नई दिल्ली: देश में कोरोना का कहर जारी है, लेकिन इसी बीच कोरोना को लेकर कुछ अच्छी खबरें भी आती रहती है. नई खबर यह है कि भारतीय दवाई डेक्सामेथासोन कोरोना के इलाज में कारगर पाया गया है. इंग्लैंड की जानी-मानी ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में इसको लेकर क्लीनिकल ट्रायल किया गया, जो काफी हद तक सफल रहा. क्रिटिकल केयर वाले मरीजों के लिए यह रामबाण साबित हुआ है. वहीं जिन मरीजों को सांस लेने में दिक्कत नही है उनपर इस दवाई का कोई असर नहीं देखने को मिला.
2104 मरीजों पर किया गया ट्रायल
एम्स के कार्डियो-रेडियो विभाग के असिसिटेंट प्रोफेसर और आरडीए के पूर्व अध्यक्ष डॉ अमरिंदर सिंह ने बताया कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में डेक्सामेथासोन को लेकर 2104 मरीजों के ऊपर क्लीनिकल ट्रायल किया गया. इन मरीजों को 10 दिनों तक डेक्सामेथासोन स्टेरॉयड के लो डोज 6 मिलीग्राम प्रतिदिन दिया गया. उसके बाद इसकी तुलना 4,321 मरीजों के साथ की गई. इन मरीजों को सिर्फ सिम्प्टोमैटिक ट्रीटमेंट दी गयी. यानी कि जिन्हें वेंटिलटर्स की जरूरत थी, उन्हें दी गई और जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत थी उन्हें ऑक्सीजन दी गई. जिन्हें बुखार था, उन्हें पैरासिटामाल की डोज़ दी गई.
प्रभाव को तीन श्रेणियों में बांटें गये
डॉ अमरिंदर सिंह ने बताया कि दवाई के असर को देखने के लिये मोर्टेलिटी रेट को पैमाना मानते हुए मरीज को तीन श्रेणियों में बांटा गया. हाईएस्ट मोर्टेलिटी रेट, इंटरमीडिट मोर्टेलिटी रेट और लोएस्ट मोर्टेलिटी रेट. जिन मरीजों को वेंटिलटर्स सपोर्ट पर रख गया था और उन्हें 28 दिनों तक डेक्सामेथासोन स्टेरॉइड के लो डोज 6 मिलीग्राम हर रोज दिया गई. इनकी मोर्टेलिटी रेट सर्वाधिक 41 फीसदी थी. जिन मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रख गया था उनकी मोर्टेलिटी रेट 25 फीसदी थी और जिन मरीजों को दवाई नहीं दी गयी उसकी मोर्टेलिटी रेट 13 फीसदी रही.
क्या है फाइंडिंग?
डॉ अरविंदर ने बताया कि इस क्लीनिकल ट्रायल से दी चीजें मिली, पहली, अगर कोविड को कोई क्रिटिकल मरीज है और उसे वेंटिलटर सपोर्ट पर रखा गया है तो उन्हें डेक्सामेथासोन स्टेरॉयड के लो डोज 6 एमजी दिया जाय तो हर चार में से एक मरीज की जान बच सकती है. इसे तरह देखे कि अगर मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर है उसे भी इसी तरह स्टेरॉइड का लो डोज दिया जाय तो हर 25 में से 1 मरीज की जान बच सकती है. जिन मरीजों को सांस लेने में दिक्कत नहीं है उन पर इस दवाई का असर नहीं होता है.