नई दिल्लीः आधुनिक युग में चिकित्सा विज्ञान के काफी आगे बढ़ जाने के बावजूद लोग रूढ़िवादी बने हुए हैं. वे बच्चे की मौत की कीमत पर भी सामान्य प्रसव कराने में विश्वास रखते हैं. चाहे प्रसव परिपक्व स्थिति में हो रहा हो या अपरिपक्व. वे अपनी सोच बदलने को तैयार नहीं हैं. इससे अक्सर बच्चे के जन्म के समय जच्चा और बच्चा को खतरा पैदा होता है और कई बार ऐसे मामलों में दोनों की मौत भी हो जाती है. ऐसा ही एक मामला दिल्ली एम्स में एक मरीज के इलाज के दौरान सामने आया.
दरअसल, उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली एक 33 वर्षीय महिला ने 18 दिसंबर 2021 को अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दिया. जन्म के समय बच्चे का वजन 4.5 किलोग्राम था. यह वजन जन्म के समय बच्चों के वजन से काफी अधिक था. ऐसी स्थिति में बच्चे का प्रसव सी सेक्शन (ऑपरेशन) के माध्यम से होना था. लेकिन, मेरठ के एक अस्पताल के डाक्टरों ने जबरन महिला का सामान्य प्रसव कर दिया. ऐसे में बच्चे का अधिक वजन होने के कारण खींचते समय बच्चे की गर्दन की रीढ़ की हड्डी टूट गई.
बच्चे के पिता सुमित ने बताया कि जन्म के तीन माह बाद एमआरआई कराने पर पता चला कि बच्चे कि बच्चे की गर्दन की रीढ़ की हड्डी में परेशानी है. इसके बाद सुमित अपनी पत्नी शालू के साथ बच्चे को पिछले साल मई महीने में बच्चे को इलाज के लिए एम्स ट्रामा सेंटर लेकर पहुंचे. जांच में पता चला कि बच्चे की हड्डी टूटने के अलावा ब्रकीयल प्लेक्सस (कंधे की नर्व) में इंजरी हो गई थी.
एम्स न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि ब्रकीयल प्लेक्सेस रीढ़ की हड्डी से संवेदी संकेतों को हाथों में भेजता है. इससे हाथों में मूववमेंट होता है. जब बच्चे को एम्स लाया गया था, तब बच्चे के दायें हाथ में कोई हलचल नहीं थी. दायें हाथ और दोनों पैरों में भी हलचल नहीं थी. इतने कम उम्र के बच्चे की हड्डियां विकसित नहीं होती. इस वजह से रीढ़ की हड्डी में धातु के कृत्रिम इंप्लांट लगाकर जोड़ना संभव नहीं था. इसलिए बच्चे की मां ने कूल्हे के सबसे ऊपरी हिस्से की हड्डी (इलियक क्रेस्ट बोन) का पांच सेंटीमीटर हिस्सा दान किया.
उन्होंने बताया कि सर्जरी के लिए एक साथ दो ऑपरेशन थियेटर का इस्तेमाल किया गया. एक ऑपरेशन टेबल पर बच्चे की मां की सर्जरी कर बोन दान की प्रक्रिया पूरी कराई गई. जबकि दूसरे ऑपरेशन टेबल पर बच्चे की सर्जरी की गई. 15 घंटे तक चली इस सर्जरी के दौरान बच्चे की गर्दन की रीढ़ की हड्डी में बोन ग्राफ्ट किया गया. साथ ही रीढ़ की हड्डी के अगले हिस्से में 2.5 मिलीमीटर की पीएलए (पाली एल लैक्टाइड) प्लेट और पिछले हिस्से में विशेष तरह से सूचर टेप का इस्तेमाल कर उसे फिक्स किया गया.
सर्जरी के बाद बच्चा करीब 11 माह तक वेंटिलेटर पर रहा. उसका पहला जन्मदिन भी ट्रामा सेंटर में ही मनाया गया. करीब नौ दिन पहले बच्चा वेंटिलेटर से बाहर आया है. वह खुद से सांस लेने लगा है. खाना भी खाने लगा है. मां-बाप की बातों पर प्रतिक्रिया भी देने लगा है. वेंटिलेटर सपोर्ट हटाने के बाद एक सप्ताह तक बच्चे को निगरानी में रखा गया. एमआरआई जांच में पाया गया कि उसकी रीढ़ की हड्डी भी जुड़ गई है. हाथ पैर में मूवमेंट भी देखा जा रहा है. लेकिन, उसे पूरी तरह ठीक होने में अभी वक्त लगेगा. बच्चे के गले में अभी ट्यूब डली हुई है. सब कुछ ठीक रहा तो इसे पांच से छह माह बाद निकाला जाएगा. एम्स के डाक्टरों का दावा है कि देश में इतनी कम उम्र के बच्चे की गर्दन की रीढ़ की टूटी हुई हड्डी का बिना किसी धातु के इंप्लांट के जोड़ने का पहला मामला है.