नई दिल्ली: भारतीय महिलाओं में माहवारी और इस दौरान उपयोग में लाई को लेकर कई भ्रांतियां हैं. मौजूदा समय में उपलब्ध सैनिटरी पैड्स में रासायनिक मिश्रण न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी खतरनाक होते हैं. इसके अलावा पैड में लगे रक्त के माध्यम से एड्स जैसी बीमारियों का भी प्रसार हो सकता है. ये बातें लेडी हार्डिंग हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अंजलि ने दिल्ली में बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड के लॉन्च के अवसर पर कही.
बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड बनाने वाली कंपनी के संस्थापक अमर तुलसीयान ने बताया कि ये पैड सीआईपीईटी-सर्टिफाईड हैं. इसके चलते पैड का 90 फीसदी हिस्सा 175 दिनों के अंदर और शेष हिस्सा 1 साल के अंदर डीकंपोज हो जाता है. इसमें बाहरी कवर और डिस्पोजेबल बैग सहित पूरी पैकेजिंग भी बायोडीग्रेडेबल है. यह पैड नियमित सैनिटरी पैड की तुलना में अवशोषण, आराम और रिसाव संरक्षण में असाधारण प्रदर्शन प्रदान करता है. इसके अलावा ये पैड 100 फीसदी कैमिकल रहित और वेगन है. समारोह में कपंनी के संस्थापक अमर तुलसीयान, फेमिना मिस इंडिया वर्ल्ड 2023- नंदिनी गुप्ता, फेमिना मिस इंडिया 2023- फर्स्ट रनर अप श्रेया पूंजा और सेकेंड रनर अप थोनाओजम स्ट्रेला लुवांग मौजूद रहीं.
वहीं, सस्टेनेबिलिटी एक्सपर्ट आकांक्षा चंद्रा ने बताया कि भारत को हर माह 1.021 बिलियन सैनिटरी पैड्स के निपटान की चुनौती से जूझना पड़ता है. इन पैड्स को बनाने में भारी मात्रा में प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है, जिसे पूरी तरह से डिकंपोज होने में 500-800 साल लग जाते हैं. वहीं, इनके डिस्पोजल के लिए सही तरीके इस्तेमाल न किए जाने से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है.
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इस गंभीर मुद्दे को देखते हुए ही इस प्रकार के सैनिटरी पैड्स को तैयार किया गया है. ये पैड्स पर्यावरण अनुकूल सामग्री जैसे लकड़ी के गूदे, रेजिन एवं ऑयल के साथ पीएलए आधारित सामग्रियों से बनाए जाते हैं, जो सीआईपीईटी एवं आईएसओ जैसे संस्थानों द्वारा निर्धारित बायोडीग्रेडेबिलिटी के सर्वोच्च मानकों का अनुपालन करते हैं. ऐसे स्थायी समाधानों के माध्यम से इस्तेमाल हो चुके सैनिटरी पैड्स के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को कम करने की दिशा में कंपनी नाइन का यह प्रयास है, ताकि स्वच्छ पर्यावरण को सुनिश्चित किया जा सके.