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दिल्ली में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार, सरकार दिख रही लाचार..!

कोरोना का कहर काफी बढ़ रहा है. गंभीर मरीजों की संख्या इतनी बढ़ रही है कि जीवनदायिनी ऑक्सीजन की किल्लत अचानक बढ़ गयी है. इस मुद्दे पर डीएमए के सचिव डॉ. अजय गंभीर ने ईटीवी भारत से बात की.

dr ajay gambhir said about oxygen crisis in delhi
दिल्ली में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार
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Published : Apr 24, 2021, 3:02 PM IST

नई दिल्लीः कोरोना का कहर बड़ी तेजी से बढ़ रहा है और उतनी ही तेजी से अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी हो रही है. राजधानी में हेल्थ इमरजेंसी जैसी स्थिति पैदा हो गई है. अस्पतालों को हर घंटे अपडेट करना पड़ रहा है कि उनके पास ऑक्सीजन की कितनी मात्रा शेष रह गई है और कितने मरीजों की जान आफत में अटकी पड़ी है. आखिर ऐसी स्थिति क्यों आयी? इसको लेकर सरकार पहले से ही क्यों तैयार नहीं थी ? इन सारे मुद्दों पर दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव अजय गंभीर ने ईटीवी भारत से बात की.

दिल्ली में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार, सरकार दिख रही लाचार..!

उन्होंने कहा कि कोरोना बहुत तेजी से बढ़ रहा है. पूरे देश भर में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग कोरोना से पीड़ित हैं. हर जगह त्राहिमाम मचा हुआ है. क्या इसका कोई इलाज है? डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कोई कोरोना का कोई इलाज नहीं है. जानकारी और सुरक्षा के उपाय ही बचाव के एकमात्र साधन है. कोरोना का नया वेरिएंट ज्यादा खतरनाक है. इसलिए ज्यादा संख्या में लोग ऑक्सीजन सपोर्ट पर पहुंच गये हैं.

यह भी पढ़ेंः-दिल्ली: ऑक्सीजन 'आपातकाल'

उन्होंने कहा कि मरीजों को जिंदा रखने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है. इसलिए अस्पतालों में ऑक्सीजन की संकट की स्थिति बन गयी है. जिंदा रहने के लिए ऑक्सीजन तो चाहिए. खाना अगर 7 दिन ना खाएं तो भी जीवित रह सकते हैं. पानी 2 दिन नहीं पिएंगे तो जीवित रह सकते हैं, लेकिन अगर ऑक्सीजन 5 मिनट भी न मिले तो हम जीवित नहीं रह सकते हैं.

यह भी पढ़ेंः-दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 25 की मौत, 200 जिंदगी दांव पर

कोरोना से चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है, क्योंकि अस्पतालों में न तो बेड्स हैं और न डॉक्टर और न ही ऑक्सीजन है. फिलहाल कोरोना का कोई इलाज नहीं है. इसका एकमात्र बचने का उपाय है सही समय पर इसकी जांच कराना. एक्स-रे और सीटी स्कैन करवाएं.

पॉजिटिव होने पर क्या करें..?

पॉजिटिव होने पर स्टेरॉयड का इस्तेमाल करें. पहले एक हफ्ते में जो भी उपलब्ध है कोरोना का इलाज करें. दूसरे सप्ताह में कोरोना के कॉम्प्लिकेशन का इलाज है. कोरोना के कॉम्प्लिकेशन से बचने के लिए डेक्सामेथासोन का इंजेक्शन ले लें. यह इंजेक्शन घर पर भी दिया जा सकता है या अस्पताल में भी दिया जा सकता है. अगर थोड़ी और ज्यादा तबीयत खराब है, उसके बाद ऑक्सीजन की जरूरत होती है.

अस्पतालों में जो मरीज लेट आते हैं, उन्हें ही ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. उन्होंने कहा कि भगवान ने हमें हमारे फेफड़े के लिए 21 फीसदी ऑक्सीजन दी है. इससे कम ऑक्सीजन होती है तो दम घुटने जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है. ऑक्सीजन की कमी से उमड़ने के लिए लोगों ने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मशीन घरों में रखना शुरू कर दिया है. पहले इस मशीन की आमतौर पर 30 हजार रुपये कीमत होती थी, जो कोरोना काल में इसकी कीमत बढ़कर 80 हजार से एक लाख रुपये तक पहुंच गई है.

