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Fortis Hospital में थैलेसिमिया पीड़ित इराक के 3 बच्चों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट कर दिया नया जीवन

फोर्टिस अस्पताल में जेनेटिक बीमारी थैलेसीमिया से पीड़ित इराक के एक ही परिवार के तीन बच्चों को जीवनदान मिला है. इन तीनों बच्चों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट कम उम्र की वजह से बड़ी चुनौती थी, लेकिन अस्पताल के डॉक्टरों ने ये चुनौती स्वीकार करते हुए सफल बोनमैरो ट्रांसप्लांट किया. Fortis Hospital Achivement

थैलेसिमिया पीड़ित इराक के 3 बच्चों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट
थैलेसिमिया पीड़ित इराक के 3 बच्चों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Nov 13, 2023, 2:05 PM IST

Updated : Nov 13, 2023, 8:15 PM IST

थैलेसिमिया पीड़ित इराक के 3 बच्चों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट

नई दिल्ली : नई दिल्ली में फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों ने थैलेसीमिया से पीड़ित इराक के एक ही परिवार के तीन बच्चों के सफल इलाज कर उन्हें एक नया जीवन दिया है. तीनों ही बच्चे 'थैलेसीमिया मेजर' नामक गंभीर बीमारी से पीड़ित थे, जिनकी उम्र 10, 13 और 19 साल की है. इन तीनों बच्चों का इलाज फोर्टिस अस्पताल के पेडियाट्रिक हिमैटोलॉजी के प्रमुख डॉ. विकास दुआ के नेतृत्व में किया गया.

इलाज के लिए थी बड़ी चुनौती : डॉ. विकास के दुआ ने बताया कि इन मरीजों की उम्र काफी कम थी और लगातार ब्लड ट्रांस्फ्यूजन होने से उनके शरीर में आयरन की मात्रा काफी बढ़ गई थी. कुछ दवाइयों और दूसरी प्रक्रियाओं के जरिये कई समस्याओं को नियंत्रित करने के बाद हमने उनके बोन मैरो जिसे स्टेम सेल ट्रांस्प्लांट के नाम से भी जाना जाता है उस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दे दिया.

ये भी पढ़ें : Delhi News: फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टरों ने की 65 वर्षीय महिला की सफल वर्टिब्रा स्टेटोप्लास्टी सर्जरी

बोन मैरो ट्रांसप्लांट से किया सफल इलाज : फोर्टिस अस्पताल के प्रिंसिपल डायरेक्टर और हिमैटोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. राहुल भार्गव ने बताया कि इराक से आए इन तीनों बच्चों की जरूरी जांचें करने के बाद हमने बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के जरिये उनका इलाज करने का निर्णय लिया. अच्छी बात ये रही कि इन तीनों पीड़ित बच्चों के अन्य दो सगे भाइयों से ट्रांस्प्लांट के लिए बोन मैरो मैचिंग हो गई और उनका 300 मिली​लीटर खून लेकर हमने ट्रांस्प्लांट की सफल प्रक्रिया को अंजाम दिया. इलाज की इस पूरी प्रक्रिया के दौरान तीनों बच्चों को 14 दिन के लिए अस्पताल में रखा गया और अंत में उन्हें पूरी तरह से स्वस्थ करके उन्हें छुट्टी दे दी गई.

थैलेसीमिया मेजर एक जैनेटिक ब्लड डिसऑर्डर : डॉ. भार्गव ने बताया कि थैलेसीमिया मेजर एक जैनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है. यानी बच्चों में यह समस्या उनके माता-पिता से आती है. इस बीमारी के पीड़ितों के शरीर में सामान्य से कम हिमोग्लोबिन बनता है.ऐसे में इसके पीड़ितों को हर महीने ब्लड ट्रांस्फ्यूजन करवाना पड़ता है. छोटी उम्र में लगातार ब्लड ट्रांस्फ्यूजन की वजह से हार्ट और लीवर पर प्रतिकूल असर पड़ता है. साथ ही इसकी वजह से शरीर की अन्य मुख्य अंग भी प्रभावित हो सकते हैं.

