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NDMC में नोडल अधिकारी श्रीपर्णा चटर्जी को पैनल से हटाने की मांग

एनडीएमसी के वकीलों के पैनल की तरफ से नोडल अधिकारी श्रीपर्णा चटर्जी पैरवी नहीं की. एक भी हियरिंग में शामिल नहीं हो पाई, जिसकी वजह से 12 अक्टूबर 2018 को एनडीएमसी के खिलाफ फैसला सुनाया गया. इतना ही नहीं इसमें एनडीएमसी की तरफ से किसी वकील की शामिल नहीं होने से नाराज होकर कैट ने तत्कालीन एनडीएमसी के सचिव के व उनके खिलाफ अवमानना का मामला भी ठोक दिया.

NDMC worker union Demand
एनडीएमसी वकील पैनल
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Published : Oct 4, 2020, 8:06 AM IST

नई दिल्ली: एनडीएमसी के विभिन्न मुकदमों की पैरवी के लिए लीगल डिपार्टमेंट में 80 से ज्यादा महंगे वकील हायर किए गए हैं, लेकिन वे अपनी जिम्मेदारियों के प्रति उदासीन ही रहते हैं. इसी के कारण एनडीएमसी के कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष ने एक लेटर चेयरमैन को लिखकर लॉ विभाग का नोडल अधिकारी श्रीपर्णा चटर्जी को लीगल पैनल से हटाने की मांग की है.

नोडल अधिकारी को हटाने की मांग

एनडीएमसी के पैनल में रखे गए सीनियर वकीलों की प्रति हियरिंग डेढ़ से दो लाख रुपये दिया जाता है, लेकिन इनके पास जिन अहम मुकदमों की जिम्मेदारी होती है. उनकी हियरिंग में एनडीएमसी का पक्ष कोर्ट में मजबूती से रखने के लिए वो शामिल ही नहीं हो पाते हैं. लिहाजा इन मुकदमों में एनडीएमसी की हार हो जाती है.



NDMC की पैरवी करने कोर्ट नहीं पहुंची नोडल अधिकारी

एनडीएमसी के वकीलों के पैनल में एक वकील है श्रीपर्णा चटर्जी जिन्हें कार्मिक एवं विजिलेंस डिपार्टमेंट की सर्विस मैटर से संबंधित हाईकोर्ट और कैट में लंबित मुकदमों की पैरवी की जिम्मेदारी दी गई. श्रीपर्णा चटर्जी को इन मामलों को देखने के लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त किया गया, लेकिन दिलचस्प ये है कि वो एनडीएमसी की पैरवी के लिए कोर्ट की हियरिंग में शामिल ही नहीं हुई. पिछले 2 साल से चैटर्जी ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं किया. जिसकी वजह से एक के बाद एक एनडीएमसी के खिलाफ कई आर्डर पास किए गए. कुछ मामलों में तो एनडीएमसी के चेयरमैन और सचिव को नोटिस भी जारी किया गया.



आरएमआर कर्मचारी केस मामले में नहीं रख पाई NDMC का पक्ष

एनडीएमसी के एक आरएमआर कर्मचारी ने कैट में एनडीएमसी के खिलाफ अपने नियमितीकरण के लिए दावा ठोका. जबकि उस कर्मचारी को एमडीएमसी ने केस दर्ज करने के बहुत पहले ही नौकरी से निकाल दिया था और उसने खुद को निलंबित किए जाने के खिलाफ केस दर्ज करवाया. इस मामले में एनडीएमसी के वकीलों के पैनल की तरफ से नोडल अधिकारी श्रीपर्णा चटर्जी पैरवी नहीं की. एक भी हियरिंग में शामिल नहीं हो पाई, जिसकी वजह से 12 अक्टूबर 2018 को एनडीएमसी के खिलाफ फैसला सुनाया गया. इतना ही नहीं इसमें एनडीएमसी की तरफ से किसी वकील की शामिल नहीं होने से नाराज होकर कैट ने तत्कालीन एनडीएमसी के सचिव के व उनके खिलाफ अवमानना का मामला भी ठोक दिया.


