप के सामने आर्थिक तंगी होने की वजह से वे लोग अपने बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा पाते.

'गरीब बच्चों को पढ़ाने का उठाया बीड़ा'

इन्हीं सब को देखते हुए कानपुर के रहने वाले सेहरो इंडिया एनजीओ के संचालक सुरजीत ने ये निश्चय किया कि वे गरीब बच्चों को पढ़वाने का काम करेंगे साथ ही स्लम एरिए में रहने वाले बच्चों को अतिरिक्त ज्ञान देकर उन्हें शिक्षित करने का काम करेंगे और वे बीते कई महीनों से कर भी रहे हैं.

शिक्षा पाकर बच्चे भी हैं खुश

स्थानीय लोग बतातें हैं कि उन्हें झुग्गियों मे रहते हुए 30 साल हो गए. लेकिन इस तरीके का प्रयास किसी ने नहीं किया कि गरीब बच्चों को पढ़ाया जाए जिससे वे भी आगे अपनी जिंदगी में तरककी कर सकें. साथ ही स्थानीय लोगों का यही मानना है कि जब से सेहरो इंडिया के माध्यम से बच्चों को शिक्षा दी जा रही है तब से बच्चे काफी खुश हैं.

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लॉकडाउन खुलते ही शुरू हुईं वर्कशॉप

बच्चों को पढ़ाने वाली टीचर ईटीवी भारत को बताती हैं कि सप्ताह में 2 दिन का वर्क शॉप चलाया जा रहा है और अलग- अलग जगहों पर बैठाकर करीब 400 बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है. वहीं सेहरो इंडिया के संचालक सुरजीत सिंह बताते हैं कि 3 स्लम इलाके में 2 वर्क शॉप करा देते हैं. लॉकडाउन में बच्चे कैद हो गए थे.

सुरजीत बताते हैं कि बच्चों की समस्या को देखते हुए उनके लिए इन्होंने शिक्षित करने का काम कर रहे हैं. वसंत विहार नेपाली कैंप, भंवर सिंह कैंप और मुनिरका स्लम में वर्कशॉप चल रहा है. बच्चों को खाने के साथ साथ हर एक जरूरत के सामान दे रहे हैं और वे स्पोकन इंगलिश और कम्प्यूटर सिखा रहे हैं वे 140 लोगों के नौकरी दिला चुके हैं.

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