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दंगों का एक सालः सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कानूनी मदद को लेकर रखी अपनी राय

पिछले साल दिल्ली में हुए दंगों के बाद सरकार और अन्य कारणों को जिम्मेदार ठहराते हुए सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. फहीम ने कहा कि सरकार को इसपर गंभीरता से विचार करते हुए जमीनी स्तर पर काम करने चाहिए.

social worker dr fahim said about delhi riots reason
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. फहीम
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Published : Feb 24, 2021, 2:08 PM IST

नई दिल्लीः उत्तर पूर्वी दिल्ली में गत वर्ष फरवरी में हुए दंगों को एक साल हो गया है. वहीं समाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक हालात पर चर्चा करते हुए प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. फहीम ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि सरकार को इसपर गंभीरता से विचार करते हुए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है.

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. फहीम ने ईटीवी से की बात

यह भी पढ़ेंः-दिल्ली दंगे 2020 पर किताब लॉन्च, मोनिका अरोड़ा बोलीं- दंगों की बनाई गई थी टूलकिट

उन्होने कहा कि उत्तर पूर्वी जिले में जो कुछ हुआ, उसके लिए आर्थिक और शैक्षणिक हालात भी जिम्मेदार हैं. डॉ. फहीम ने कहा कि दंगों के बाद जमीनी स्तर पर सरकारों को जो काम करने चाहिए थे, वह पूरी तरह से नहीं हुए हैं. यही वजह है कि हिंसा और पर नियंत्रण और उनके प्रभाव से उबरने में समय लगता गया.

मुआवजा नहीं मिलने का किया दावा

यह भी पढ़ेंः-न डेयरी को बख्शा, न स्कूल को, दो दिन बाद मिला था दिलबर नेगी का शव

उन्होंने कहा कि अभी दंगों के जख्म पूरी तरह से भरे भी नहीं थे कि महमारी की वजह से लगाया गया लॉकडाउन पीड़ितों पर दोहरी मार बनकर आन पड़ा और प्रभावितों को इससे पार पाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी.

वहीं दंगा पीड़ितों के बीच राहत और कानूनी सहायता करनेवाले लोगों का कहना है कि एक साल बीतने के बावजूद दंगा पीड़ितों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. मुस्तफाबाद में दंगा पीड़ितों को कानूनी मदद कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद मुनव्वर उस्मानी ने आरोप लगाया है कि आज भी लोग मदद के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.

नई दिल्लीः उत्तर पूर्वी दिल्ली में गत वर्ष फरवरी में हुए दंगों को एक साल हो गया है. वहीं समाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक हालात पर चर्चा करते हुए प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. फहीम ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि सरकार को इसपर गंभीरता से विचार करते हुए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है.

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. फहीम ने ईटीवी से की बात

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उन्होने कहा कि उत्तर पूर्वी जिले में जो कुछ हुआ, उसके लिए आर्थिक और शैक्षणिक हालात भी जिम्मेदार हैं. डॉ. फहीम ने कहा कि दंगों के बाद जमीनी स्तर पर सरकारों को जो काम करने चाहिए थे, वह पूरी तरह से नहीं हुए हैं. यही वजह है कि हिंसा और पर नियंत्रण और उनके प्रभाव से उबरने में समय लगता गया.

मुआवजा नहीं मिलने का किया दावा

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उन्होंने कहा कि अभी दंगों के जख्म पूरी तरह से भरे भी नहीं थे कि महमारी की वजह से लगाया गया लॉकडाउन पीड़ितों पर दोहरी मार बनकर आन पड़ा और प्रभावितों को इससे पार पाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी.

वहीं दंगा पीड़ितों के बीच राहत और कानूनी सहायता करनेवाले लोगों का कहना है कि एक साल बीतने के बावजूद दंगा पीड़ितों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. मुस्तफाबाद में दंगा पीड़ितों को कानूनी मदद कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद मुनव्वर उस्मानी ने आरोप लगाया है कि आज भी लोग मदद के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.

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