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कोरोना का बढ़ता कहर, न्यू वेरिएंट को लेकर DMA सचिव ने चेताया

कोरोना का नया वैरिएंट राजधानी दिल्ली समेत पूरे देश में तांडव मचा रहा है. 1.84 लाख हर रोज पूरे देश में और दिल्ली में 18 हजार के आसपास नये मामले सामने आ रहे हैं. आखिर ऐसे क्यों हो रहा है? इन मुद्दों को लेकर बता रहे हैं दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ. अजय गंभीर.

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न्यू वेरिएंट को लेकर DMA सचिव ने चेताया
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Published : Apr 15, 2021, 4:26 PM IST

नई दिल्लीः कोरोना का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है. देशभर में हर रोज दो लाख के आसपास कोरोना के नए मामले सामने आ रहे हैं और इसमें लगातार उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है. दिल्ली में हर रोज पिछले दिनों के मुकाबले 3-5 हजार नये मामले बढ़ रहे हैं. कोरोना के इस विस्फोट की वजह विशेषज्ञ कोरोना के लगातार बदलते रूप और इसके मुताबिक कोरोना संक्रमण को डिटेक्ट करने के लिए डायग्नोस्टिक किट में आवश्यक सुधार नहीं करना और वायरस का डबल म्यूटेशन होना बताया जा रहा है.

न्यू वेरिएंट को लेकर DMA सचिव ने चेताया

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन राजधानी में लगातार बढ़ रहे कोरोना की बढ़ते मामले को देखते हुए काफी चिंतित हैं. डीएमए के सचिव और वैक्सीन india.org के एडमिनिस्ट्रेटर डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि कोरोना को लेकर एक बार फिर भयावह स्थिति पैदा हो गई है. यह स्थिति तब पैदा हुई है जब हमारे पास कोरोना संक्रमण से निपटने का एक साल से ज्यादा का अनुभव है और वैक्सीन है. इसके बावजूद कोरोना के मामले इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः-दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू, मॉल, जिम, थियेटर, स्पा अगले आदेश तक बंद

सरकार की नीति उठाये सवाल

डॉ. अजय गंभीर नीति निर्माताओं और सरकारों पर सवाल खड़ा करते हुए कह रहे हैं कि पिछले एक साल से कोरोना से निपटने के लिए क्या हम ने सही कदम उठाए या अभी जब एक बार फिर कोरोना अपना पांव बड़ी तेजी से पसार रहा है तो इसे रोकने के लिए सही कदम उठा रहे हैं? बड़े-बड़े विशेषज्ञ कोरना को लेकर जो अनुमान लगाए थे उनके अनुमान गलत साबित हुए. कोरोना की बढ़ती शक्ति और क्षमताओं को नजरअंदाज कर दिए, जिसका परिणाम यह है कि एक साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी हम उसे नियंत्रित नहीं कर पाए हैं.

यह भी पढ़ेंः-वीकेंड कर्फ्यू, आवश्यक कार्यों के लिए जारी होंगे ई-पास

'वायरस खुद को बचाने के लिए कई बार बदला'

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि वायरस की प्रवृत्ति लगातार इवॉल्व करने की होती है और अपने आप को बचाने के लिए यह लगातार अपना रूप बदलते रहता है. उन्होंने कहा कि नये वेरिएंट को पुराने जांच करने के तरीकों से नहीं पहचान सकते हैं. इसके लिए डायग्नोस्टिक किट्स में भी आवश्यक बदलाव करने होंगे जो हमारे देश में नहीं हो रहे थे.

हम डाल-डाल तो वायरस भी पात-पात..!

डॉ. अजय बताते हैं कि कोरोना के बदलते रूप पर नजर रखते हुए वैक्सीन की एफीकेसी और प्रोटेक्शन भी बदलते रहने चाहिए. ऐसा नहीं होने पर वायरस बार-बार लौटकर आता है. "तुम डाल डाल तो हम पात पात" वाली कहावत इनके साथ सटीक बैठती है. हम वायरस को खत्म करने का जितना ही प्रयास करते हैं, वायरस उतना ही रूप बदलकर हमें गच्चा देते रहता है.

