नई दिल्ली: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माने जाने वाले त्यौहार दशहरा के लिए राजधानी में तैयारियां जोरों पर है. सड़कों पर 2-3 दिन पहले तक जिन पुतलों की धूम मची थी वो पुतले अब धीरे-धीरे सड़कों से तो कम हो रहे हैं. हालांकि इन्हें बनाने वाले लोग अब भी मायूस है. इस मायूसी का कारण भी कोई एक नहीं बल्कि इसकी एक लंबी फेहरिस्त है.
पश्चिमी दिल्ली का तितारपुर गांव रावण के पुतलों के लिए मशहूर है. इस गांव के लोगों के लिए दशहरा पर्व रोजी-रोटी का जरिया है. महीनों पहले से यहां रावण बनने का कार्यक्रम शुरू हो जाता है और उसके बाद पंजाब, राजस्थान, हरियाणा समेत देश के अलग-अलग राज्यों से बुकिंग होती हैं. इस साल भी रावण बनाने का कार्यक्रम जुलाई और अगस्त महीने से ही शुरू हो गया था. हालांकि कारीगरों का कहना है कि इस बार उनके सामने एक नहीं बल्कि ऐसी कई परेशानियां हैं जिनके चलते उनके काम में बाधा आ रही है.
'बना तो लें पर रखें कहां'
रावण बनाने वाले राहुल कहते हैं कि इस बार उन्हें जितनी परेशानियां आ रही हैं इतनी पहले कभी नहीं आई. इसमें भी सबसे बड़ी परेशानी है रावण को तैयार कर रखने की. उनका कहना है कि रावण को खड़े करने के लिए उनके पास कोई जगह नहीं है और सरकार की ओर से भी कोई प्रबंध नहीं किया गया है. मेट्रो स्टेशन और सड़क पर ही पुतले खड़े करने पर उनका चालान भी कर दिया जा रहा है.
न्यू मोटर व्हीकल एक्ट का भी असर
वहीं दूसरी तरफ पिछले दिनों हुए मोटर वाहन अधिनियम में संशोधनों का असर भी रावण के पुतलों को बनाने वालों पर दिख रहा है. बताया जा रहा है कि ट्रैफिक चालान के डर से कोई भी ट्रांसपोर्टर रावण ले जाने के लिए तैयार नहीं है. बुकिंग के बाद जब किसी को भी रावण के विषय में पता चलता है तो वह मुकर जाता है. ऐसे में रावण पहुंचाने में समस्या आ रही है.
पटाखे बैन से पड़ा कीमत पर असर
पटाखों पर सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के बैन भी एक मुश्किल खड़ी कर रहे हैं. रावण के पुतले बनाने वाले कहते हैं कि पहले पुतलों में पटाखे लगाने की जिम्मेदारी रावण बनाने वालों की ही होती थी. इसी जिम्मेदारी में थोड़ा-बहुत मुनाफा भी उनके हिस्से आ जाता था. लेकिन बीते साल से इस मुनाफे पर भी ग्रहण लग गया है. रावण बनाने वाले कारीगर कहते हैं कि अब पटाखों की जिम्मेदारी उनकी नहीं है. इससे कीमत पर बहुत असर पड़ा है.
बताते चलें कि इस बार तितारपुर में अलग-अलग वैराइटी के रावण तैयार हुए हैं. 45 फीट का रावण यहां सबसे ऊंचा रावण है जो धड़ और पैरों से अलग है. रावण बनाने वालों की मानें तो इस बार का दशहरा फीका है लेकिन उसके बाद भी वह काम कर रहे हैं.