नई दिल्लीः कोरोना महामारी को देखते हुए किराड़ी विधानसभा के इंदर एन्क्लेव में खास तरीके से मुहर्रम मनाने का निर्णय लिया गया है. स्थानीय लोगों ने फैसला किया है कि इस बार मुहर्रम पर गरीब और जरूरतमंद लोगों को खाना बांटा जाएगा और गम का इजहार किया जाएगा. स्थानीय लोगों ने खाना के साथ-साथ फ्रूट और कपड़े बांटने का भी निर्णय लिया है.
मुस्लिमों के लिए खास माना जाता है यह महीना
बता दें कि मुस्लिम समुदाय के लिए मुहर्रम एक खास महीना माना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, हिजरी संवत का पहला मास मुहर्रम होता है. 29 अगस्त मुहर्रम की शुरुआत हुई थी. इस महीने से ही इस्लाम का नया साल शुरू हो जाता है. मुहर्रम महीने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है.
मुस्लिम समुदाय के लोग मुहर्रम को गम के रूप में मनाते हैं. बता दें कि आज से लगभग 1400 साल पहले तारीख-ए-इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी. ये जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ के लिए लड़ी गई थी. इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया गया था.
स्थानीय निवासी ने दी जानकारी
इंदर एन्क्लेव के निवासी शाहनवाज रजा ने बताया कि इस्लाम मान्यता के अनुसार इराक में यजीद नाम का एक जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था. यजीद खुद को खलीफा मानता था. वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उनके खेमे में शामिल हो जाए, लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने यजीद के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.
इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए. जिस महीने हुसैन और उनके साथियों को शहीद कर दिया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था. इसलिए हम लोग इस महीने के दसवीं तारीख को इमाम हुसैन की सहादत के रूप में मनाते हैं.
शाहनवाज रजा ने बताया कि इस बार मुहर्रम कमेटी मेंबरों ने फैसला लिया कोविड-19 को देखते हुए इस बार का मुहर्रम अलग होगा. उन्होंने कहा कि कोरोना को देखते हुए हम सबका दायित्व भी बनता है कि केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के फैसले का पालन करें. कमेटी ने निर्णय लिया है कि सुरक्षा को देखते हुए मुहर्रम का जुलूस नहीं निकाला जाएगा.