व्यावसायिक स्तर पर हमारे देश में दो अलग-अलग कंपनियां ऑक्सीजन बनाने का काम कर रही हैं. आईनेक्स और लिंडे प्लांट से ऑक्सीजन को सिलेंडर में भरकर अस्पतालों में पहुंचाया जाता है. यह अधिक मात्रा में जरूरत हो तो बड़े टैंकर में लिक्विड ऑक्सीजन को भरकर ऑक्सीजन में अस्पतालों में रिफिल किया जाता है. कोरोना के बढ़ते मरीजों के बाद अस्पतालों में ऑक्सीजन का स्टॉक खत्म हो रहा है.

'अस्पतालों में हाई फ्लो ऑक्सीजन की जरूरत'

डॉ. अजय बताते हैं कि अस्पतालों में हाई फ्लो में 30 लीटर तक ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. वही वेंटिलेटर के लिए भी ऑक्सीजन की बड़ी मात्रा की जरूरत होती है. हालांकि कोरोना के मरीजों के लिए वेंटीलेटर्स का इस्तेमाल कम ही हो रहा है, लेकिन ऑक्सीजन का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है. अजय गंभीर बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों में ऑक्सीजन की मांग काफी बढ़ गई है. ऐसा अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ने से हुआ है. ऐसे मरीज जिनकी स्थिति काफी गंभीर थी और उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत थी ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता सीमित और मांग में अचानक वृद्धि होने से ऑक्सीजन की काफी कमी हो गई. इसलिए ऐसी संकट की स्थिति पैदा हुई है. अगर समय रहते इसकी तैयारी की गई होती तो ऐसा नहीं होता.

'ऐसी हेल्थ इमेरजेंसी की नहीं की थी कल्पना'

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि वायरस का नया वेरिएंट इतना खतरनाक है कि यह यह हमारे लंग्स के काम करने की क्षमता को बहुत बुरी तरह से प्रभावित करना शुरू कर दिया है. हमने ऐसी संकट की कल्पना नहीं की थी. हमारे हेल्थ इंटेलिजेंस सिस्टम इतना सक्षम नहीं था, जिसका परिणाम आज हमें दिल्ली जैसे शहर में भुगतनी पड़ रही है. पुराने अनुभवों से सीख ना लेने लेते हुए कोरोना को नियंत्रित करने के उपायों पर निरंतर काम ना करते हुए नीतियों में बदलाव ना करने की वजह से हेल्थ इमरजेंसी जैसी स्थिति पैदा हुई है. अगर हम दिल्ली में ऑक्सीजन के छोटे-छोटे प्लांट लगाए होते, तो आज दिल्ली में ऑक्सीजन की किल्लत नहीं हुई होती.

'दिल्ली ने बिल गेट्स फाउंडेशन का नहीं उठाया लाभ, इसलिए हेल्थ इमरजेंसी'

डॉ. अजय बताते हैं कि बिल गेट्स फाउंडेशन की तरफ से भारत को 10 मिलियन डॉलर भारत को हेल्थ स्टार्टअप के लिए दिए थे. ऑक्सीजन प्लांट के लिए यह ग्रांट दी गई थी. कई राज्यों ने इसका फायदा उठाया और अपने राज्य में ऑक्सीजन प्लांट्स लगाए. महाराष्ट्र, पंजाब और कर्नाटक में बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए, लेकिन दिल्ली में इस तरह के स्टार्टअप्स का कोई फायदा नहीं उठाया गया.

डॉ. अजय गंभीर ने बताया कि सरकार के हेल्थ एडवाइजर्स ने अच्छी सलाह सरकार को नहीं दी, क्योंकि उन्होंने समस्या का सही आकलन नहीं किया. इसीलिए हेल्थ इमरजेंसी पैदा हुई है. सरकार को नए सिरे से इस पर काम करना होगा. वह भगवान से प्रार्थना करते हैं कि ऑक्सीजन की जो कमी है, वह जल्दी पूरी हो जाए और लोगों की जान जो खतरे में है वे उस खतरे से बाहर आए.

