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कब आएगी बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन, ट्रायल में ही लग सकते हैं 1 साल! - भारत में बच्चों के लिए फाइजर का प्रयोग

कोरोना लहर की तीसरी लहर की भविष्यवाणी हो चुकी है. इस लहर में बच्चों को बचाना एक बड़ी चुनौती है. ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने बच्चों पर कोवैक्सीन के ट्रायल की मंजूरी दे दी है. लेकिन दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ अजय गंभीर की माने तो इसमें एक साल से ज्यादा का समय लग सकता है. ऐसे में सरकार ने ब्रिजिंग ट्रायल के बाद फाइजर वैक्सीन लगाई जा सकती है, जिसे विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है.

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बच्चों के टीके के ट्रायल में लग सकता है सालभर का समय
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Published : May 14, 2021, 9:38 PM IST

Updated : May 14, 2021, 10:09 PM IST

नई दिल्ली: कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच एक्सपर्ट ने तीसरी लहर की आशंका जता दी है. इस लहर में बच्चों को ज्यादा खतरा बताया जा रहा है. ऐसे में सरकार के सामने बच्चों को इस संकट से बचाना बड़ी चुनौती है. हालांकि ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने बच्चों पर कोवैक्सीन के ट्रायल की मंजूरी दे दी है. लेकिन इसका ट्रायल एक साल से पहले होने की संभावना नहीं है. DMA का कहना है कि चाहे जितनी भी जल्दी ट्रायल को क्लियर करने की कोशिश की जाए, कम से कम साल भर का समय तो लग ही जाएगा.

बच्चों के टीके के ट्रायल में लग सकता है सालभर का समय


525 बच्चों पर कोवैक्सीन के ट्रायल की मंजूरी
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ अजय गंभीर ने बताया कि दिल्ली में अब हालात ठीक हो रहे हैं. लेकिन तीसरी वेव में बच्चों की सुरक्षा को लेकर की चिंता बढ़ गई है. उन्होंने कहा कि हमारे देश में कोई भी वैक्सीनेशन बच्चों के लिए नहीं है. ऐसे में कोविशील्ड, जो यूके से बनकर आ रही है, उसका यूके में ही बच्चों के ऊपर ट्रायल कर और फिर उसका ब्रिजिंग ट्रायल कर भारत में प्रयोग कर सकते हैं.

दूसरी खुशी की बात ये है कि ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने भारत में निर्मित कोवैक्सीन के बच्चों के ऊपर ट्रायल की मंजूरी दे दी है. जिसे 525 बच्चों के ऊपर दिल्ली समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में बच्चों के ऊपर ट्रायल किए जाएंगे. ट्रायल में 2 साल से लेकर 18 साल के बच्चों को शामिल किया जाएगा.

ये भी पढ़ें-NSUI ने दिल्ली पुलिस में दर्ज कराई पीएम मोदी के गुमशुदा होने की शिकायत

तीन फेज में होंगे ट्रायल
डॉ अजय बताते हैं कि बच्चों के ऊपर 3 फेज में ट्रायल होगा. पहले फेज में यह देखा जाएगा कि वैक्सीन का कोई दुष्प्रभाव बच्चों के ऊपर पड़ रहा है या नहीं. पहले फेज में बच्चों के ऊपर वैक्सीन का ट्रायल सफल नहीं होगा तो ट्रायल यही बंद कर दिया जाएगा, लेकिन अगर वैक्सीन बच्चों के लिए सुरक्षित होगा तो आगे का ट्रायल जारी रखा जाएगा. दूसरे फेज में इसके दुष्प्रभाव को देखा जाता है और तीसरे फेज में यह देखा जाता है कि इससे कितनी मात्रा में बॉडी में एंटीबॉडी बन रही है.


