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Stray Dogs in Delhi: जानलेवा साबित हो रहे आवारा कुत्ते, निगम के पास पकड़ने की नहीं है कोई व्यवस्था

दिल्ली के लोगों के लिए आवारा कुत्ते परेशानी की वजह बनते जा रहे हैं. अक्सर कहीं न कहीं बच्चों पर कुत्तों के हमले की खबर सुनने को मिल जाती है. राजधानी में कुत्तों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है लेकिन इसके लिए जिम्मेदार सरकारी विभाग कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं.

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Published : Apr 18, 2023, 6:43 PM IST

जानलेवा साबित हो रहे हैं आवारा कुत्ते

नई दिल्ली: राजधानी में आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है. आवारा कुत्तों द्वारा बच्चों को नोचे जाने की खबरें विचलित तो करती ही हैं, सरकारी विभागों की लापरवाही भी उजागर करती हैं. आवारा कुत्तों के खौफ से बच्चों और बुजुर्गों का घर से निकलना दूभर है. अधिकारी कुछ कदम उठाते भी हैं तो एनिमल एजीओ वाले उन्हें काम नहीं करने देते हैं.

एनजीओ के हस्तक्षेप से निगम पार्षद भी बेबस हैं. एनजीओ के लोग उन पर एनिमल क्रुएलिटी का केस करने की धमकी देते हैं. दिल्ली के जामिया नगर, ओखला, बदरपुर, महरौली, मुनिरका, रानीबाग, न्यू मोतीनगर, कर्मपुरा, भारत नगर, सीलमपुर, दिलशाद गार्डन, आश्रम, हजरत निजामुद्दीन, सीमापुरी, दिलशाद कॉलोनी, भजनपुरा, जैतपुर, शाहीन बाग समेत तमाम इलाकों में आवारा कुत्तों की समस्या गंभीर बनी हुई है. अधिकारियों का कहना है कि टीकाकरण व नसबंदी का काम निगम की ओर से एनजीओ वालों को दिया जाता है. लेकिन वे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, इसलिए कुत्तों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.

एमसीडी के वेटरनरी विभाग में 15 साल से नहीं हुई भर्तीः राजधानी में जगह-जगह कुत्तों की संख्या बढ़ने का कारण यह भी है कि दिल्ली नगर निगम के वेटरनरी विभाग में पिछले 15 सालों से भर्ती नहीं हुई है. निगम पार्षद राजपाल सिंह ने बताया कि पहले एमसीडी के हर जोन में 12 से 15 लोगों की टीम होती थी. यह टीम आवारा कुत्ते, बंदर, गाय समेत अन्य मवेशियों को पकड़कर शेल्टर होम पहुंचाती थी.

विभाग के कर्मचारी एक-एक कर रिटायर होते गए और नई भर्ती हुई नहीं. इस कारण अब कर्मचारियों की संख्या हर जोन में दो से तीन के बीच रह गई है. अब यह विभाग पूरी तरह से एनजीओ पर निर्भर हो गया है और एनजीओ वाले निगम से फंड लेते हैं लेकिन काम नहीं कर रहे हैं. राजपाल सिंह ने बताया कि दिल्ली सरकार निगम को फंड नहीं दे रही है जिस कारण निगम में भर्तियां नहीं हो पा रही हैं. अब तो निगम में भी आम आदमी पार्टी की सत्ता है फिर भी निगम को फंड नहीं मिल रहा है.

वसंत कुंज और जामिया नगर में कुत्ते ले चुके हैं मासूमों की जानः जामिया नगर में वर्ष 2015 में सात साल के मासूम को पांच-छह कुत्तों ने नोंचकर मार डाला था. बच्चे के साथियों ने कुत्तों को भगाने का प्रयास किया तो कुत्तों ने उन्हें भी दौड़ा लिया था. इस घटना के बाद लंबे समय तक लोगों ने उधर जाना बंद कर दिया था. वहीं पिछले माह वसंत कुंज में आवारा कुत्तों ने दो सगे भाइयों को नोच कर मार डाला था. इसी इलाके में पिछले सप्ताह आवारा कुत्तों ने रंगपुरी पहाड़ी में एक और बच्चे को बुरी तरह से नोचा था. इलाज के बाद अब वह स्वस्थ है.