नई दिल्लीः कोरोना का कहर बड़ी तेजी से बढ़ रहा है और उतनी ही तेजी से अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी हो रही है. राजधानी में हेल्थ इमरजेंसी जैसी स्थिति पैदा हो गई है. अस्पतालों को हर घंटे अपडेट करना पड़ रहा है कि उनके पास ऑक्सीजन की कितनी मात्रा शेष रह गई है और कितने मरीजों की जान आफत में अटकी पड़ी है. आखिर ऐसी स्थिति क्यों आयी? इसको लेकर सरकार पहले से ही क्यों तैयार नहीं थी ? इन सारे मुद्दों पर दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव अजय गंभीर ने ईटीवी भारत से बात की.

दिल्ली में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार, सरकार दिख रही लाचार..!

उन्होंने कहा कि कोरोना बहुत तेजी से बढ़ रहा है. पूरे देश भर में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग कोरोना से पीड़ित हैं. हर जगह त्राहिमाम मचा हुआ है. क्या इसका कोई इलाज है? डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कोई कोरोना का कोई इलाज नहीं है. जानकारी और सुरक्षा के उपाय ही बचाव के एकमात्र साधन है. कोरोना का नया वेरिएंट ज्यादा खतरनाक है. इसलिए ज्यादा संख्या में लोग ऑक्सीजन सपोर्ट पर पहुंच गये हैं.

यह भी पढ़ेंः-दिल्ली: ऑक्सीजन 'आपातकाल'

उन्होंने कहा कि मरीजों को जिंदा रखने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है. इसलिए अस्पतालों में ऑक्सीजन की संकट की स्थिति बन गयी है. जिंदा रहने के लिए ऑक्सीजन तो चाहिए. खाना अगर 7 दिन ना खाएं तो भी जीवित रह सकते हैं. पानी 2 दिन नहीं पिएंगे तो जीवित रह सकते हैं, लेकिन अगर ऑक्सीजन 5 मिनट भी न मिले तो हम जीवित नहीं रह सकते हैं.

यह भी पढ़ेंः-दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 25 की मौत, 200 जिंदगी दांव पर

कोरोना से चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है, क्योंकि अस्पतालों में न तो बेड्स हैं और न डॉक्टर और न ही ऑक्सीजन है. फिलहाल कोरोना का कोई इलाज नहीं है. इसका एकमात्र बचने का उपाय है सही समय पर इसकी जांच कराना. एक्स-रे और सीटी स्कैन करवाएं.

पॉजिटिव होने पर क्या करें..?

पॉजिटिव होने पर स्टेरॉयड का इस्तेमाल करें. पहले एक हफ्ते में जो भी उपलब्ध है कोरोना का इलाज करें. दूसरे सप्ताह में कोरोना के कॉम्प्लिकेशन का इलाज है. कोरोना के कॉम्प्लिकेशन से बचने के लिए डेक्सामेथासोन का इंजेक्शन ले लें. यह इंजेक्शन घर पर भी दिया जा सकता है या अस्पताल में भी दिया जा सकता है. अगर थोड़ी और ज्यादा तबीयत खराब है, उसके बाद ऑक्सीजन की जरूरत होती है.

अस्पतालों में जो मरीज लेट आते हैं, उन्हें ही ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. उन्होंने कहा कि भगवान ने हमें हमारे फेफड़े के लिए 21 फीसदी ऑक्सीजन दी है. इससे कम ऑक्सीजन होती है तो दम घुटने जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है. ऑक्सीजन की कमी से उमड़ने के लिए लोगों ने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मशीन घरों में रखना शुरू कर दिया है. पहले इस मशीन की आमतौर पर 30 हजार रुपये कीमत होती थी, जो कोरोना काल में इसकी कीमत बढ़कर 80 हजार से एक लाख रुपये तक पहुंच गई है.