ये भी है खबर- को-वैक्सीन की कमी के कारण बंद करने पड़े 140 सेंटर्स, केंद्र जल्द करे सप्लाई- AAP

बच्चों के वैक्सीन बनने में लगेगा एक साल का समय
डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि बड़ा सवाल यह है कि यह पूरी प्रक्रिया कब तक पूरी होगी और बच्चों के लिए वैक्सीन कब तक तैयार हो जाएगा ? उन्होंने बताया कि यदि वैक्सीन के ट्रायल की प्रक्रिया अभी से शुरू कर दी जाती है तो इसे पूरा होने में कम से कम 6 से 8 महीने का समय लग सकता है. अगर बीच में कोई समस्या हुई तो 1 साल तक समय लग सकता है. इसमें कम से कम 6 महीने का समय तो लगेगा ही. इतना कुछ होने के बाद भी ट्रायल से संबंधित प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण में समय लगेगा. 6 महीने के भीतर सारे आंकड़ों का विश्लेषण होना और सरकार से इसकी अनुमति मिलना नामुमकिन है.

अगले साल जनवरी महीने तक टीका आने की संभावना
डॉ अजय गंभीर ने कहा कि अगर मान भी लिया जाए कि आज की तारीख में वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो जाए तो दिवाली के बाद ही या इस साल के बाद ही ट्रायल पूरी हो पाएगी. आधी मई बीत चुकी है. इस साल का आधा हिस्सा खत्म हो गया है. इसलिए दिसंबर से पहले या 2022 से पहले बच्चों के लिए टीका बनकर नहीं आ पायेगा.


बच्चों के लिए फाइजर के वैक्सीन का हो सकता है इस्तेमाल
डॉ अजय बताते हैं कि इसके विकल्प के रूप में फाइजर के ऊपर विचार किया जा सकता है, क्योंकि फाइजर वैक्सीन का बच्चों के ऊपर ट्रायल पूरा हो चुका है और यूरोपीय देशों में बच्चों को लगाया भी जा रहा है. इसीलिए केवल ब्रिजिंग ट्रायल करके इस वैक्सीन को बच्चों को लगाया जा सकता है. कोवैक्सीन जैसी किसी नई वैक्सीन के लिए फिर से ट्राईल करना पड़ेगा, जिसमें काफी लंबा समय लग सकता है.

क्या है ब्रीजिंग ट्रायल

ब्रिजिंग ट्रायल एक क्लिनिकल ट्रायल ही है, जिसमें कुछ सीमित (करीब 1,000) लोगों को ही ट्रायल में शामिल किया जाता है. यह ट्रायल सिर्फ यह देखने के लिए किया जाता है कि वैक्सीन कितनी सुरक्षित है और इससे उसकी इम्युनोजनिसिटी पर क्या फर्क पड़ता है. वैक्सीन कितनी प्रभावी है, इसकी जांच ब्रिजिंग ट्रायल में नहीं की जाती, क्योंकि यह पहले किए गए क्लिनिकल ट्रायल में पूरी हो चुकी होती है.

नई दिल्ली: कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच एक्सपर्ट ने तीसरी लहर की आशंका जता दी है. इस लहर में बच्चों को ज्यादा खतरा बताया जा रहा है. ऐसे में सरकार के सामने बच्चों को इस संकट से बचाना बड़ी चुनौती है. हालांकि ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने बच्चों पर कोवैक्सीन के ट्रायल की मंजूरी दे दी है. लेकिन इसका ट्रायल एक साल से पहले होने की संभावना नहीं है. DMA का कहना है कि चाहे जितनी भी जल्दी ट्रायल को क्लियर करने की कोशिश की जाए, कम से कम साल भर का समय तो लग ही जाएगा.

बच्चों के टीके के ट्रायल में लग सकता है सालभर का समय


525 बच्चों पर कोवैक्सीन के ट्रायल की मंजूरी
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ अजय गंभीर ने बताया कि दिल्ली में अब हालात ठीक हो रहे हैं. लेकिन तीसरी वेव में बच्चों की सुरक्षा को लेकर की चिंता बढ़ गई है. उन्होंने कहा कि हमारे देश में कोई भी वैक्सीनेशन बच्चों के लिए नहीं है. ऐसे में कोविशील्ड, जो यूके से बनकर आ रही है, उसका यूके में ही बच्चों के ऊपर ट्रायल कर और फिर उसका ब्रिजिंग ट्रायल कर भारत में प्रयोग कर सकते हैं.

दूसरी खुशी की बात ये है कि ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने भारत में निर्मित कोवैक्सीन के बच्चों के ऊपर ट्रायल की मंजूरी दे दी है. जिसे 525 बच्चों के ऊपर दिल्ली समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में बच्चों के ऊपर ट्रायल किए जाएंगे. ट्रायल में 2 साल से लेकर 18 साल के बच्चों को शामिल किया जाएगा.

