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यूनानी के प्रति हर वर्ग में बढ़ी जागरूकता, डॉक्टर्स उपचार मानते हैं कारगर

हजारों सालों से चली आ रही यूनानी पद्धति आज भी लोगों में न केवल लोकप्रिय है. बल्कि लोगों में यूनानी के प्रति जागरूकता भी पहले के मुकाबले ज्यादा बढ़ी है, हर वर्ग के लोग आज इस पद्धति पर भरोसा करते हुए स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं. केंद्रीय आयुष मंत्रालय के अधीन चलने वाले यूनानी मेडिकल सेंटर के एक सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है.

People much aware about unani and more effected without any side effect
यूनानी के प्रति हर वर्ग में बढ़ी जागरूकता
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Published : Dec 5, 2020, 7:18 PM IST

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में पिछले एक साल पहले भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के द्वारा सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च यूनानी मेडिसिन के अंतर्गत यूनानी मेडिकल सेंटर की शुरुआत की गई थी. सेंटर के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. सैय्यद अहमद खान ने बताया कि शुरुआत में भले ही इस सेंटर में मरीजों की संख्या ज्यादा नहीं थी लेकिन धीरे धीरे यह संख्या काफी बढ़ गई. और हैरत कि बात यह है कि सेंटर पर इलाज के लिए आने वाले मरीजों में हर वर्ग के लोग शामिल थे.

यूनानी के प्रति हर वर्ग में बढ़ी जागरूकता

हालांकि इनमें मुस्लिम समुदाय से कम ही लोग रहे. इसका खुलासा सेंटर पर आने वाले 365 मरीजों के बीच कराए गए सर्वे से हुआ है. सर्वे से पता लगता है कि आज के आधुनिक दौर में भी लोग यूनानी को कारगर इलाज का तरीका मानते हैं. इतना ही नहीं सर्वे में यह भी समाने आया है कि अधिकतर लोग ने इसे सुरक्षति और बिना साइड इफेक्ट वाला और मर्ज को जड़ से खत्म करने वाला मानते हैं.

गिरती हुई सेहत एक चिंता का विषय

मेडिकल साइंस की दिन-प्रतिदिन तरक्की के बावजूद लोगों की गिरती हुई सेहत एक चिंता का विषय है. शायद यही वजह है कि लोगों का रुझान परंपरागत और वैकल्पिक चिकित्सा के प्रति बढ़ रहा है. यह केवल सुनी-सुनाई बातें नहीं बल्कि आंकड़े इस तरफ इशारा करते हैं. हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार यूनानी चिकित्सा पद्धति के बारे में भी इसी तरह के तथ्य सामने आए हैं. दिलचस्प बात यह है कि यूनानी का रुख करने वाले इन लोगों में लगभग सभी आयु वर्ग और तबके के लोग शामिल हैं. यह लोग यूनानी को इलाज का एक कारगर और असरदार इलाज मानते हैं.

यह सर्वे सफदरजंग में आयुष मंत्रालय के अधीन चलने वाली यूनानी यूनिट की ओपीडी में आने वाले मरीजों पर हुआ. सर्वे पिछले वर्ष जुलाई से सितंबर के दौरान के दौरान हुआ. इस दौरान इलाज के लिए यूनानी ओपीडी में आने वालों की प्रतिदिन संख्या 60 से 80 रही. सर्वे में शामिल लोगों को सुविधानुसार स्टैंडर्ड सैम्पलिंग तक्नीक के जरिए चुना गया. इनमें 51 प्रतिशत पुरुष और 49 प्रतिशत महिलाओं को शामिल किया गया. अधिकतर पढ़े-लिखे लोगों को शामिल किया गया ताकि सवालों का ठीक-ठीक जवाब दे सकें.

सर्वे में सामने आई चौंकाने वाली हकीकत

सर्वे में यह चौंकाने वाली हकीकत सामने आई कि अधिकतर लोग यूनानी चिकित्सा पद्धति के बारे में भली-भांति परिचित हैं. इनमें से 75.1 प्रतिशत लोगों को अपने परिजनों, दोस्तों या फिर पड़ोसियों के जरिए इसके बारे में पता चला. 6.6 फीसद लोगों को पोस्टर और प्रकाशित सामग्री से तो वहीं इतने ही प्रतिशत लोगों को समाचार पत्रों-पत्रिका, 4.7 फीसद लोगां को इंटरनेट, 4.4 फीसद लोगों को टीवी/रेडियो, 2.2 फीसद को ब्रोशर/लेक्चर/ जनस्वास्थ्य मीटिंग और 0.5 फीसद को कम्यूनिटी हेल्थ वर्कर्स के जरिए इस पद्धति के बारे में पता लगा. यूनानी चिकित्सा पद्धति से कभी-कभार इलाज कराने के बावजूद 73.9 फीसद लोगों ने इसे काफी कारगर और असरदार चिकित्सा पद्धति माना.

