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हाय रे देश के मजबूर किसान! गांव छोड़ दिल्ली में पट्टे की जमीन पर फसल उपजा रहे हैं अन्नदाता - निरंजन मिश्रा

देश में चुनाव चल रहा है, नेता विकास की बात कर रहे हैं, वोट मांग रहे हैं लेकिन दिल्ली के भीतर दूर-दराज से आए किसान जो मजदूरी कर पेट भर रहे हैं उनकी बात कोई नहीं करता. ऐसे ही एक किसान परिवार से ईटीवी भारत ने बातचीत की और उनके हर दिन के संघर्ष के बारे में जाना.

किसान परिवार से बातचीत
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Published : May 11, 2019, 10:14 PM IST

Updated : May 11, 2019, 11:03 PM IST

नई दिल्ली: राजधानी में नौकरी और मजदूरी के लिए देश भर से लोग आते हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली में लोग खेती करने के लिए भी आते हैं और वो भी उन ग्रामीण इलाकों से जिन्हें खेती के लिए ही जाना जाता है. आखिर इन लोगों को अपना ग्रामीण इलाका छोड़ कर राजधानी में खेती के लिए क्यों आना पड़ा, इसे लेकर ईटीवी भारत ने एक किसान से उनके खेत में जाकर खास बातचीत की.

दिल्ली में काम कर रहे किसानों की मजबूरी देखिए...

यमुना किनारे एक किसान परिवार यूपी के संभल से अपना मकान, घर सब छोड़कर आया है. इस किसान के अपने खेत भी है, लेकिन यूपी में उसे उसकी खेती से कुछ ख़ास आमदनी नहीं होती इसलिए वो दिल्ली के खेतों में एक झोपड़ी बनाकर रह रहा है.

खेत तो है पर मुनाफा नहीं होता

ईटीवी भारत ने उन किसानों से बात की जो खेतों में काम कर रहे थे, यूपी में रहते हुए इन्हें गन्ने के अलावा कोई फसल मुनाफा नहीं देती. गन्ना इसलिए क्योंकि वहां चीनी मिलें हैं, पर धान, गेहूं या अन्य फसलों के लिए कोई सुविधा नहीं है. लागत ही इतनी हो जाती है कि मुनाफे की बात सोच भी नहीं सकते. हुनर तो खेती का है, इसलिए खेती के जरिए मुनाफे के लिए इन्होंने जगह बदल दी और आ गए दिल्ली में यमुना के किनारे.

outsider farmers living near by yamuna bank and doing farming poor condition
पट्टे पर जमीन लेकर करते हैं खेती

अनार सिंह ने यमुना के किनारे की जमीन ठेके पर ली और यहां खेती शुरू की. हम जब अनार सिंह के खेत में पहुंचे तो अपने घरवालों और सहयोगियों के साथ वो गेहूं की कटाई कर रहे थे. उन्होंने बातचीत में बताया कि करीब डेढ़ लाख रुपए में उन्होंने 1 साल के लिए 15 बीघे जमीन ठेके पर ली हुई है और खूब मुनाफा भी कमा रहे हैं.

इस 15 बीघे जमीन में से दस बीघे में गेहूं और बाकी फसलें हैं, वहीं 5 बीघे में गुलाब की खेती है. किसान अनार सिंह के साथ हमने उनके गुलाब के खेत भी देखे. ये भी जानने की कोशिश की कि, ग्रामीण भारत में जिन फसलों से किसान लागत भी नहीं निकाल पाते, वहीं राजधानी के एक इलाके में किस तरह की खेती मुनाफा दे रही है.

outsider farmers living near by yamuna bank and doing farming poor condition
खेतों के बीच में झोपड़ी बनाकर रहता है किसान परिवार

राजधानी में मंडी होने का फायदा
अनार सिंह ने बताया कि दिल्ली में इन गुलाबों के लिए मंडी नजदीक है, जहां पर हर सुबह गुलाब तोड़ कर महज कुछ घंटों में ही उसे बेच भी आते हैं, लेकिन गांव में ऐसी सुविधाएं नहीं है. गांव में खेती तो कर सकते हैं, लेकिन बेचेंगे कहां और वहां दाम भी अच्छे नहीं मिलते. दिल्ली में आकर खेती करने के लिए अनार सिंह को अपने घर का बना बनाया मकान छोड़ना पड़ा और खेतों के बीच झोपड़ी में आकर रहना पड़ा.

खेतों के बीचो-बीच बनी एक फूस की झोपड़ी, जिसको ऊपर से प्लास्टिक से ढका गया था, उसी में अनार सिंह अपने परिवार वालों के साथ रहते हैं. यहां पर इन लोगों ने बोरिंग भी करा रखी है, जिससे फसलों में पानी दिया जाता है.

बातचीत में कई बार अनार सिंह का ये दर्द छलका कि खेती ही करनी थी तो वो अपने घर भी कर सकते थे, लेकिन क्या कहें, वहां पर जमीन तो है, लेकिन साधन नहीं है.