ये भी पढ़ें-NSUI ने दिल्ली पुलिस में दर्ज कराई पीएम मोदी के गुमशुदा होने की शिकायत

तीन फेज में होंगे ट्रायल
डॉ अजय बताते हैं कि बच्चों के ऊपर 3 फेज में ट्रायल होगा. पहले फेज में यह देखा जाएगा कि वैक्सीन का कोई दुष्प्रभाव बच्चों के ऊपर पड़ रहा है या नहीं. पहले फेज में बच्चों के ऊपर वैक्सीन का ट्रायल सफल नहीं होगा तो ट्रायल यही बंद कर दिया जाएगा, लेकिन अगर वैक्सीन बच्चों के लिए सुरक्षित होगा तो आगे का ट्रायल जारी रखा जाएगा. दूसरे फेज में इसके दुष्प्रभाव को देखा जाता है और तीसरे फेज में यह देखा जाता है कि इससे कितनी मात्रा में बॉडी में एंटीबॉडी बन रही है.


ये भी है खबर- को-वैक्सीन की कमी के कारण बंद करने पड़े 140 सेंटर्स, केंद्र जल्द करे सप्लाई- AAP

बच्चों के वैक्सीन बनने में लगेगा एक साल का समय
डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि बड़ा सवाल यह है कि यह पूरी प्रक्रिया कब तक पूरी होगी और बच्चों के लिए वैक्सीन कब तक तैयार हो जाएगा ? उन्होंने बताया कि यदि वैक्सीन के ट्रायल की प्रक्रिया अभी से शुरू कर दी जाती है तो इसे पूरा होने में कम से कम 6 से 8 महीने का समय लग सकता है. अगर बीच में कोई समस्या हुई तो 1 साल तक समय लग सकता है. इसमें कम से कम 6 महीने का समय तो लगेगा ही. इतना कुछ होने के बाद भी ट्रायल से संबंधित प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण में समय लगेगा. 6 महीने के भीतर सारे आंकड़ों का विश्लेषण होना और सरकार से इसकी अनुमति मिलना नामुमकिन है.

अगले साल जनवरी महीने तक टीका आने की संभावना
डॉ अजय गंभीर ने कहा कि अगर मान भी लिया जाए कि आज की तारीख में वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो जाए तो दिवाली के बाद ही या इस साल के बाद ही ट्रायल पूरी हो पाएगी. आधी मई बीत चुकी है. इस साल का आधा हिस्सा खत्म हो गया है. इसलिए दिसंबर से पहले या 2022 से पहले बच्चों के लिए टीका बनकर नहीं आ पायेगा.


बच्चों के लिए फाइजर के वैक्सीन का हो सकता है इस्तेमाल
डॉ अजय बताते हैं कि इसके विकल्प के रूप में फाइजर के ऊपर विचार किया जा सकता है, क्योंकि फाइजर वैक्सीन का बच्चों के ऊपर ट्रायल पूरा हो चुका है और यूरोपीय देशों में बच्चों को लगाया भी जा रहा है. इसीलिए केवल ब्रिजिंग ट्रायल करके इस वैक्सीन को बच्चों को लगाया जा सकता है. कोवैक्सीन जैसी किसी नई वैक्सीन के लिए फिर से ट्राईल करना पड़ेगा, जिसमें काफी लंबा समय लग सकता है.

क्या है ब्रीजिंग ट्रायल

ब्रिजिंग ट्रायल एक क्लिनिकल ट्रायल ही है, जिसमें कुछ सीमित (करीब 1,000) लोगों को ही ट्रायल में शामिल किया जाता है. यह ट्रायल सिर्फ यह देखने के लिए किया जाता है कि वैक्सीन कितनी सुरक्षित है और इससे उसकी इम्युनोजनिसिटी पर क्या फर्क पड़ता है. वैक्सीन कितनी प्रभावी है, इसकी जांच ब्रिजिंग ट्रायल में नहीं की जाती, क्योंकि यह पहले किए गए क्लिनिकल ट्रायल में पूरी हो चुकी होती है.

Last Updated : May 14, 2021, 10:09 PM IST
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