नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक हालिया घटना का स्वत: संज्ञान लिया है, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कॉलेज की विभिन्न छात्राओं का आईआईटी दिल्ली द्वारा आयोजित फेस्ट में कपड़े बदलने के दौरान वॉशरूम में गुप्त रूप से वीडियो बनाया गया था. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने नौ अक्टूबर को एक अंग्रेजी अखबार में छपी एक समाचार रिपोर्ट पर संज्ञान लिया.
रिपोर्ट के अनुसार डीयू के भारती कॉलेज के छात्राओं के एक समूह को एक फैशन शो कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था. जब वे वॉशरूम में पोशाक बदल रहे थे तो एक व्यक्ति को गुप्त रूप से उनका वीडियो बनाते देखा गया. बाद में सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि संबंधित व्यक्ति आईआईटी दिल्ली के हाउसकीपिंग स्टाफ से था. कोर्ट ने कहा कि पीड़िता को उत्पीड़न के कई मामलों का सामना करना पड़ा है, जो कॉलेज उत्सवों में सुरक्षा उपायों के डिजाइन और कार्यान्वयन में विश्वविद्यालय स्तर पर गंभीर खामियों को उजागर करता है. बेंच ने डीयू के गार्गी कॉलेज में इसी तरह के एक मामले का जिक्र किया, जहां कई छात्राओं पर कथित तौर पर हमला किया गया था.
कोर्ट ने कहा कि ये बार-बार होने वाले उदाहरण सुरक्षात्मक तंत्र की परिकल्पना और लागू करने में ऐसे उत्सवों का आयोजन करने वाले अधिकारियों के उदासीन दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हैं, जिसका उद्देश्य इसमें भाग लेने वाले छात्राओं की की सुरक्षा सुनिश्चित करना है. हमारी राय में, यह जरूरी है कि आयोजन में पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए जाएं, जिससे छात्रों को उल्लंघन के ऐसे कृत्यों का सामना करने के किसी भी आसन्न डर के बिना ऐसे आयोजनों में भाग लेने की अनुमति मिल सके. इस प्रकार, उपरोक्त प्रकरण के मद्देनजर, यह न्यायालय इसे उचित मानता है.
दिल्ली-एनसीआर में कॉलेजों/विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित समारोहों में सुरक्षा उल्लंघनों, विशेष रूप से महिला उपस्थितियों के संबंध के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेने के लिए कोर्ट ने दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस के साथ-साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी और आईपी यूनिवर्सिटी को भी नोटिस जारी किया. विश्वविद्यालयों को कॉलेज उत्सवों के दौरान उठाए गए सुरक्षा उपायों पर अपनी मौजूदा नीति का संकेत देते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी. साथ ही कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को दो हफ्ते में मामले पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया.
बेंच ने जांच अधिकारी को जांच के दौरान अत्यधिक विवेक बरतने और इसमें शामिल महिलाओं की गुमनामी सुनिश्चित करने का आदेश दिया. आरोपियों द्वारा क्लिक की गई तस्वीरों, रिकॉर्ड किए गए वीडियो के प्रसार को रोकने के लिए त्वरित कदम उठाए जाएंगे. यदि ऐसा मीडिया किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित किया जाता है, तो संबंधित पुलिस उपायुक्त के साथ-साथ आईओ को कानून के अनुसार उन्हें हटाने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया जाता है. स्थायी वकील (सिविल) संतोष कुमार त्रिपाठी और अतिरिक्त स्थायी वकील (एएससी) नंदिता राव दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए. मामले की अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी.
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