नई दिल्ली: देश में कोरोना टेस्ट के लिए एक खास नियम है कि जांच करवाने वाले मरीज के पास फोटो और आई कार्ड होना अनिवार्य है. इसके अभाव में मरीज का कोरोना टेस्ट नहीं होता. इससे बेघर और मानसिक रोगियों की जांच में बड़ी परेशानी आ रही है. क्योंकि अधिकांश मामलों में उनके पास पहचान पत्र तो होता नहीं है. ऐसे में अस्पताल भी काफी परेशानी में हैं कि ऐसे मरीजों का इलाज कैसे किया जाए.
लाख कोशिशों के बाद नहीं हुई जांच
कोरोना टेस्टिंग के लिए फोटो आईडी की अनिवार्यता की वजह से मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान (इहबास) अस्पताल को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. अस्पताल के निदेशक डॉ. निमेश देसाई बताते हैं कि बीते दिनों उनके अस्पताल में दो बेघर मानसिक रोगियों में कोरोना के लक्षण मिलने पर उन्होंने उनकी जांच करवाना चाहा, लेकिन मरीजों के पास पहचान पत्र नहीं होने की वजह से अस्पताल की लाख कोशिशों के बाद भी उनकी जांच नहीं हो सकी. जिसके वजह से अस्पताल को उन मरीजों को आइसोलेशन सेंटर में भेजना पड़ा और उन पर निगरानी रख रहे हैं.
'बेघरों के लिए नहीं कोई गाइडलाइन'
डॉ. देसाई बताते हैं कि जब से कोरोना को लेकर गाइडलाइन बनी है तब से लेकर अब तक बेघरों के लिए कोई गाइडलाइन नहीं बनी है. इसे लेकर वकील गौरव बंसल ने 8 जून को दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका भी दाखिल की थी, जिस पर कोर्ट ने एक दिन बाद दिल्ली के मुख्य सचिव को इस बाबत दिशा-निर्देश तय करने का आदेश भी दिया था. लेकिन गौरव की माने तो उस आदेश को आए हुए 10 दिन का समय बीत चुका है, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से इस ओर कोई भी कार्रवाई होती नहीं दिखाई पड़ रही है. ऐसे में गौरव एक बार फिर से अदालत का रुख करने का मन बना रहे हैं.