कोर्ट की हियरिंग में एडवोकेट श्रीपर्णा चटर्जी नहीं हुई शामिल

चटर्जी नोडल अधिकारी की हैसियत से इस केस के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं. उनकी ये जिम्मेदारी थी कि इस केस से जुड़े सभी हियरिंग के साथ-साथ जब इस मामले को रद्द किया जा रहा था. उस समय एनडीएमसी का प्रतिनिधित्व करते हुए कोर्ट में उन्हें मौजूद होना चाहिए था. उनकी इस लापरवाही की वजह से एनडीएमसी की छवि को काफी नुकसान हुआ है, क्योंकि इस केस में एनडीएमसी की तरफ से जो पक्ष रखा जाना था. वो रखा ही नहीं गया. लिहाजा कोर्ट को एकतरफा फैसला देना पड़ा.


आरएमआर/ टीएमआर मामले कैट के तहत नहीं

दूसरी बात ये बताई जा रही है कि आरएमआर और टीएमआर से जुड़े मामले कैट के तहत नहीं आते हैं. ऐसे मामलों के लिए इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल और लेबर कोर्ट जैसी दूसरी संस्थाएं हैं. अगर उस समय वहां एनडीएमसी की वकील श्रीपर्णा चटर्जी मौजूद होती, तो एनडीएमसी की तरफ से अपना पक्ष रखते हुए वो कह सकती थी कि इस मामले में कैट का फैसला उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर का है. ऐसे मामलों की सुनवाई लेबर कोर्ट या इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट ट्रब्यूनल में होनी चाहिए. अगर सिर्फ इतनी बात बोलती तो इस मामले में कैट एनडीएमसी के खिलाफ ना कोई फैसला सुना पाता और नहीं एनडीएमसी सचिव को अवमानना का सामना करना पड़ता.


एनडीएमसी की हुई खूब फजीहत

इसी तरह से एक दूसरे मामले में एनडीएमसी के एक पूर्व कर्मचारी किशोर के मामले में देखा गया, जिन्होंने 4 नवंबर 2019 को अपने निलंबित करने के खिलाफ कैट में केस दर्ज करवाया था. इस केस में किशोर प्रसाद को निलंबित नहीं किया गया था, बल्कि उनकी सर्विस समाप्त की गई थी. अगर इस मामले में कोर्ट में एनडीएमसी की तरफ से कोई वकील अपना पक्ष रखता कि किशोर प्रसाद को इस केस के फाइल होने के पहले ही नौकरी से निकाला जा चुका है, तो कैट की तरफ से एनडीएमसी के खिलाफ फैसला नहीं सुनाया जाता. इसके साथ ही केस में एनडीएमसी की इतनी फजीहत नहीं हुई होती. इस मामले में भी श्रीपर्णा चटर्जी की लापरवाही सामने आई है. ऐसे कई मामले हैं जिसमें लॉ डिपार्टमेंट की नोडल अधिकारी श्रीपर्णा चटर्जी गैर पेशेवर रवैए की वजह से एनडीएमसी की काफी फजीहत हुई.


श्रीपर्णा चटर्जी को पैनल से हटाने की मांग

एनडीएमसी के कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष सुधाकर कुमार ने इस सम्बंध में एक लेटर एनडीएमसी चेयरमैन को लिखकर श्रीपर्णा चटर्जी को लीगल पैनल से हटाने की मांग की है. सुधाकर ने बताया कि ये बात समझ से बाहर है कि ऐसी लापरवाह और गैर पेशेवर वकील एनडीएमसी का प्रतिनिधित्व कैसे कर रही है? उनके खिलाफ पहले भी कई बार शिकायतें मिली थी. वो ठीक से केस को हैंडल नहीं कर पा रही हैं. एनडीएमसी के पक्ष को कोर्ट में नहीं रख पा रही हैं. इसके बावजूद उन्हें दोबारा एनडीएमसी में वकीलों के पैनल में शामिल किया गया.

