नई दिल्लीः वैक्सीन इंडिया डॉट ओआरजी के एडमिनिस्ट्रेटर डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि एमआरएनए बहुत ही नाजुक होता है. यह सामान्य अवस्था में टुकड़ों में टूट जाता है. इसे टूटने से बचाने के लिए एमआरएनए के ऊपर लिपिड का एक लेयर चढ़ा दिया जाता है. इसे टूटना वहीं है, जहां टूटने के लिए इसके प्रोटीन स्पाइक में इंस्ट्रक्शन दिये गए हैं.
इसे आप ऐसे समझ सकते हैं, जैसे हम सैटेलाइट को अंतरिक्ष में छोड़ते हैं, तो सेटेलाइट को जहां लॉन्च करना होता है वहां पहुंचने के बाद यह अपने आप राकेट से इजेक्ट होकर बाहर आ जाता है. एमआरएनए को जिसमें मॉडिफाइड मैसेज छुपा है, उसे टारगेट सेल्स तक पहुंचाने के लिए एक लॉन्च पैड की जरूरत होती है और यह लॉन्च पैड उसका लिपिड का लेयर होता है, जो उसे वहां पहुंचने तक टूटने से बचा कर रखता है.
लिपिड के खोल में माइनस डिग्री टेम्परेचर पर ही सुरक्षित रहता है एमआरएनए
यह बहुत ही सावधानी पूर्वक किया जाता है. इसके लिए जरूरी है एक निश्चित तापमान जो उसे टूटने से बचा कर रखता है. इसलिए इस वैक्सीन को माइनस डिग्री टेंपरेचर पर रखा जाता है, ताकि यह शरीर में प्रवेश करने के पहले ही टूट कर ना बिखर जाए. वैक्सीन को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए कई बार महीने का समय लग जाता है. ऐसे में इसे सुरक्षित रखने के लिए एक निश्चित तापमान की आवश्यकता होती है.
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-70 से -90 डिग्री पर फाइजर वैक्सीन का प्रोटीन स्पाइक रहता है सेफ
डॉ. अजय गंभीर के मुताबिक फाइजर वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिए -70 से -90 डिग्री टेंपरेचर की जरूरत होती है. इसी तरह से मोडेना वैक्सीन को माईनस 4 डिग्री से लेकर माइनस 30 डिग्री तक रखा जाता है.अब आप समझ गए होंगे कि वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज चेन की आवश्यकता क्यों होती है ? ऐसा इसलिए है क्योंकि अभी तक ऐसी कोई टेक्नोलॉजी नहीं आई है, जो वैक्सीन को रूम टेंपरेचर पर सुरक्षित रख सके, लेकिन आने वाले समय में वैक्सीन को हीट रेजिस्टेंट बनाया जा सकता है.