'फसल तो हो ही जाती है, लेकिन उसका क्या करेंगे, कहां बेचेंगे और बेचेंगे भी तो उतने दाम नहीं मिलेंगे कि लागत भी निकल पाए'.

चुनावों के इस मौसम में जबकि सभी दल तमाम तरह के वादे कर रहे हैं, अपने मेनिफेस्टो में किसानों के लिए बड़ी-बड़ी बातें लिख रहे हैं, तो वहीं एक तस्वीर ये भी है. किसानों की समस्या आज भी सियासत से दूर है. ग्रामीण भारत जो खेती के लिए जाना जाता है, वहां पर खेती के लिए सुविधाएं नहीं हैं और किसानों को मजबूरन खेती के लिए भी दिल्ली का रुख करना पड़ रहा है.

नई दिल्ली: राजधानी में नौकरी और मजदूरी के लिए देश भर से लोग आते हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली में लोग खेती करने के लिए भी आते हैं और वो भी उन ग्रामीण इलाकों से जिन्हें खेती के लिए ही जाना जाता है. आखिर इन लोगों को अपना ग्रामीण इलाका छोड़ कर राजधानी में खेती के लिए क्यों आना पड़ा, इसे लेकर ईटीवी भारत ने एक किसान से उनके खेत में जाकर खास बातचीत की.

दिल्ली में काम कर रहे किसानों की मजबूरी देखिए...

यमुना किनारे एक किसान परिवार यूपी के संभल से अपना मकान, घर सब छोड़कर आया है. इस किसान के अपने खेत भी है, लेकिन यूपी में उसे उसकी खेती से कुछ ख़ास आमदनी नहीं होती इसलिए वो दिल्ली के खेतों में एक झोपड़ी बनाकर रह रहा है.

खेत तो है पर मुनाफा नहीं होता

ईटीवी भारत ने उन किसानों से बात की जो खेतों में काम कर रहे थे, यूपी में रहते हुए इन्हें गन्ने के अलावा कोई फसल मुनाफा नहीं देती. गन्ना इसलिए क्योंकि वहां चीनी मिलें हैं, पर धान, गेहूं या अन्य फसलों के लिए कोई सुविधा नहीं है. लागत ही इतनी हो जाती है कि मुनाफे की बात सोच भी नहीं सकते. हुनर तो खेती का है, इसलिए खेती के जरिए मुनाफे के लिए इन्होंने जगह बदल दी और आ गए दिल्ली में यमुना के किनारे.

outsider farmers living near by yamuna bank and doing farming poor condition
पट्टे पर जमीन लेकर करते हैं खेती

अनार सिंह ने यमुना के किनारे की जमीन ठेके पर ली और यहां खेती शुरू की. हम जब अनार सिंह के खेत में पहुंचे तो अपने घरवालों और सहयोगियों के साथ वो गेहूं की कटाई कर रहे थे. उन्होंने बातचीत में बताया कि करीब डेढ़ लाख रुपए में उन्होंने 1 साल के लिए 15 बीघे जमीन ठेके पर ली हुई है और खूब मुनाफा भी कमा रहे हैं.

इस 15 बीघे जमीन में से दस बीघे में गेहूं और बाकी फसलें हैं, वहीं 5 बीघे में गुलाब की खेती है. किसान अनार सिंह के साथ हमने उनके गुलाब के खेत भी देखे. ये भी जानने की कोशिश की कि, ग्रामीण भारत में जिन फसलों से किसान लागत भी नहीं निकाल पाते, वहीं राजधानी के एक इलाके में किस तरह की खेती मुनाफा दे रही है.

outsider farmers living near by yamuna bank and doing farming poor condition
खेतों के बीच में झोपड़ी बनाकर रहता है किसान परिवार

राजधानी में मंडी होने का फायदा
अनार सिंह ने बताया कि दिल्ली में इन गुलाबों के लिए मंडी नजदीक है, जहां पर हर सुबह गुलाब तोड़ कर महज कुछ घंटों में ही उसे बेच भी आते हैं, लेकिन गांव में ऐसी सुविधाएं नहीं है. गांव में खेती तो कर सकते हैं, लेकिन बेचेंगे कहां और वहां दाम भी अच्छे नहीं मिलते. दिल्ली में आकर खेती करने के लिए अनार सिंह को अपने घर का बना बनाया मकान छोड़ना पड़ा और खेतों के बीच झोपड़ी में आकर रहना पड़ा.

खेतों के बीचो-बीच बनी एक फूस की झोपड़ी, जिसको ऊपर से प्लास्टिक से ढका गया था, उसी में अनार सिंह अपने परिवार वालों के साथ रहते हैं. यहां पर इन लोगों ने बोरिंग भी करा रखी है, जिससे फसलों में पानी दिया जाता है.

बातचीत में कई बार अनार सिंह का ये दर्द छलका कि खेती ही करनी थी तो वो अपने घर भी कर सकते थे, लेकिन क्या कहें, वहां पर जमीन तो है, लेकिन साधन नहीं है.