उन्होंने कहा कि कोरोना जैसे खतरनाक वायरस से निपटने के लिए हमें अत्याधुनिक विज्ञान की मदद लेनी होगी. इसके लिए एक ही प्रभावी तरीका है. वायरस की पहचान के लिए जिनोम सीक्वेंसिंग करना. हमारे देश में पहले केवल एक ही जिनोम सीक्वेंसिंग केंद्र पुणे में था, जहां यह काम होता था. आज अच्छी बात यह है कि जीनोम सीक्वेंसिंग को बढ़ाकर 25 कर दी गई है.

'ये है वायरस के जीनोम अल्फाबेट'

डॉ. अजय गंभीर कोरोना वायरस के जीनोम सिक्वेंस के बारे में बताते हुए कहते हैं कि कोरोना वायरस के चार आरएनए बेस होते हैं. एडिनोसिन यूरेसिल, गुवानीन और साइटोसिन. ये सारे अलग-अलग सिक्वेंस में होते हैं. एक आरएनए में 30,000 मॉलिक्यूल होते हैं. यह अलग-अलग कॉन्बिनेशन में हो सकते हैं. जैसे अंग्रेजी के 26 अल्फाबेट लेटर से अनगिनत शब्द बनाए जा सकते हैं. उसी तरह से 30,000 मॉलिक्यूल से वायरस लगातार अपने रूप को बदल सकते हैं. कुदरत ने वायरस को जीवित रहने के लिए यह अनोखा गुण प्रदान किया है. इसलिए वायरस को पहचानना थोड़ा मुश्किल होता है.

'दुश्मन को हराने के लिए दुश्मन को पहचानना जरूरी'

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि जो वायरस शुरुआती दौर में चीन के वुहान शहर से आया था अब वो कहां है किस रूप में है किसी को नहीं पता. जहां-जहां यह वायरस गया वहां एक नया रूप धारण कर लिया है. इसे पहचानने में हमने गलती की और तकनीक के मामले में पीछे रह गए, लेकिन इंग्लैंड छोटा सा देश होते हुए भी इसमें आगे निकल गया. क्योंकि उसने सही दिशा में काम करना शुरू किया.

'बदले हुए वायरस को पुराने टेस्टिंग किट्स से पकड़ना नमुमकिन'

डॉ. अजय गंभीर के मुताबिक जब वायरस रूप बदलता है, तो पुराने टेस्टिंग किट्स में वह पकड़ में नहीं आता है. उसे पकड़ने के लिए टेस्टिंग किट्स में भी बदलाव लाने होंगे, जो हमने नहीं किया. इसलिए ऐसे वायरस तेजी से फैलने लगे जो हमारी पकड़ से बाहर थे. सिर्फ एक तरह की टेस्टिंग किट से कोरोना वायरस को पकड़ पाना मुश्किल ही नहीं असंभव है. मल्टीपल टेस्टिंग किट्स जरूरी है. हमारे यहां दो तरह के टेस्टिंग किट्स रैपिड एंटीजन टेस्टिंग किट्स और आरटी पीसीआर टेस्टिंग किट्स.

उन्होंने कहा कि वायरस अपना रूप बदल चुका है. डबल म्यूटेट हो चुका है. उन वायरस को हमारे पारंपरिक टेस्टिंग किट से पकड़ पाना मुश्किल है. बीच में थोड़ी समय के लिए जब कोरोना के मामलों में ठहराव आ गया था, तो हम इस गलतफहमी के शिकार हो गए कि हमने कोरोना को कंट्रोल कर लिया है, लेकिन गलती हमसे यह हुई कि हमने अपने तकनीक को विकसित नहीं किया. हमारे साइंस में कमी रह गई.

'जीनोम सिक्वेंसिंग को नजरअंदाज करना पड़ रहा है भारी'

डॉ. अजय ने बताया कि सबसे बड़ी कमी यह रही कि हमने जिनोम सीक्वेंसिंग को नजरअंदाज किया. इस मामले में सबसे आगे इंग्लैंड रहा. इंग्लैंड में डेढ़ लाख से ज्यादा जीनोम की सीक्वेंसिंग हुई है, लेकिन हमारे यहां सिर्फ 5000 ही जिनोम सीक्वेंसिंग हो पाई है. अक्टूबर महीने तक जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए जो पॉलिसी रिसोर्सेज और टेक्नोलॉजी की जरूरत थी वह हमारे पास नहीं थे.