'श्रीपर्णा चटर्जी को पैनल में रखना कॉउन्सिल के हक में नहीं'

सुधाकर इस मामले को काफी गंभीर मानते हैं और चाहते हैं कि वकीलों के पैनल से श्रीपर्णा चैटर्जी को तुरंत हटाया जाए, क्योंकि चटर्जी को एनडीएमसी की प्रतिष्ठा से कोई लेना देना नहीं है. उन्हें सिर्फ अपनी महंगे फीस से मतलब है. काउंसिल के हक में चटर्जी को तुरंत वकीलों के पैनल से हटाया जाना चाहिए.

नई दिल्ली: एनडीएमसी के विभिन्न मुकदमों की पैरवी के लिए लीगल डिपार्टमेंट में 80 से ज्यादा महंगे वकील हायर किए गए हैं, लेकिन वे अपनी जिम्मेदारियों के प्रति उदासीन ही रहते हैं. इसी के कारण एनडीएमसी के कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष ने एक लेटर चेयरमैन को लिखकर लॉ विभाग का नोडल अधिकारी श्रीपर्णा चटर्जी को लीगल पैनल से हटाने की मांग की है.

नोडल अधिकारी को हटाने की मांग

एनडीएमसी के पैनल में रखे गए सीनियर वकीलों की प्रति हियरिंग डेढ़ से दो लाख रुपये दिया जाता है, लेकिन इनके पास जिन अहम मुकदमों की जिम्मेदारी होती है. उनकी हियरिंग में एनडीएमसी का पक्ष कोर्ट में मजबूती से रखने के लिए वो शामिल ही नहीं हो पाते हैं. लिहाजा इन मुकदमों में एनडीएमसी की हार हो जाती है.



NDMC की पैरवी करने कोर्ट नहीं पहुंची नोडल अधिकारी

एनडीएमसी के वकीलों के पैनल में एक वकील है श्रीपर्णा चटर्जी जिन्हें कार्मिक एवं विजिलेंस डिपार्टमेंट की सर्विस मैटर से संबंधित हाईकोर्ट और कैट में लंबित मुकदमों की पैरवी की जिम्मेदारी दी गई. श्रीपर्णा चटर्जी को इन मामलों को देखने के लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त किया गया, लेकिन दिलचस्प ये है कि वो एनडीएमसी की पैरवी के लिए कोर्ट की हियरिंग में शामिल ही नहीं हुई. पिछले 2 साल से चैटर्जी ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं किया. जिसकी वजह से एक के बाद एक एनडीएमसी के खिलाफ कई आर्डर पास किए गए. कुछ मामलों में तो एनडीएमसी के चेयरमैन और सचिव को नोटिस भी जारी किया गया.



आरएमआर कर्मचारी केस मामले में नहीं रख पाई NDMC का पक्ष

एनडीएमसी के एक आरएमआर कर्मचारी ने कैट में एनडीएमसी के खिलाफ अपने नियमितीकरण के लिए दावा ठोका. जबकि उस कर्मचारी को एमडीएमसी ने केस दर्ज करने के बहुत पहले ही नौकरी से निकाल दिया था और उसने खुद को निलंबित किए जाने के खिलाफ केस दर्ज करवाया. इस मामले में एनडीएमसी के वकीलों के पैनल की तरफ से नोडल अधिकारी श्रीपर्णा चटर्जी पैरवी नहीं की. एक भी हियरिंग में शामिल नहीं हो पाई, जिसकी वजह से 12 अक्टूबर 2018 को एनडीएमसी के खिलाफ फैसला सुनाया गया. इतना ही नहीं इसमें एनडीएमसी की तरफ से किसी वकील की शामिल नहीं होने से नाराज होकर कैट ने तत्कालीन एनडीएमसी के सचिव के व उनके खिलाफ अवमानना का मामला भी ठोक दिया.


कोर्ट की हियरिंग में एडवोकेट श्रीपर्णा चटर्जी नहीं हुई शामिल

चटर्जी नोडल अधिकारी की हैसियत से इस केस के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं. उनकी ये जिम्मेदारी थी कि इस केस से जुड़े सभी हियरिंग के साथ-साथ जब इस मामले को रद्द किया जा रहा था. उस समय एनडीएमसी का प्रतिनिधित्व करते हुए कोर्ट में उन्हें मौजूद होना चाहिए था. उनकी इस लापरवाही की वजह से एनडीएमसी की छवि को काफी नुकसान हुआ है, क्योंकि इस केस में एनडीएमसी की तरफ से जो पक्ष रखा जाना था. वो रखा ही नहीं गया. लिहाजा कोर्ट को एकतरफा फैसला देना पड़ा.