यूनानी सेंटर की रिसर्च इंचार्ज डॉ.तमन्ना नाजली ने बताया कि अमूमन यूनानी चिकित्सा पद्धति को मुसलमानों से जोड़ कर देखा जाता है जबकि कोई चिकित्सा पद्धति अपने रोगियों के दरमियान भेदभाव कैसे कर सकती है. इसकी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों या हकीमों में ज्यादातर मुसलमान होने के बावजूद इलाज कराने वालों में सभी धर्म और जात/पात के लोग शामिल हैं.

यूनानी थेरैपी का कोई असर नहीं

सर्वे में हिस्सा लेने वालों में 56.7 फीसद हिंदू, 36.4 फीसद मुस्लिम, 2.2 फीसद इसाई, 2.5 फीसद सिख और 2.2 फीसद बौद्ध की तादाद होना इसकी जीती-जागती मिसाल है. इनमें से जब यूनानी के उनके पूर्व अनुभव के बार में पूछा गया, तो उसमें से 25.6 प्रतिशत ने माना कि इससे उनकी बीमारी ठीक हो गई. वहीं 20.8 प्रतिशत ने इसे काफी संतोषजनक तो 41.6 प्रतिशत ने संतोषजनक माना. जबकि इनमें से महज 12 प्रतिशत ने कहा कि यूनानी थेरैपी का कोई असर नहीं हुआ.

सर्वे के दौरान जब लोगों से पूछा गया कि वह यूनानी को बेहतर विकल्प क्यों मानते हैं तो 73.9 प्रतिशत ने कहा कि वह यूनानी चिकित्सा को अधिक सुरक्षित है और इसके साइड इफेक्ट ना के बराबर मानते हैं. 11.3 प्रतिशत ने इसे एक असरदार इलाज का तरीका माना तो वहीं इतने ही फीसद लोगों ने इसे मर्ज को जड़ से खत्म करने वाला माना.

इसमें कोई दो राय नहीं कि एलोपैथी आज भी चिकित्सा पद्धति के तौर पर लोगों की पहली तरजीह है. बावजूद उपरोक्त तथ्यों से यूनानी जैसी पारम्परिक चिकिस्ता पद्धति की तरफ लोगों के बढ़ते रुझान, उसके फायदे ?और कम से कम दुष्प्रभाव जैसे पहलुओं को देखते हुए इसे हर स्तर पर बढ़ावा देने की जरूरत है.

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में पिछले एक साल पहले भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के द्वारा सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च यूनानी मेडिसिन के अंतर्गत यूनानी मेडिकल सेंटर की शुरुआत की गई थी. सेंटर के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. सैय्यद अहमद खान ने बताया कि शुरुआत में भले ही इस सेंटर में मरीजों की संख्या ज्यादा नहीं थी लेकिन धीरे धीरे यह संख्या काफी बढ़ गई. और हैरत कि बात यह है कि सेंटर पर इलाज के लिए आने वाले मरीजों में हर वर्ग के लोग शामिल थे.

यूनानी के प्रति हर वर्ग में बढ़ी जागरूकता

हालांकि इनमें मुस्लिम समुदाय से कम ही लोग रहे. इसका खुलासा सेंटर पर आने वाले 365 मरीजों के बीच कराए गए सर्वे से हुआ है. सर्वे से पता लगता है कि आज के आधुनिक दौर में भी लोग यूनानी को कारगर इलाज का तरीका मानते हैं. इतना ही नहीं सर्वे में यह भी समाने आया है कि अधिकतर लोग ने इसे सुरक्षति और बिना साइड इफेक्ट वाला और मर्ज को जड़ से खत्म करने वाला मानते हैं.

गिरती हुई सेहत एक चिंता का विषय

मेडिकल साइंस की दिन-प्रतिदिन तरक्की के बावजूद लोगों की गिरती हुई सेहत एक चिंता का विषय है. शायद यही वजह है कि लोगों का रुझान परंपरागत और वैकल्पिक चिकित्सा के प्रति बढ़ रहा है. यह केवल सुनी-सुनाई बातें नहीं बल्कि आंकड़े इस तरफ इशारा करते हैं. हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार यूनानी चिकित्सा पद्धति के बारे में भी इसी तरह के तथ्य सामने आए हैं. दिलचस्प बात यह है कि यूनानी का रुख करने वाले इन लोगों में लगभग सभी आयु वर्ग और तबके के लोग शामिल हैं. यह लोग यूनानी को इलाज का एक कारगर और असरदार इलाज मानते हैं.

