नई दिल्ली: पिछले तीन महीनों से दिल्ली वक्फ बोर्ड पंजीकृत मस्जिदों के इमाम और मोज्जिन की सैलरी नहीं दे रहा है. जिसकी वजह से इमामों के सामने जीवन यापन की दिक्कत आने लगी हैं. जमीयत उलेमा-ए हिन्द दिल्ली प्रदेश ने वक्फ बोर्ड के कई महीने से सैलरी नहीं दिए जाने को बोर्ड और दिल्ली सरकार की मिलीभगत बताते हुए इमामों की सैलरी जल्द से जल्द दिए जाने की मांग की है.
सैलरी ना मिलने से इमाम परेशान
जमीयत उलेमा-ए हिन्द के दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष मौलाना आबिद कासमी ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि आखिर क्या कारण है कि बोर्ड पिछले तीन महीनों से मस्जिदों के इमाम की सैलरी नहीं दे रहा है. इतना ही नहीं मौलाना आबिद ने सवाल उठाया कि लॉकडाउन के दौरान जबकि इन इमामों के सामने इस सैलरी के अलावा कोई दूसरा जरिया नहीं है. ऐसे में भी वक्फ बोर्ड उनकी सैलरी नहीं दे रहा है. इतना ही नहीं इमाम के साथ-साथ वक्फ बोर्ड के कर्मचारियों की सैलरी भी महीनों से अटकी पड़ी है.
सिर्फ ईद के समय मिली सैलरी
मौलाना आबिद ने कहा कि वक्फ बोर्ड को जबकि ऐसे समय में गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करनी चाहिए थी, लेकिन इसके उलट बोर्ड की तरफ से इमाम और मोज्जिन की तीन महीने की सैलरी रोक दी गई है. हालांकि, ईद के समय रुके महीनों में से दो-दो महीने की सैलरी जरूर दी गई, लेकिन उसके बाद से बोर्ड कर्मियों के साथ साथ मस्जिदों के इमाम भी तीन महीने से सैलरी का इंतजार कर रहे हैं.
बोर्ड के एकमात्र मदरसे का स्टॉफ भी परेशान
बताया जाता है कि फतेहपुरी मस्जिद में मौजूद मदरसा एकमात्र मदरसा है, जो कि सीधे दिल्ली वक्फ बोर्ड के दायरे में आता है. जिसके रखरखाव के साथ ही पूरे स्टॉफ की सैलरी भी वक्फ बोर्ड ही देता है. इस मदरसे में डेढ़ दर्जन टीचरों का स्टॉफ है, लेकिन यहां भी बिना सैलरी के चौथा महीना लगा हुआ है.
'दिल्ली दंगा प्रभावितों के पैसे का क्या हुआ'
दिल्ली जमीयत के सदर मौलाना आबिद कासमी ने सवाल उठाते हुए पूछा कि आखिर दिल्ली दंगा प्रभावितों की मदद के लिए आई डोनेशन की रकम का क्या हुआ. जिसे चेयरमैन ने, न तो पीड़ितों तक ही पहुंचाया और न ही इमाम और अन्य स्टॉफ की सैलरी ही कई महीनों से दी जा रही है. वो पैसा कौम के नाम से इकट्ठा किया गया था. वो भी निजी एकाउंट नम्बर देकर फिर उस पैसे का क्या किया गया.