नई दिल्ली: देश के कोने-कोने से हर साल हजारों छात्र-छात्राएं दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने आते हैं. दूर-दराज से आए स्टूडेंट यहां अपने सुनहरे भविष्य के सपने देखते हैं. यूनिवर्सिटी प्रशासन की बात करे तो फंडस के लिए कई बार जूझना भी पड़ता है. पिछले दिनों केंद्र सरकार ने यूनिवर्सिटी के लिए पूंजी इकट्ठी करने के लिए हायर एजुकेशन फाइनेंस एजेंसी(HEFA) की शुरुआत की है.
DU की वित्तीय समिति के सदस्य डॉ. वी.के. अग्रवाल बताते हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय के पास इस तरह राशि इकट्ठा करने के लिए इतने संसाधन उपलब्ध नहीं है . आखिर में छात्रों की फीस ही बढ़ानी पड़ेगी. साफ तौर पर यूनिवर्सिटी का विकास बाधित हो जाएगा. कुल मिलाकर होगा ये कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आएगी और छात्रों पर फीस बढ़ोतरी का बोझ पड़ने के बाद उनकी नकारात्मक प्रतिक्रिया भी प्रशासन को झेलनी होगी.
फंड के यूनिवर्सिटी को येकरना होगा
फंडस के लिए यूनिवर्सिटी को करना ये होगा कि उसे हेफा के पास जाना होगा और बताना होगा कि उसे अपने लिए कितनी राशि की आवश्यकता है लेकिन अब मसला यहां आता है कि अगर यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से 100 करोड़ रुपए की राशि मांगी जाती है तो शर्त ये रखी जाती है कि 10 करोड़ यूनिवर्सिटी अपने बूते ही इकट्ठा करे. 10 करोड़ के लिए यूनिवर्सिटी को बैंकों से कर्ज लेना होगा जिसे तय समय सीमा में चुकाया जाना होगा.
हेफा का हो रहा विरोध
एजुकेशन फाइनेंस एजेंसी को लेकर छात्र और शिक्षक हेफा का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि ये10 करोड़ की राशि यूनिवर्सिटी कैसे इकट्ठा करेगी.