नई दिल्ली: नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के शिक्षकों के साथ उपराज्यपाल अनिल बैजल से भेंट की और उनसे 28 कॉलेजों के फंडिग रोके जाने के आदेश को अविलंब वापस लेने का अनुरोध किया.
उन्होंने उपराज्यपाल से अनुरोध किया कि वे प्रभावित कॉलेजों के शैक्षणिक तथा प्रशासनिक कार्यों के सुचारू प्रबंधन के लिए जल्द से जल्द हस्तक्षेप कर मामले को सुलझाएं.
प्रतिनिधिमंडल में नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार पांडे, डीयू कार्यकारी समिति के पूर्व अध्यक्ष डॉ. ए. के. भागी तथा एनडीटीएफ के कोऑर्डिनेटर डॉ. प्रदुमन कुमार सम्मिलित थे.
'निर्णय की तुरंत हो समीक्षा'
विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि यह शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने गवर्निंग बॉडी के गठन का बहाना कर कॉलेजों को फंड जारी नहीं किया. इस निर्णय की तुरंत समीक्षा करने की आवश्यकता है. प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया गया कि वे फंड जारी करने के मामले को सुलझाने के लिए दिल्ली सरकार से उचित कार्रवाई के लिए कहेंगे.
गुप्ता ने कहा कि यह एक अत्यंत संवेदनशील और मानवीय मुद्दा है. इसे इसी दृष्टिकोण से निपटाना चाहिए ना कि विशुद्ध राजनीतिक दृष्टिकोण से. अध्यापकों के प्रतिनिधियों ने उपराज्यपाल को अवगत कराया कि अनेक कॉलेजों को दिल्ली सरकार द्वारा 5 प्रतिशत फंड दिए जाने का प्रावधान है. परंतु सरकार मात्र 1 प्रतिशत फंड देती है. जिस वजह से इन कॉलेजों की आधारभूत जरूरत पूरी नहीं हो पाती. मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे तुरंत सुलझाया जाना चाहिए.
'सरकार खुद ही कर रही है देरी'
अध्यापकों के प्रतिनिधियों ने कहा कि सरकार संबंधित कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी के गठन के लिए दोष नहीं दे सकती. दिल्ली सरकार स्वयं ही विलंब करने वाली रणनीति अपना रही है. वह संबंधित कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी गठित करने के लिए 10-12 नाम ही नहीं भेज रही है. जिस वजह से गवर्निंग बॉडी बनने में देरी हो रही है.
उन्होंने कहा कि इसके बावजूद भी कॉलेज में गवर्निंग बॉडी गठित है और इनमें कोरम पूरा है. परंतु दिल्ली सरकार को भी नामांकन भेजने हैं और विश्वविद्यालय नामों के भेजे जाने की प्रतीक्षा कर रहा है.
प्रतिनिधिमंडल ने उपराज्यपाल को बताया कि प्रभावित कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी विद्यमान है, लेकिन दिल्ली सरकार के प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं हैं. पहले भी कई बार गवर्निंग बॉडी या दिल्ली सरकार के प्रतिनिधित्व के बिना काम करती रही है.