नई दिल्ली: राजस्थान के अलवर की रहने वाली उषा चौमर को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. उषा एक समय पर मैला ढोने का काम किया करती थी, लेकिन आज वह उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी है जो गरीबी और निराशा के चलते हार मान लेती हैं. ये महिलाएं नाकामी और गरीबी को ही अपना मुकद्दर मान लेती हैं.
मेहनत और लगन से हासिल किया मुकाम
उषा चौमर ने गरीबी और हताशा को पीछे छोड़ते हुए अपनी मेहनत से वह मुकाम हासिल किया, नाम कमाया और आज उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाना है. महिला दिवस के खास अवसर पर उषा चौमर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की और उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष के बारे में बताया.
बचपन से करती थी मैला ढोने का काम
उषा ने बताया कि उन्हें समाज में तिरस्कृत नजरों से देखा जाता था. कोई उन्हें अपने घर नहीं बुलाता था, यहां तक कि उन्हें छूना पसंद नहीं करते थे. वह बचपन से ही मैला ढोने का काम करती आ रही थी. शादी से पहले भी वह मैला ढोने का काम करती थी और शादी होने के बाद ससुराल में भी उन्हें यही काम दिया गया. हालांकि वही काम छोड़ना चाहती थी लेकिन गरीबी के चलते नहीं छोड़ पाई.
समाज में मिली नई पहचान
उषा चौमर ने बताया सुलभ शौचालय के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने उनकी मदद की और फिर उन्होंने मैला ढोने का काम छोड़कर पापड़ बनाने समेत कई काम किए और आज वह समाज में अपनी एक नई पहचान बना चुकी हैं. यहां तक कि लोग उन्हें अपने घर भी बुलाते हैं, वह मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ भी करती हैं.