नई दिल्लीः राजधानी में लोकसभा की सातों सीटों पर मतदान हो चुके हैं. यहां पर वोटिंग प्रतिशत 60.50 फ़ीसदी रहा, जबकि पिछली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत 65 फ़ीसदी तक था, यानी इस बार लगभग 5% कम मतदान हुए हैं. अब राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मुकाबला टक्कर का होगा.
बता दें कि उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में सबसे ज्यादा वोटर हैं, पर यहां सिर्फ 59% मतदान ही हुआ है. जबकि नई दिल्ली सीट पर सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मतदाताओं की संख्या है, वहां पर 56% केवल मतदान हुआ. ये आंकड़ा हैरान कर देने वाला है.
वहीं वोटिंग प्रतिशत कम होने के पीछे एक तर्क दिया जा रहा है कि सुबह से ही बहुत जगहों पर वीवीपैट की मशीन काम नहीं कर रही थी. जिसके कारण लंबी-लंबी कतारें लग गई और बिना वोट दिये बहुत से मतदाता वापस लौट गए. वहीं मशीनों को आने में काफी ज्यादा समय लग गया, जिसकी वजह से काफी बड़ी तादात में लोगों ने वोट नहीं किया.
7 करोड़ चुनाव आयोग ने किया खर्च
हालांकि इस बार मतदान केंद्रों पर लोगों के बैठने, पानी पीने और बच्चों की देखभाल के लिए तमाम तरह की सुविधाएं दी गई थी लेकिन उसके बावजूद भी वोटिंग के लिए लोगों में वह उत्साह नहीं दिखा. यहां गौर करने वाली बात ये है कि इस बार दिल्ली के मतदाताओं को जागरूक करने के लिए चुनाव आयोग ने भी सात करोड़ जैसी मोटी रकम खर्च की थी. इसके बावजूद वोटिंग प्रतिशत कम हो गई.
कोई हिंसक घटना नहीं हुई
इस बीच अच्छी बात ये रही कि दिल्ली में कोई हिंसक घटना नहीं हुई. वैसे चुनाव आयोग ने दिल्ली में मॉडल पोलिंग बूथ भी बनाया था, जिसका उदाहरण पिंक पोलिंग बूथ था. जो तारीफ के काबिल है लेकिन ये सुविधाएं भी मतदान प्रतिशत को बढ़ाने में मददगार साबित नहीं हुई. हालांकि अब दिल्ली के सभी राजनीतित दलों को 23 मई को आने वाले नतीजों इंतजार है.