इलाज करने विदेश जाते रहते हैंः डॉक्टर राहुल भार्गव दिल्ली और गुड़गांव के अलावा नोएडा, मेरठ जैसे एनसीआर में शामिल शहरों के साथ ही अहमदाबाद, पटना, लखनऊ, गोरखपुर, बीकानेर, चण्डीगढ़, लुधियाना जैसे शहरों के साथ ही कजाकिस्तान, सऊदी अरब व ईराक जैसे देशों में भी ब्लड कैंसर के रोगियों के इलाज के लिए निरंतर यात्रा करते हैं. हालांकि, जहां तक एक ही परिवार के इन तीनों इराकी बच्चों का सवाल है तो उन्होंने उनके इलाज के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया का ​सहारा लिया था.

इसके बाद फोर्टिस अस्पताल में हिमेटोलॉजी की एक शानदार विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम को देखते हुए इस अस्पताल का रुख किया. यह तीनों ही बच्चे इसी साल अगस्त के महीने में भारत आए. उसी समय जरूरी जांच करवाने के बाद उनके इलाज संबंधी दिशा तय की गई. कुछ दवाइयों और अन्य जाचों के बाद जब इन तीनों ही बच्चों का बोन मैरो ट्रांस्प्लांट किया जाना था तो उस दौरान उन्हें अक्टूबर से नवंबर के बीच महज 21 दिनों के लिए अस्पताल में दाखिल करवाया गया था. डॉक्टर राहुल भार्गव ने बताया कि अंत में जब डॉक्टर विकास दुआ के नेतृत्व में काम करने वाली टीम इन तीनों ही बच्चों को लेकर पुरी तरह संतुष्ट हो गई तो इसी महीने उन्हें भारत से उनके देश लौट जाने के लिए भी कह दिया गया.

थैलेसीमिया मेजर से ग्रसित बच्चों की सबसे ज्यादा संख्या भारत में : डॉ. विकास के दुआ के मुताबिक, दुनिया भर में थैलेसीमिया मेजर से ग्रसित बच्चों की सबसे ज्यादा संख्या भारत में है. यहां इसके मरीजों की संख्या डेढ़ लाख है और हर साल करीब 10 से 15 हजार बच्चे थैलेसीमिया की समस्या से ग्रस्त होकर जन्म लेते हैं, लेकिन अब इस बीमारी का इलाज मुमकिन है. जरूरत केवल इस बात की है कि समस्या का पता चलते ही पीड़ित विशेषज्ञ डॉक्टरों से संपर्क करें और सही दिशा में उन्हें इलाज उपलब्ध हो सके.

ये भी पढ़ें : दिल्ली AIIMS के डॉक्टरों ने एक बार फिर किया चमत्कार, 34 वर्षीय पर्वतारोही को दिया नया जीवनदान

थैलेसिमिया पीड़ित इराक के 3 बच्चों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट

नई दिल्ली : नई दिल्ली में फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों ने थैलेसीमिया से पीड़ित इराक के एक ही परिवार के तीन बच्चों के सफल इलाज कर उन्हें एक नया जीवन दिया है. तीनों ही बच्चे 'थैलेसीमिया मेजर' नामक गंभीर बीमारी से पीड़ित थे, जिनकी उम्र 10, 13 और 19 साल की है. इन तीनों बच्चों का इलाज फोर्टिस अस्पताल के पेडियाट्रिक हिमैटोलॉजी के प्रमुख डॉ. विकास दुआ के नेतृत्व में किया गया.

इलाज के लिए थी बड़ी चुनौती : डॉ. विकास के दुआ ने बताया कि इन मरीजों की उम्र काफी कम थी और लगातार ब्लड ट्रांस्फ्यूजन होने से उनके शरीर में आयरन की मात्रा काफी बढ़ गई थी. कुछ दवाइयों और दूसरी प्रक्रियाओं के जरिये कई समस्याओं को नियंत्रित करने के बाद हमने उनके बोन मैरो जिसे स्टेम सेल ट्रांस्प्लांट के नाम से भी जाना जाता है उस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दे दिया.

