नई दिल्लीः सफदरजंग अस्पताल में एक 30 वर्षीय युवक को गलत सर्जरी कर विकलांगता की कगार पर पहुंचा दिया गया है. अपने पैरों पर चलकर स्पाइन की सर्जरी कराने के लिए अनिल रावत सफदरजंग अस्पताल गए थे. वहां सर्जन डॉक्टर दीपांकर ने की सर्जरी के 8 महीने बाद भी वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहे हैं. उनकी हालत पहले से भी काफी बदतर हो गई है.
'सर्जरी के बाद रावत की बिगड़ी हालात'
अनिल रावत पिछले एक साल से स्पाइनल प्रॉब्लम से जूझ रहे थे. एम्स में उनका इलाज चल रहा था. इसी बीच लॉक डाउन लग गया और उनका इलाज बीच में ही रुक गया. एम्स के डॉक्टर ने रावत को 26 मार्च 2020 को स्पाइन की सर्जरी की डेट दी थी, लेकिन 25 मार्च से लॉक डाउन लग गया और उनकी सर्जरी अनिश्चित काल के लिए टल गई. जब ज्यादा समस्या बढ़ गई तो सफदरजंग अस्पताल में दिखाया.
डॉ. दीपांकर ने उनकी स्पाइनल कॉर्ड की सर्जरी की तारीख 8 जून तय की और इसी तारीख को उनकी सर्जरी हो गई. सर्जरी के बाद डॉक्टर दीपांकर ने रावत को बताया कि वो एक महीने में ही अपने पैरों पर चलने लगेंगे, लेकिन 8 महीने बाद उनकी हालत पहले से भी ज्यादा खराब हो गई है. पीडित अनिल रावत ने आरोप लगाया कि सर्जरी के समय डॉ. दीपांकर ने अच्छी क्वालिटी के स्क्रू लगाने के लिए लगभग डेढ़ से दो लाख का खर्च बताया. लेकिन डॉक्टर ने एक अनजान वेंडर से सस्ती क्वालिटी की स्क्रू लेकर उनके स्पाइनल कॉर्ड में लगा दिया.
'8 महीने बाद हालात हुई खराब'
अनिल ने बताया कि सर्जरी के समय उन्हें संदेह हुआ कि सर्जरी में सस्ती क्वालिटी का स्क्रू इस्तेमाल किया जा रहा है. इसको लेकर डॉ. दीपांकर से अपनी आशंका भी व्यक्त की क्या यह उनकी बेहतर स्वास्थ्य के लिए ठीक रहेगा? इस पर डॉ. दीपांकर ने उन्हें आश्वासन दिया था कि स्पाइनल कॉर्ड की सर्जरी के बाद बिल्कुल स्वस्थ महसूस करेंगे. लेकिन सर्जरी के 8 महीने पूरे होने के बाद अनिल अपने पैरों पर खड़ा तो नहीं हो पाए, बल्कि उनकी हालत और भी खराब हो गई है.
'डॉक्टर ने लिए 60 हजार रुपये नकद'
अनिल ने आरोप लगाया कि वह अपनी समस्या को लेकर डॉक्टर दीपांकर से दिखाने ओपीडी जाते हैं, तो वहां उन्हें डॉक्टर नहीं मिलते. जब इमरजेंसी में उनसे मिलने जाते हैं, तो वहां बुरी तरह से डांट देते हैं. अनिल ने कहा कि डॉ. दीपांकर ने उनसे 60 हजार रुपये नकद ले लिया और सस्ती स्क्रू लगा दिया. आज उनकी हालत सर्जरी से पहले की स्थिति से भी बहुत खराब हो गई है.