नई दिल्ली: दिल्ली के ईस्ट ऑफ कैलाश इलाके में स्थित आर्य ऑडिटोरियम में दिल्ली गण परिषद द्वारा गुरुवार को विमुक्त जाति दिवस पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें विमुक्त जातियों के मांगो पर चर्चा करने के साथ स्वतंत्रता संग्राम में इन जातियों के योगदान की चर्चा की गई. इस दौरान बताया गया कि इन जाति के लोगों ने ब्रिटिश राज्य का विरोध किया था, जिसके कारण इन्हें ब्रिटिश सरकार ने अपराधी जातियों के श्रेणी में शामिल कर दिया गया था. साथ ही उन पर ब्रिटिश सरकार कई तरह की पाबंदी लगाने के साथ सजा भी सुनाई गई थी. इस श्रेणी को भारत की आजादी के पांच साल बाद 1952 में खत्म कर दिया गया.
गोष्ठी में कहा गया कि इन जातियों की मांगों पर विचार नहीं किया गया जो अब तक लंबित है, उन्हीं मांगों को लेकर गोष्ठी का आयोजन किया गया है. इसमें 1857 के प्रथम स्वतंत्रता क्रांति की विमुक्त जातियों के उत्थान के लिए भारत सरकार द्वारा गठित ईदाते कमिशन की सिफारिशों को दिल्ली में कैसे लागू कराया जाए, इसपर गहन चर्चा की गई.
इस दौरान आयोजक रोमी भाटी ने बताया कि डीनोटिफाइड ट्राइब्स के मुद्दे पर उम्मीद से ज्यादा लोग वक्ताओं को सुनने के लिए पहुंचे. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा गठित की गई कमेटी की अध्यक्षता करने वाले बीआर इदाते ने अपने 10 साल के रिसर्च से अवगत करवाया. गोष्ठी में आए सभी जन प्रतिनिधियों को हमने एक डिमांड लेटर दिया और निवेदन किया कि और निवेदन किया कि वो इन मांगों को पूरा करने में सहायक बनें.
वहीं दिल्ली गण परिषद के संयोजक धर्मबीर सिंह बसोया ने कहा की अब हम सही तरीके से इस मुहिम को आगे ले जाएंगे. इसके लिए सरकार से भी सिफारिश की जाएगी. इस श्रेणी में दिल्ली की 29 जातियां हैं, जिनकी कई मांगे सालों से लंबित हैं. हम इसे लेकर भी आंदोलन करेंगे. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सांसद डॉ के. लक्ष्मण भी दिल्ली आए और मुहिम में हरसंभव मदद देने के लिए प्रतिबद्धता जताई.
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बता दें कि भारत के 1857 के विद्रोह में जिन जातियों ने ब्रिटिश सरकार का जमकर विरोध किया गया था, उन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने 1871 में क्रिमिनल ट्राइब एक्ट बनाकर आपराधिक घोषित कर दिया था. इसके बाद भारत जब 1947 में आजाद हुआ तो देश में 193 ऐसी जातियां थी. 1952 में भारत सरकार ने उन्हें आपराधिक श्रेणी से मुक्त कर दिया था. इनमें से 29 जातियां दिल्ली की रहने वाली थी.
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