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बोन मैरो ट्रांसप्लांट से किया सफल इलाज : फोर्टिस अस्पताल के प्रिंसिपल डायरेक्टर और हिमैटोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. राहुल भार्गव ने बताया कि इराक से आए इन तीनों बच्चों की जरूरी जांचें करने के बाद हमने बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के जरिये उनका इलाज करने का निर्णय लिया. अच्छी बात ये रही कि इन तीनों पीड़ित बच्चों के अन्य दो सगे भाइयों से ट्रांस्प्लांट के लिए बोन मैरो मैचिंग हो गई और उनका 300 मिली​लीटर खून लेकर हमने ट्रांस्प्लांट की सफल प्रक्रिया को अंजाम दिया. इलाज की इस पूरी प्रक्रिया के दौरान तीनों बच्चों को 14 दिन के लिए अस्पताल में रखा गया और अंत में उन्हें पूरी तरह से स्वस्थ करके उन्हें छुट्टी दे दी गई.

थैलेसीमिया मेजर एक जैनेटिक ब्लड डिसऑर्डर : डॉ. भार्गव ने बताया कि थैलेसीमिया मेजर एक जैनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है. यानी बच्चों में यह समस्या उनके माता-पिता से आती है. इस बीमारी के पीड़ितों के शरीर में सामान्य से कम हिमोग्लोबिन बनता है.ऐसे में इसके पीड़ितों को हर महीने ब्लड ट्रांस्फ्यूजन करवाना पड़ता है. छोटी उम्र में लगातार ब्लड ट्रांस्फ्यूजन की वजह से हार्ट और लीवर पर प्रतिकूल असर पड़ता है. साथ ही इसकी वजह से शरीर की अन्य मुख्य अंग भी प्रभावित हो सकते हैं.

इलाज करने विदेश जाते रहते हैंः डॉक्टर राहुल भार्गव दिल्ली और गुड़गांव के अलावा नोएडा, मेरठ जैसे एनसीआर में शामिल शहरों के साथ ही अहमदाबाद, पटना, लखनऊ, गोरखपुर, बीकानेर, चण्डीगढ़, लुधियाना जैसे शहरों के साथ ही कजाकिस्तान, सऊदी अरब व ईराक जैसे देशों में भी ब्लड कैंसर के रोगियों के इलाज के लिए निरंतर यात्रा करते हैं. हालांकि, जहां तक एक ही परिवार के इन तीनों इराकी बच्चों का सवाल है तो उन्होंने उनके इलाज के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया का ​सहारा लिया था.

इसके बाद फोर्टिस अस्पताल में हिमेटोलॉजी की एक शानदार विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम को देखते हुए इस अस्पताल का रुख किया. यह तीनों ही बच्चे इसी साल अगस्त के महीने में भारत आए. उसी समय जरूरी जांच करवाने के बाद उनके इलाज संबंधी दिशा तय की गई. कुछ दवाइयों और अन्य जाचों के बाद जब इन तीनों ही बच्चों का बोन मैरो ट्रांस्प्लांट किया जाना था तो उस दौरान उन्हें अक्टूबर से नवंबर के बीच महज 21 दिनों के लिए अस्पताल में दाखिल करवाया गया था. डॉक्टर राहुल भार्गव ने बताया कि अंत में जब डॉक्टर विकास दुआ के नेतृत्व में काम करने वाली टीम इन तीनों ही बच्चों को लेकर पुरी तरह संतुष्ट हो गई तो इसी महीने उन्हें भारत से उनके देश लौट जाने के लिए भी कह दिया गया.

थैलेसीमिया मेजर से ग्रसित बच्चों की सबसे ज्यादा संख्या भारत में : डॉ. विकास के दुआ के मुताबिक, दुनिया भर में थैलेसीमिया मेजर से ग्रसित बच्चों की सबसे ज्यादा संख्या भारत में है. यहां इसके मरीजों की संख्या डेढ़ लाख है और हर साल करीब 10 से 15 हजार बच्चे थैलेसीमिया की समस्या से ग्रस्त होकर जन्म लेते हैं, लेकिन अब इस बीमारी का इलाज मुमकिन है. जरूरत केवल इस बात की है कि समस्या का पता चलते ही पीड़ित विशेषज्ञ डॉक्टरों से संपर्क करें और सही दिशा में उन्हें इलाज उपलब्ध हो सके.

ये भी पढ़ें : दिल्ली AIIMS के डॉक्टरों ने एक बार फिर किया चमत्कार, 34 वर्षीय पर्वतारोही को दिया नया जीवनदान

Last Updated : Nov 13, 2023, 8:15 PM IST
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