व्यावसायिक स्तर पर हमारे देश में दो अलग-अलग कंपनियां ऑक्सीजन बनाने का काम कर रही हैं. आईनेक्स और लिंडे प्लांट से ऑक्सीजन को सिलेंडर में भरकर अस्पतालों में पहुंचाया जाता है. यह अधिक मात्रा में जरूरत हो तो बड़े टैंकर में लिक्विड ऑक्सीजन को भरकर ऑक्सीजन में अस्पतालों में रिफिल किया जाता है. कोरोना के बढ़ते मरीजों के बाद अस्पतालों में ऑक्सीजन का स्टॉक खत्म हो रहा है.

'अस्पतालों में हाई फ्लो ऑक्सीजन की जरूरत'

डॉ. अजय बताते हैं कि अस्पतालों में हाई फ्लो में 30 लीटर तक ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. वही वेंटिलेटर के लिए भी ऑक्सीजन की बड़ी मात्रा की जरूरत होती है. हालांकि कोरोना के मरीजों के लिए वेंटीलेटर्स का इस्तेमाल कम ही हो रहा है, लेकिन ऑक्सीजन का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है. अजय गंभीर बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों में ऑक्सीजन की मांग काफी बढ़ गई है. ऐसा अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ने से हुआ है. ऐसे मरीज जिनकी स्थिति काफी गंभीर थी और उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत थी ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता सीमित और मांग में अचानक वृद्धि होने से ऑक्सीजन की काफी कमी हो गई. इसलिए ऐसी संकट की स्थिति पैदा हुई है. अगर समय रहते इसकी तैयारी की गई होती तो ऐसा नहीं होता.

'ऐसी हेल्थ इमेरजेंसी की नहीं की थी कल्पना'

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि वायरस का नया वेरिएंट इतना खतरनाक है कि यह यह हमारे लंग्स के काम करने की क्षमता को बहुत बुरी तरह से प्रभावित करना शुरू कर दिया है. हमने ऐसी संकट की कल्पना नहीं की थी. हमारे हेल्थ इंटेलिजेंस सिस्टम इतना सक्षम नहीं था, जिसका परिणाम आज हमें दिल्ली जैसे शहर में भुगतनी पड़ रही है. पुराने अनुभवों से सीख ना लेने लेते हुए कोरोना को नियंत्रित करने के उपायों पर निरंतर काम ना करते हुए नीतियों में बदलाव ना करने की वजह से हेल्थ इमरजेंसी जैसी स्थिति पैदा हुई है. अगर हम दिल्ली में ऑक्सीजन के छोटे-छोटे प्लांट लगाए होते, तो आज दिल्ली में ऑक्सीजन की किल्लत नहीं हुई होती.

'दिल्ली ने बिल गेट्स फाउंडेशन का नहीं उठाया लाभ, इसलिए हेल्थ इमरजेंसी'

डॉ. अजय बताते हैं कि बिल गेट्स फाउंडेशन की तरफ से भारत को 10 मिलियन डॉलर भारत को हेल्थ स्टार्टअप के लिए दिए थे. ऑक्सीजन प्लांट के लिए यह ग्रांट दी गई थी. कई राज्यों ने इसका फायदा उठाया और अपने राज्य में ऑक्सीजन प्लांट्स लगाए. महाराष्ट्र, पंजाब और कर्नाटक में बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए, लेकिन दिल्ली में इस तरह के स्टार्टअप्स का कोई फायदा नहीं उठाया गया.

डॉ. अजय गंभीर ने बताया कि सरकार के हेल्थ एडवाइजर्स ने अच्छी सलाह सरकार को नहीं दी, क्योंकि उन्होंने समस्या का सही आकलन नहीं किया. इसीलिए हेल्थ इमरजेंसी पैदा हुई है. सरकार को नए सिरे से इस पर काम करना होगा. वह भगवान से प्रार्थना करते हैं कि ऑक्सीजन की जो कमी है, वह जल्दी पूरी हो जाए और लोगों की जान जो खतरे में है वे उस खतरे से बाहर आए.

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