यह सर्वे सफदरजंग में आयुष मंत्रालय के अधीन चलने वाली यूनानी यूनिट की ओपीडी में आने वाले मरीजों पर हुआ. सर्वे पिछले वर्ष जुलाई से सितंबर के दौरान के दौरान हुआ. इस दौरान इलाज के लिए यूनानी ओपीडी में आने वालों की प्रतिदिन संख्या 60 से 80 रही. सर्वे में शामिल लोगों को सुविधानुसार स्टैंडर्ड सैम्पलिंग तक्नीक के जरिए चुना गया. इनमें 51 प्रतिशत पुरुष और 49 प्रतिशत महिलाओं को शामिल किया गया. अधिकतर पढ़े-लिखे लोगों को शामिल किया गया ताकि सवालों का ठीक-ठीक जवाब दे सकें.

सर्वे में सामने आई चौंकाने वाली हकीकत

सर्वे में यह चौंकाने वाली हकीकत सामने आई कि अधिकतर लोग यूनानी चिकित्सा पद्धति के बारे में भली-भांति परिचित हैं. इनमें से 75.1 प्रतिशत लोगों को अपने परिजनों, दोस्तों या फिर पड़ोसियों के जरिए इसके बारे में पता चला. 6.6 फीसद लोगों को पोस्टर और प्रकाशित सामग्री से तो वहीं इतने ही प्रतिशत लोगों को समाचार पत्रों-पत्रिका, 4.7 फीसद लोगां को इंटरनेट, 4.4 फीसद लोगों को टीवी/रेडियो, 2.2 फीसद को ब्रोशर/लेक्चर/ जनस्वास्थ्य मीटिंग और 0.5 फीसद को कम्यूनिटी हेल्थ वर्कर्स के जरिए इस पद्धति के बारे में पता लगा. यूनानी चिकित्सा पद्धति से कभी-कभार इलाज कराने के बावजूद 73.9 फीसद लोगों ने इसे काफी कारगर और असरदार चिकित्सा पद्धति माना.

यूनानी सेंटर की रिसर्च इंचार्ज डॉ.तमन्ना नाजली ने बताया कि अमूमन यूनानी चिकित्सा पद्धति को मुसलमानों से जोड़ कर देखा जाता है जबकि कोई चिकित्सा पद्धति अपने रोगियों के दरमियान भेदभाव कैसे कर सकती है. इसकी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों या हकीमों में ज्यादातर मुसलमान होने के बावजूद इलाज कराने वालों में सभी धर्म और जात/पात के लोग शामिल हैं.

यूनानी थेरैपी का कोई असर नहीं

सर्वे में हिस्सा लेने वालों में 56.7 फीसद हिंदू, 36.4 फीसद मुस्लिम, 2.2 फीसद इसाई, 2.5 फीसद सिख और 2.2 फीसद बौद्ध की तादाद होना इसकी जीती-जागती मिसाल है. इनमें से जब यूनानी के उनके पूर्व अनुभव के बार में पूछा गया, तो उसमें से 25.6 प्रतिशत ने माना कि इससे उनकी बीमारी ठीक हो गई. वहीं 20.8 प्रतिशत ने इसे काफी संतोषजनक तो 41.6 प्रतिशत ने संतोषजनक माना. जबकि इनमें से महज 12 प्रतिशत ने कहा कि यूनानी थेरैपी का कोई असर नहीं हुआ.

सर्वे के दौरान जब लोगों से पूछा गया कि वह यूनानी को बेहतर विकल्प क्यों मानते हैं तो 73.9 प्रतिशत ने कहा कि वह यूनानी चिकित्सा को अधिक सुरक्षित है और इसके साइड इफेक्ट ना के बराबर मानते हैं. 11.3 प्रतिशत ने इसे एक असरदार इलाज का तरीका माना तो वहीं इतने ही फीसद लोगों ने इसे मर्ज को जड़ से खत्म करने वाला माना.

इसमें कोई दो राय नहीं कि एलोपैथी आज भी चिकित्सा पद्धति के तौर पर लोगों की पहली तरजीह है. बावजूद उपरोक्त तथ्यों से यूनानी जैसी पारम्परिक चिकिस्ता पद्धति की तरफ लोगों के बढ़ते रुझान, उसके फायदे ?और कम से कम दुष्प्रभाव जैसे पहलुओं को देखते हुए इसे हर स्तर पर बढ़ावा देने की जरूरत है.

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