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Sperm Swapping: स्पर्म की अदलाबदली से हुआ जुड़वां बहनों का जन्म, अब दंपती को मिलेंगे डेढ़ करोड़ रुपये

दिल्ली में अपनी तरह का एक मामला सामने आया है, जिसमें शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने अस्पताल डॉक्टर पर लगाया डेढ़ करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. दरअसल दंपती को पता चला कि अस्पताल की लापरवाही के कारण स्पर्म की अदलाबदली हुई, जिससे उन्हें दो जुड़वा बेटी हुईं. डीएनए प्रोफाइलिंग में व्यक्ति के बच्चियों का जैविक पिता न होने की बात सामने आई. अब अस्पताल ये रुपये पीड़ित दंपती को देगा.

Hospital fined one and half crore
Hospital fined one and half crore
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Published : Jun 27, 2023, 6:43 PM IST

नई दिल्ली: राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने दिल्ली के एक निजी अस्पताल और संबंधित डॉक्टरों पर प्रजनन प्रक्रिया संबंधी गड़बड़ी के लिए 1.5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. दरअसल डॉक्टरों ने महिला को गर्भधारण में मदद के लिए पति के बजाय किसी और व्यक्ति के शुक्राणुओं का इस्तेमाल किया था. शीर्ष उपभोक्ता आयोग द्वारा एआरटी क्लीनिकों के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा गया कि ऐसे क्लीनिकों की मान्यता की जांच के अलावा नवजात शिशुओं का डीएनए प्रोफाइल जारी करना भी अनिवार्य किए जाने की जरूरत है.

डीएनए प्रोफाइल से गड़बड़ी का पता चला: आयोग दंपति की एक शिकायत पर सुनवाई कर रहा था, जिसके अनुसार पत्नी ने जून 2009 में एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलोजी (एआरटी) प्रक्रिया के माध्यम से जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था. चूंकि बच्चों का ब्लड ग्रुप माता-पिता के ब्लड ग्रुप के अनुरूप नहीं था, इसलिए उनकी डीएनए प्रोफाइलिंग की गई. इसमें पचा चला कि महिला का पति उसके जुड़वां बच्चों का जैविक पिता था ही नहीं. इसके बाद दंपती ने अस्पताल की लापरवाही के लिए दो करोड़ रुपये के मुआवजे का दावा करते हुए आयोग का रुख किया. इसमें कहा गया कि इससे उनके लिए भावनात्मक तनाव, पारिवारिक कलह और आनुवंशिक रूप से विरासत में मिली बीमारियों का डर सहित कई मुद्दे पैदा हुए.

लगा 1.5 करोड़ रुपये का जुर्माना: पीठासीन सदस्य एसएम कानितकर ने अपने आदेश में कहा, 'मेरे विचार में मौजूदा मामला विरोधी पक्षों द्वारा अपनाई गई भ्रामक और अनुचित व्यापार प्रथाओं का है जो पेशेवर नैतिकता भूल गए हैं. इस प्रकार दूसरे पक्ष 1-3 (अस्पताल, उसके निदेशक और अध्यक्ष) के अलावा विरोधी पक्ष 4-6 (तीन डॉक्टर) लापरवाही और अनुचित व्यापार प्रथाओं के लिए उत्तरदायी हैं. मैं प्रतिवादियों के खिलाफ 1.5 करोड़ रुपये की कुल एकमुश्त देनदारी तय करता हूं.' उन्होंने कहा कि रक्त समूह रिपोर्ट और डीएनए प्रोफाइल ने स्पष्ट रूप से साबित किया कि महिला का पति बच्चों का जैविक पिता नहीं था. आयोग ने कहा कि जुड़वां बच्चियों की पारिवारिक वंशावली अपरिवर्तनीय रूप से बदल दी गई और वे भविष्य में कठिनाइयों का सामना कर सकती हैं.

यह भी पढ़ें-District Consumer Court: उपभोक्ता जानें अपने अधिकार, कैसे दर्ज कराएं शिकायत, जानिए पूरी प्रक्रिया

स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजी आदेश की कॉपी: आदेश में कहा गया कि संबंधित पक्षों की लापरवाही 'निर्णायक रूप से स्थापित' थी और अस्पताल ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया. चूंकि दोनों लड़कियां अब 14 साल की हैं इसलिए आयोग ने कहा कि माता पिता ने उनके कई खर्चे उठाए होंगे, जिससे वह पर्याप्त मुआवजे के हकदार हैं. आयोग ने कहा कि आदेश की एक प्रति केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और एक प्रति राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद को भेजी जाए, जिससे की वे एआरटी सेंटरों के लिए जरूरी निर्देश जारी करने में सक्षम हो सकें.