'फसल तो हो ही जाती है, लेकिन उसका क्या करेंगे, कहां बेचेंगे और बेचेंगे भी तो उतने दाम नहीं मिलेंगे कि लागत भी निकल पाए'.

चुनावों के इस मौसम में जबकि सभी दल तमाम तरह के वादे कर रहे हैं, अपने मेनिफेस्टो में किसानों के लिए बड़ी-बड़ी बातें लिख रहे हैं, तो वहीं एक तस्वीर ये भी है. किसानों की समस्या आज भी सियासत से दूर है. ग्रामीण भारत जो खेती के लिए जाना जाता है, वहां पर खेती के लिए सुविधाएं नहीं हैं और किसानों को मजबूरन खेती के लिए भी दिल्ली का रुख करना पड़ रहा है.

Intro:दिल्ली देश की राजधानी है और मजदूरी या नौकरी पेशा के लिए देश भर से आने वाले लोगों का प्रवास स्थल भी है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की राजधानी दिल्ली में लोग खेती करने के लिए भी आते हैं और वह भी उन ग्रामीण इलाकों से जिन्हें खेती के लिए ही जाना जाता है. आखिर इन लोगों को अपना ग्रामीण इलाका छोड़ कर राजधानी में खेती के लिए क्यों आना पड़ा, इसे लेकर ईटीवी भारत ने एक किसान से उनके खेत में जाकर खास बातचीत की.


Body:नई दिल्ली: अनार सिंह उत्तर प्रदेश के संभल के रहने वाले हैं, वहां उनका अपना मकान है और अपने खेत भी हैं. वहां वे खेती भी करते हैं, लेकिन गन्ने के अलावा बाकी कोई फसल मुनाफा नहीं देती. गन्ना इसलिए क्योंकि वहां चीनी मिले हैं, पर धान गेहूं या अन्य फसलों के लिए कोई सुविधा नहीं है. लागत ही इतना हो जाता है कि मुनाफा की बात सोच ही नहीं सकते. हुनर तो खेती का है, इसलिए खेती के जरिए मुनाफे के लिए इन्होंने जगह बदल दी और आ गए दिल्ली में यमुना के किनारे.

अनार सिंह ने यमुना के किनारे की जमीन ठेके पर ली और यहां खेती शुरू कर दी. हम जब अनार सिंह के खेत में पहुंचे तो अपने घरवालों और सहयोगियों के साथ वे गेहूं की कटाई कर रहे थे. उन्होंने बातचीत में बताया कि करीब डेढ़ लाख रुपए में उन्होंने 1 साल के लिए 15 बीघे जमीन ठेके पर ली हुई है और खूब मुनाफा भी कमा रहे हैं.

इस 15 बीघे जमीन में से दस बीघे में गेहूं और बाकी फसलें हैं, वहीं 5 बीघे में गुलाब की खेती है. अनार सिंह के साथ हमने उनके गुलाब के खेत की भी पड़ताल की और यह जानने की कोशिश की कि ग्रामीण भारत में जिन फसलों से किसान लागत भी नहीं निकाल पाते, वही राजधानी के एक इलाके में किस तरह से मुनाफा दे रही है.

अनार सिंह ने बताया कि दिल्ली में इन गुलाबों के लिए मंडी नजदीक है, जहां पर हर सुबह गुलाब तोड़ कर महज कुछ घंटों में ही उसे बेच भी आते हैं, लेकिन गांव में ऐसी सुविधाएं नहीं है. गांव में खेती तो कर सकते हैं, लेकिन बेचेंगे कहां और वहां दाम भी अच्छे नहीं मिलते. दिल्ली में आकर खेती करने के लिए अनार सिंह को अपने घर का बना बनाया मकान छोड़ना पड़ा और खेतों के बीच झोपड़ी में आकर रहना पड़ा.

खेतों के बीचो-बीच बनी एक फूस की झोपड़ी, जिसके ऊपर प्लास्टिक से ढका गया था, उसी में अनार सिंह अपने परिवार वालों के साथ रहते हैं. यहां पर इन लोगों ने बोरिंग भी करा रखी है, जिससे फसलों में पानी दिया जाता है. बातचीत में कई बार अनार सिंह का यह दर्द छलका कि खेती ही करनी थी तो वे अपने घर भी कर सकते थे, लेकिन क्या कहें, वहां पर जमीन तो है, लेकिन साधन नहीं. फसल तो हो ही जाती है, लेकिन उसे क्या करेंगे, कहां बेचेंगे और बेचेंगे भी तो उतना दाम नहीं मिल पाता है कि लागत भी निकल पाए.


Conclusion:चुनावों के इस मौसम में जबकि सभी दल तमाम तरह के वादे कर रहे हैं, अपने मेनिफेस्टो में तमाम दावे कर रहे हैं, लेकिन किसानों की समस्या आज भी सियासत से अछूता है. ग्रामीण भारत जो खेती के लिए जाना जाता है, वहां पर खेती के लिए सुविधाएं नहीं हैंम और किसानों को मजबूरन खेती के लिए भी दिल्ली का रुख करना पड़ रहा है.
Last Updated : May 11, 2019, 11:03 PM IST
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