नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में मिनी बंगाल कहे जाने वाले चितरंजन पार्क (सीआर पार्क) में आगामी दुर्गा पूजा की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं. सीआर पार्क में स्थित कालीबाड़ी मंदिर में मां दुर्गा की मूर्तियां बनाने वाले मूर्तिकार गोविंदा का कहना है कि हर बार की तरह इस बार भी पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर मां की मूर्तियां बनाई गई हैं.
साथ ही उन्होंने कहा कि इस बार ट्रैफिक नियमों में हुई सख्ती और महंगाई का असर मां की मूर्ति पर भी देखने को मिल रहा है.
4 महीने पहले से बनती हैं मूर्तियां
बता दें कि सीआर पार्क में होने वाली दुर्गा पूजा केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है. यहां लगने वाले पंडाल के लिए भव्य मूर्तियां बनाने का काम नवरात्रि के चार माह पहले से ही शुरू हो जाता है. सीआर पार्क स्थित कालीबाड़ी मंदिर में मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार गोविंदा ने बताया कि हर साल की तरह इस साल भी दुर्गा मां की मूर्तियां इको फ्रेंडली बनाई गई हैं जिसमें सबसे ज्यादा प्रयोग गंगा मिट्टी का हुआ है.
'गंगाा मिट्टी से बनती हैं मूर्तियां'
गोविंदा ने बताया कि मूर्ति बनाने में गंगा मिट्टी का खास महत्व है. इसके अलावा हरियाणा से भी मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लाई जाती है. मिट्टी के अलावा लकड़ी, बांस, घास, पराली का भी प्रयोग किया जाता है. उन्होंने बताया कि जिन रंगों से मां की मूर्तियां पेंट की जाती हैं वह भी प्राकृतिक रंग होते हैं जो इमली, फूल और दूसरी चीज़ों से बने होते हैं जिससे पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान ना पहुंचे.
'मूर्तियों के दामों में हुआ इजाफा'
मूर्तिकार गोविंदा का कहना है कि ट्रैफिक नियमों में हुई सख्ती के बाद चालान के डर से कोई ऑटो वाले सामान लाने को राजी नहीं होते जिसके चलते पूरा टेंपो बुक करना पड़ता है जिसमें दुगना खर्चा आ जाता है.
साथ ही उन्होंने कहा कि महंगाई के चलते इस बार मूर्तियों के दाम में भी इजाफा हुआ है. इस बार मूर्तियों की कीमत 15000 से लेकर 60000 तक है.
5 फुट से ज्यादा की मूर्ति नहीं
मूर्तिकार ने कहा कि पहले 10 से 15 फीट तक की मूर्तियां बनाई जाती थी लेकिन सरकार ने अब इस पर रोक लगा दी है.
मूर्ति को भी 5 फुट से ज्यादा बनाने की अनुमति नहीं है लेकिन सरकार का यह फैसला देरी से हुआ. जिसके चलते इस बार पहले की तरह की मूर्ति बनाई जा रही हैं. हालांकि आने वाले समय में केवल 5 फीट की ही मूर्तियां बनाई जाएंगी. गोविंदा ने बताया कि मूर्ति बनाना उनका पुश्तैनी काम है जिसे वह बचपन से करते आ रहे हैं लेकिन अब यह काम कितना आगे बढ़ेगा इसको लेकर उन्हें शंका है. मूर्ति बनाने में मेहनत बहुत ज्यादा लगती है और आमदनी उस हिसाब से बहुत ही कम होती है.
यही कारण है कि उनकी आने वाली पीढ़ी मूर्ति बनाने के काम में रुचि लेती नहीं दिख रही और उन्हें डर है कि उनकी यह मूर्तिकला कहीं उनके साथ ही समाप्त होकर ना रह जाए.
अलग अलग राज्यों में जाती हैं मूर्तियां
मूर्तिकार गोविंदा ने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई मूर्तियां गुरुग्राम, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़, राजस्थान और पंजाब में जाती हैं.
उन्होंने कहा कि पहले उनके द्वारा बनाई गई मूर्ति विदेशों में भी जाती थी लेकिन यातायात की असुविधा और बढ़ती महंगाई के चलते अब केवल भारत में ही अलग-अलग राज्यों में मूर्तियां भेजी जाती हैं.