टेस्टिंग किट्स और वैक्सीन में बदलाव जरूरी

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि सिर्फ टेस्टिंग किट्स में मॉडिफिकेशन ही काफी नहीं है. हमें वैक्सीन में भी लगातार बदलाव करते रहना होगा. नए वेरिएंट के ऊपर पुराना वैक्सीन काम नहीं करेगा. कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए हमें हमारे देश में जिनोम सीक्वेंसिंग और जिनोम मैपिंग को बढ़ाना होगा. डायग्नोस्टिक किट्स को चेंज कर वैक्सीन में भी आवश्यक बदलाव करने होंगे.

नई दिल्लीः कोरोना का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है. देशभर में हर रोज दो लाख के आसपास कोरोना के नए मामले सामने आ रहे हैं और इसमें लगातार उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है. दिल्ली में हर रोज पिछले दिनों के मुकाबले 3-5 हजार नये मामले बढ़ रहे हैं. कोरोना के इस विस्फोट की वजह विशेषज्ञ कोरोना के लगातार बदलते रूप और इसके मुताबिक कोरोना संक्रमण को डिटेक्ट करने के लिए डायग्नोस्टिक किट में आवश्यक सुधार नहीं करना और वायरस का डबल म्यूटेशन होना बताया जा रहा है.

न्यू वेरिएंट को लेकर DMA सचिव ने चेताया

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन राजधानी में लगातार बढ़ रहे कोरोना की बढ़ते मामले को देखते हुए काफी चिंतित हैं. डीएमए के सचिव और वैक्सीन india.org के एडमिनिस्ट्रेटर डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि कोरोना को लेकर एक बार फिर भयावह स्थिति पैदा हो गई है. यह स्थिति तब पैदा हुई है जब हमारे पास कोरोना संक्रमण से निपटने का एक साल से ज्यादा का अनुभव है और वैक्सीन है. इसके बावजूद कोरोना के मामले इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः-दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू, मॉल, जिम, थियेटर, स्पा अगले आदेश तक बंद

सरकार की नीति उठाये सवाल

डॉ. अजय गंभीर नीति निर्माताओं और सरकारों पर सवाल खड़ा करते हुए कह रहे हैं कि पिछले एक साल से कोरोना से निपटने के लिए क्या हम ने सही कदम उठाए या अभी जब एक बार फिर कोरोना अपना पांव बड़ी तेजी से पसार रहा है तो इसे रोकने के लिए सही कदम उठा रहे हैं? बड़े-बड़े विशेषज्ञ कोरना को लेकर जो अनुमान लगाए थे उनके अनुमान गलत साबित हुए. कोरोना की बढ़ती शक्ति और क्षमताओं को नजरअंदाज कर दिए, जिसका परिणाम यह है कि एक साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी हम उसे नियंत्रित नहीं कर पाए हैं.

यह भी पढ़ेंः-वीकेंड कर्फ्यू, आवश्यक कार्यों के लिए जारी होंगे ई-पास

'वायरस खुद को बचाने के लिए कई बार बदला'

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि वायरस की प्रवृत्ति लगातार इवॉल्व करने की होती है और अपने आप को बचाने के लिए यह लगातार अपना रूप बदलते रहता है. उन्होंने कहा कि नये वेरिएंट को पुराने जांच करने के तरीकों से नहीं पहचान सकते हैं. इसके लिए डायग्नोस्टिक किट्स में भी आवश्यक बदलाव करने होंगे जो हमारे देश में नहीं हो रहे थे.

हम डाल-डाल तो वायरस भी पात-पात..!

डॉ. अजय बताते हैं कि कोरोना के बदलते रूप पर नजर रखते हुए वैक्सीन की एफीकेसी और प्रोटेक्शन भी बदलते रहने चाहिए. ऐसा नहीं होने पर वायरस बार-बार लौटकर आता है. "तुम डाल डाल तो हम पात पात" वाली कहावत इनके साथ सटीक बैठती है. हम वायरस को खत्म करने का जितना ही प्रयास करते हैं, वायरस उतना ही रूप बदलकर हमें गच्चा देते रहता है.

उन्होंने कहा कि कोरोना जैसे खतरनाक वायरस से निपटने के लिए हमें अत्याधुनिक विज्ञान की मदद लेनी होगी. इसके लिए एक ही प्रभावी तरीका है. वायरस की पहचान के लिए जिनोम सीक्वेंसिंग करना. हमारे देश में पहले केवल एक ही जिनोम सीक्वेंसिंग केंद्र पुणे में था, जहां यह काम होता था. आज अच्छी बात यह है कि जीनोम सीक्वेंसिंग को बढ़ाकर 25 कर दी गई है.