आरएमआर/ टीएमआर मामले कैट के तहत नहीं

दूसरी बात ये बताई जा रही है कि आरएमआर और टीएमआर से जुड़े मामले कैट के तहत नहीं आते हैं. ऐसे मामलों के लिए इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल और लेबर कोर्ट जैसी दूसरी संस्थाएं हैं. अगर उस समय वहां एनडीएमसी की वकील श्रीपर्णा चटर्जी मौजूद होती, तो एनडीएमसी की तरफ से अपना पक्ष रखते हुए वो कह सकती थी कि इस मामले में कैट का फैसला उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर का है. ऐसे मामलों की सुनवाई लेबर कोर्ट या इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट ट्रब्यूनल में होनी चाहिए. अगर सिर्फ इतनी बात बोलती तो इस मामले में कैट एनडीएमसी के खिलाफ ना कोई फैसला सुना पाता और नहीं एनडीएमसी सचिव को अवमानना का सामना करना पड़ता.


एनडीएमसी की हुई खूब फजीहत

इसी तरह से एक दूसरे मामले में एनडीएमसी के एक पूर्व कर्मचारी किशोर के मामले में देखा गया, जिन्होंने 4 नवंबर 2019 को अपने निलंबित करने के खिलाफ कैट में केस दर्ज करवाया था. इस केस में किशोर प्रसाद को निलंबित नहीं किया गया था, बल्कि उनकी सर्विस समाप्त की गई थी. अगर इस मामले में कोर्ट में एनडीएमसी की तरफ से कोई वकील अपना पक्ष रखता कि किशोर प्रसाद को इस केस के फाइल होने के पहले ही नौकरी से निकाला जा चुका है, तो कैट की तरफ से एनडीएमसी के खिलाफ फैसला नहीं सुनाया जाता. इसके साथ ही केस में एनडीएमसी की इतनी फजीहत नहीं हुई होती. इस मामले में भी श्रीपर्णा चटर्जी की लापरवाही सामने आई है. ऐसे कई मामले हैं जिसमें लॉ डिपार्टमेंट की नोडल अधिकारी श्रीपर्णा चटर्जी गैर पेशेवर रवैए की वजह से एनडीएमसी की काफी फजीहत हुई.


श्रीपर्णा चटर्जी को पैनल से हटाने की मांग

एनडीएमसी के कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष सुधाकर कुमार ने इस सम्बंध में एक लेटर एनडीएमसी चेयरमैन को लिखकर श्रीपर्णा चटर्जी को लीगल पैनल से हटाने की मांग की है. सुधाकर ने बताया कि ये बात समझ से बाहर है कि ऐसी लापरवाह और गैर पेशेवर वकील एनडीएमसी का प्रतिनिधित्व कैसे कर रही है? उनके खिलाफ पहले भी कई बार शिकायतें मिली थी. वो ठीक से केस को हैंडल नहीं कर पा रही हैं. एनडीएमसी के पक्ष को कोर्ट में नहीं रख पा रही हैं. इसके बावजूद उन्हें दोबारा एनडीएमसी में वकीलों के पैनल में शामिल किया गया.

'श्रीपर्णा चटर्जी को पैनल में रखना कॉउन्सिल के हक में नहीं'

सुधाकर इस मामले को काफी गंभीर मानते हैं और चाहते हैं कि वकीलों के पैनल से श्रीपर्णा चैटर्जी को तुरंत हटाया जाए, क्योंकि चटर्जी को एनडीएमसी की प्रतिष्ठा से कोई लेना देना नहीं है. उन्हें सिर्फ अपनी महंगे फीस से मतलब है. काउंसिल के हक में चटर्जी को तुरंत वकीलों के पैनल से हटाया जाना चाहिए.

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