नई दिल्ली : बीजेपी की वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के आकस्मिक निधन से पार्टी में शोक की लहर है. उनके योगदान को अलग-अलग तरीके से नेता याद कर रहे हैं.
बता दें कि सुषमा स्वराज ने पढ़ाई खत्म करने के बाद ही अपनी जिंदगी की शुरुआत अधिवक्ता के तौर पर की. उसके बाद वे वक्ता बनी. राजनीति में आईं तो बीजेपी में वो प्रवक्ता बनीं. फिर मुख्यमंत्री और विदेश मंत्री बनीं.
बता दें कि सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं. हालांकि उन्हें काफी कम समय दिल्ली की सत्ता चलाने के लिए मिला.
'दिल्ली में चाहती थी बीजेपी की सरकार'
प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता हरीश खुराना ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि सुषमा स्वराज सक्रिय राजनीति से भले दूर हो गई थी, लेकिन हाल ही में जब उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने दिल्ली की सत्ता में बीजेपी की वापसी का जिक्र किया. वो दिल्ली में बीजेपी का वनवास खत्म करना चाहती थी. हरीश ने बताया कि इस बारे में वो काफी उत्सुक रहती थी कि पार्टी क्या रणनीति बना रही है.
एक साल में दिल्ली ने खोये तीन पूर्व मुख्यमंत्री
दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर हरीश खुराना ने कहा कि दिल्ली का दुर्भाग्य है कि एक साल में तीन पूर्व मुख्यमंत्री चल बसे. सबसे पहले मदन लाल खुराना, उसके बाद शीला दीक्षित और अब सुषमा स्वराज. शीला दीक्षित का निधन भी अचानक हृदय गति रुकने से हुआ था तो वहीं सुषमा भी अचानक दिल का दौरा पड़ने के बाद दुनिया छोड़ कर चल गईं.
उन्होंने बताया कि दिल्ली में एक भी पूर्व मुख्यमंत्री नहीं बचा है. हरीश खुराना ने कहा कि सुषमा स्वराज जब वर्ष 1998 में सिर्फ 2 महीने के लिए मुख्यमंत्री बनी थी, तब वो महिला सुरक्षा के प्रति काफी काम करना चाहती थीं.
"मैं रात को जागूंगी ताकि दिल्ली वाले चैन से सो सकें".
बता दें कि भाजपा ने दिल्ली में अचानक साहिब सिंह वर्मा को हटाकर दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सुषमा स्वराज को दिल्ली की कमान सौंप दी थी और महज 2 महीनों में सुषमा ने दिल्ली वालों का दिल जीत लिया था. यह अलग बात रही कि भाजपा चुनाव हार गई, लेकिन जब सुषमा की ताजपोशी हुई थी, तो दिल्ली कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज भी डर गए थे. छोटे से कार्यकाल में सुषमा स्वराज ने हर बस्ती, हर कॉलोनी में घूम-घूम कर रातों में पुलिस थानों में जाकर शहर की समस्या और सुरक्षा प्रणाली का जायजा लेते हुए नारा दिया था कि "मैं रात को जागूंगी ताकि दिल्ली वाले चैन से सो सकें".
लोगों की करती थी तुरंत मदद
बता दें कि वर्ष 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी और उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली. सुषमा स्वराज ने न केवल अपने दफ्तर में काम लेकर आने वालों को बल्कि ट्विटर पर भी सहायता मांगने वालों को बिना उनके बारे में जाने, उनसे मिले, तुरंत मदद की थी. ट्विटर पर भी जिस तरह वह सक्रिय थी इससे उनके कामकाज का आकलन किया जा सकता है.
वाशिंगटन पोस्ट ने सुपर मॉम कहा है
कहा जाता है कि नेताओं में धैर्य नहीं होता, लेकिन सुषमा स्वराज के कामकाज और उनके फैसला लेने की शक्ति को देख कर पता लगाया जा सकता था कि वे कितनी धैर्यवान थीं. कार्यकर्ताओं को नाम से जानना, उनका हालचाल लेना, उनकी बातें अच्छी तरह से सुनना, शायद इसी वजह से उनके निधन की खबर मिलते ही वाशिंगटन पोस्ट जैसे अखबार ने सुषमा स्वराज को 'देश की सुपर मॉम' कहा है.