नई दिल्ली: एक तरफ नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शनों का दौर चल रहा है, वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक मंत्रालय को दिए जाने वाले साल 2020-21 वाले बजट में 329 करोड़ रुपये का इजाफा किया है. बजट में हुई इस बढ़ोतरी पर मुस्लिम बुद्धिजीवी वर्ग ने साफ कहा कि केंद्र सरकार ने ये इजाफा किया बहुत अच्छी बात है, लेकिन इस बजट के खर्चे का भी पारदर्शिता से हिसाब होना चाहिए, तभी सरकार की मंशा जाहिर हो सकती है.
बजट बढ़कर हुआ 5029 करोड़ रुपये
इस साल अल्पसंख्यक मंत्रालय को दिया जाने वाला बजट बढ़ाकर 5029 करोड़ कर दिया गया है जोकि पिछले साल 2019-20 तक 4700 करोड़ ही था.अल्पसंख्यक मंत्रालय को दिए जाने वाले बजट को देश के अल्पसंख्यकों के हालात में सुधार के साथ ही अल्पसंख्यकों के हितों पर खर्च किया जाता है.
पहले कितने रहता था बजट..देखिए
दरअसल केंद्र सरकार अल्पसंख्यकों को अपनी कई योजनाओं के जरिये इस पैसे को खर्च करती है. अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पता लगता है कि साल 2010-11 में अल्पसंख्यक मंत्रालय का बजट महज 2600 करोड़ रुपए ही था. इसके बाद से मंत्रालय का बजट 2800 करोड़, 3100 करोड़, 3711 करोड़ होते हुए 2018-19 में 4700 करोड़ रुपए हो गया था, जिसे केंद्र सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में बजट में 329 करोड़ रुपए की बढोतरी की है.
'अल्पसंख्यकों के लिए इतना बजट फिर भी नहीं कोई सुधार'
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन शफी देहलवी ने कहा कि हैरानी की बात है कि अल्पसंख्यकों के लिए इतना बजट केंद्र सरकार देती है, उसके बावजूद भी अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों के हालात आज भी जस के तस बनी हुई हैं. उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक मतलब सिर्फ मुसलमान नहीं बल्कि उसमें सिख, ईसाई,पारसी, जैन और बौद्ध भी शामिल है, ऐसे में सरकार को इस बजट के खर्चे में पारदर्शिता के साथ ही यह भी साफ करना चाहिए कि उक्त बजट का खर्च आखिर कब कहां और कैसे किया जा रहा है.