यह भी पढ़ें-बच्चे की मौत के बाद परिवार को 29 सालों बाद मिला न्याय, हत्या के दोषी को कोर्ट ने सुनाई आजीवन कारावास की सजा

नई दिल्ली: राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने दिल्ली के एक निजी अस्पताल और संबंधित डॉक्टरों पर प्रजनन प्रक्रिया संबंधी गड़बड़ी के लिए 1.5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. दरअसल डॉक्टरों ने महिला को गर्भधारण में मदद के लिए पति के बजाय किसी और व्यक्ति के शुक्राणुओं का इस्तेमाल किया था. शीर्ष उपभोक्ता आयोग द्वारा एआरटी क्लीनिकों के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा गया कि ऐसे क्लीनिकों की मान्यता की जांच के अलावा नवजात शिशुओं का डीएनए प्रोफाइल जारी करना भी अनिवार्य किए जाने की जरूरत है.

डीएनए प्रोफाइल से गड़बड़ी का पता चला: आयोग दंपति की एक शिकायत पर सुनवाई कर रहा था, जिसके अनुसार पत्नी ने जून 2009 में एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलोजी (एआरटी) प्रक्रिया के माध्यम से जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था. चूंकि बच्चों का ब्लड ग्रुप माता-पिता के ब्लड ग्रुप के अनुरूप नहीं था, इसलिए उनकी डीएनए प्रोफाइलिंग की गई. इसमें पचा चला कि महिला का पति उसके जुड़वां बच्चों का जैविक पिता था ही नहीं. इसके बाद दंपती ने अस्पताल की लापरवाही के लिए दो करोड़ रुपये के मुआवजे का दावा करते हुए आयोग का रुख किया. इसमें कहा गया कि इससे उनके लिए भावनात्मक तनाव, पारिवारिक कलह और आनुवंशिक रूप से विरासत में मिली बीमारियों का डर सहित कई मुद्दे पैदा हुए.

लगा 1.5 करोड़ रुपये का जुर्माना: पीठासीन सदस्य एसएम कानितकर ने अपने आदेश में कहा, 'मेरे विचार में मौजूदा मामला विरोधी पक्षों द्वारा अपनाई गई भ्रामक और अनुचित व्यापार प्रथाओं का है जो पेशेवर नैतिकता भूल गए हैं. इस प्रकार दूसरे पक्ष 1-3 (अस्पताल, उसके निदेशक और अध्यक्ष) के अलावा विरोधी पक्ष 4-6 (तीन डॉक्टर) लापरवाही और अनुचित व्यापार प्रथाओं के लिए उत्तरदायी हैं. मैं प्रतिवादियों के खिलाफ 1.5 करोड़ रुपये की कुल एकमुश्त देनदारी तय करता हूं.' उन्होंने कहा कि रक्त समूह रिपोर्ट और डीएनए प्रोफाइल ने स्पष्ट रूप से साबित किया कि महिला का पति बच्चों का जैविक पिता नहीं था. आयोग ने कहा कि जुड़वां बच्चियों की पारिवारिक वंशावली अपरिवर्तनीय रूप से बदल दी गई और वे भविष्य में कठिनाइयों का सामना कर सकती हैं.

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स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजी आदेश की कॉपी: आदेश में कहा गया कि संबंधित पक्षों की लापरवाही 'निर्णायक रूप से स्थापित' थी और अस्पताल ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया. चूंकि दोनों लड़कियां अब 14 साल की हैं इसलिए आयोग ने कहा कि माता पिता ने उनके कई खर्चे उठाए होंगे, जिससे वह पर्याप्त मुआवजे के हकदार हैं. आयोग ने कहा कि आदेश की एक प्रति केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और एक प्रति राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद को भेजी जाए, जिससे की वे एआरटी सेंटरों के लिए जरूरी निर्देश जारी करने में सक्षम हो सकें.

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