'ये है वायरस के जीनोम अल्फाबेट'

डॉ. अजय गंभीर कोरोना वायरस के जीनोम सिक्वेंस के बारे में बताते हुए कहते हैं कि कोरोना वायरस के चार आरएनए बेस होते हैं. एडिनोसिन यूरेसिल, गुवानीन और साइटोसिन. ये सारे अलग-अलग सिक्वेंस में होते हैं. एक आरएनए में 30,000 मॉलिक्यूल होते हैं. यह अलग-अलग कॉन्बिनेशन में हो सकते हैं. जैसे अंग्रेजी के 26 अल्फाबेट लेटर से अनगिनत शब्द बनाए जा सकते हैं. उसी तरह से 30,000 मॉलिक्यूल से वायरस लगातार अपने रूप को बदल सकते हैं. कुदरत ने वायरस को जीवित रहने के लिए यह अनोखा गुण प्रदान किया है. इसलिए वायरस को पहचानना थोड़ा मुश्किल होता है.

'दुश्मन को हराने के लिए दुश्मन को पहचानना जरूरी'

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि जो वायरस शुरुआती दौर में चीन के वुहान शहर से आया था अब वो कहां है किस रूप में है किसी को नहीं पता. जहां-जहां यह वायरस गया वहां एक नया रूप धारण कर लिया है. इसे पहचानने में हमने गलती की और तकनीक के मामले में पीछे रह गए, लेकिन इंग्लैंड छोटा सा देश होते हुए भी इसमें आगे निकल गया. क्योंकि उसने सही दिशा में काम करना शुरू किया.

'बदले हुए वायरस को पुराने टेस्टिंग किट्स से पकड़ना नमुमकिन'

डॉ. अजय गंभीर के मुताबिक जब वायरस रूप बदलता है, तो पुराने टेस्टिंग किट्स में वह पकड़ में नहीं आता है. उसे पकड़ने के लिए टेस्टिंग किट्स में भी बदलाव लाने होंगे, जो हमने नहीं किया. इसलिए ऐसे वायरस तेजी से फैलने लगे जो हमारी पकड़ से बाहर थे. सिर्फ एक तरह की टेस्टिंग किट से कोरोना वायरस को पकड़ पाना मुश्किल ही नहीं असंभव है. मल्टीपल टेस्टिंग किट्स जरूरी है. हमारे यहां दो तरह के टेस्टिंग किट्स रैपिड एंटीजन टेस्टिंग किट्स और आरटी पीसीआर टेस्टिंग किट्स.

उन्होंने कहा कि वायरस अपना रूप बदल चुका है. डबल म्यूटेट हो चुका है. उन वायरस को हमारे पारंपरिक टेस्टिंग किट से पकड़ पाना मुश्किल है. बीच में थोड़ी समय के लिए जब कोरोना के मामलों में ठहराव आ गया था, तो हम इस गलतफहमी के शिकार हो गए कि हमने कोरोना को कंट्रोल कर लिया है, लेकिन गलती हमसे यह हुई कि हमने अपने तकनीक को विकसित नहीं किया. हमारे साइंस में कमी रह गई.

'जीनोम सिक्वेंसिंग को नजरअंदाज करना पड़ रहा है भारी'

डॉ. अजय ने बताया कि सबसे बड़ी कमी यह रही कि हमने जिनोम सीक्वेंसिंग को नजरअंदाज किया. इस मामले में सबसे आगे इंग्लैंड रहा. इंग्लैंड में डेढ़ लाख से ज्यादा जीनोम की सीक्वेंसिंग हुई है, लेकिन हमारे यहां सिर्फ 5000 ही जिनोम सीक्वेंसिंग हो पाई है. अक्टूबर महीने तक जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए जो पॉलिसी रिसोर्सेज और टेक्नोलॉजी की जरूरत थी वह हमारे पास नहीं थे.

टेस्टिंग किट्स और वैक्सीन में बदलाव जरूरी

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि सिर्फ टेस्टिंग किट्स में मॉडिफिकेशन ही काफी नहीं है. हमें वैक्सीन में भी लगातार बदलाव करते रहना होगा. नए वेरिएंट के ऊपर पुराना वैक्सीन काम नहीं करेगा. कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए हमें हमारे देश में जिनोम सीक्वेंसिंग और जिनोम मैपिंग को बढ़ाना होगा. डायग्नोस्टिक किट्स को चेंज कर वैक्सीन में भी आवश्यक बदलाव करने होंगे.

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