निगम पार्षदों के पास आती हैं शिकायतेंः कुत्तों से परेशान लोग निगम पार्षदों के ऑफिस व नगर निगम के अधिकारियों से शिकायत करते हैं. बुजुर्ग पार्क में मॉर्निंग-इवनिंग वॉक करने, मंदिर या कहीं और जाते हैं तो उन्हें आवारा कुत्ते काट लेते हैं या गिरा देते हैं. दरअसल नगर निगम के पास आवारा कुत्तों को रखने के लिए पर्याप्त संख्या में शेल्टर होम नहीं हैं. न ही कुत्तों के इलाज के लिए पर्याप्त अस्पताल हैं. कुत्तों को मोतियाबिंद हो जाता है तो उन्हें रात में दिखाई नहीं देता है, जिससे वे आक्रामक हो जाते हैं.

एनजीओ से निगम के अधिकारी भी हो जाते हैं परेशानः निगम के अधिकारियों का कहना है कि जैसे ही कर्मचारी कुत्तों को पकड़ने जाते हैं, उनके पास एनिमल एनजीओ वालों का फोन आ जाता है. वेटरनरी विभाग की टीम कुत्तों को पकड़ती है तो एनजीओ वाले सवाल करते हैं कि कुत्ते क्यों उठाया. कुत्ते को जहां से उठाया है वापस वहीं छोड़कर आओ. इससे अधिकारी भी बेबस हो जाते हैं.

इसलिए जुटते हैं कुत्तेः राजधानी के कई इलाकों में जगह-जगह खुली मीट आदि की दुकानों से निकलने वाला अपशिष्ट स्थानीय दुकानदार इधर-उधर फेंक देते हैं. इसे खाने के लिए दिन-रात दर्जनों कुत्ते घूमते रहते हैं. वहीं, कुछ मांसाहारी होटलों, रेस्टोरेंट से भी जूठन आदि इधर-उधर फेंक दिया जाता है. चोरी-छिपे ऐसे अपशिष्ट डालने वाले दुकानदारों व होटल मालिकों पर कार्रवाई न किए जाने से यह समस्या और बढ़ जाती है.

कुत्तों के संबंध में ये हैं नियम

  1. आवारा कुत्तों से कैसा बर्ताव किया जाए, यह बताना निगम की जिम्मेदारी है.
  2. कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नसबंदी व लोगों को रेबीज से बचाने के लिए टीकाकरण करना निगम की जिम्मेदारी है.

कुत्तों के बारे में यह भी जानें

  1. टीकाकरण नहीं हुआ है तो कुत्ते के काटने से रेबीज का खतरा रहता है. भले ही कुत्ता किसी भी नस्ल का हो, पालतू हो या आवारा.
  2. पालतू कुत्ते का टीकाकरण व निगम में उसका रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है.
  3. पालतू कुत्ता सड़क, पार्क आदि में मल-मूत्र फैलाता है तो उसकी सफाई करना कुत्ते के मालिक की जिम्मेदारी है.

इसलिए हमलावर हो जाते हैं आवारा कुत्ते

  1. मोतियाबिंद हो जाने पर उन्हें रात को दिखाई नहीं देता है. दिन में भी उन्हें कम दिखता है. इससे वह आगंतुकों को पहचान नहीं पाते और असुरक्षा की भावना में किसी पर भी हमला कर देते हैं.
  2. पेट में कीड़े हो जाने के कारण कुत्तों को बेचैनी होती है, वे चिड़चिड़े होकर हमलावर हो जाते हैं. होटलों से निकला बासी, संक्रमित फंगलयुक्त मीट, अंडा, चिकन या अन्य भोजन खाने से ये कीड़े होते हैं.
  3. रेक्टल इंचिंग (मलाशय में खुजली) होने के कारण भी कुत्ते बेचैन होकर आक्रामक हो जाते हैं. फीमेल डॉग में यह पीरियड्स के दौरान होता है.
  4. प्रजनन के समय फीमेल डॉग अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर आक्रामक हो जाती है. पास आने पर वह हमला कर देती है.
  5. अजनबी के आने पर कुत्ते उन पर हमला कर देते हैं क्योंकि उन्हें अपने आसपास रहने वाले लोगों की पहचान होती है.

यह भी पढ़ेंः Same Sex Marriage: 'सुप्रीम' सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा- 5 वर्षों में समाज में समलैंगिक संबंधों की स्वीकार्यता बढ़ी है

जानलेवा साबित हो रहे हैं आवारा कुत्ते

नई दिल्ली: राजधानी में आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है. आवारा कुत्तों द्वारा बच्चों को नोचे जाने की खबरें विचलित तो करती ही हैं, सरकारी विभागों की लापरवाही भी उजागर करती हैं. आवारा कुत्तों के खौफ से बच्चों और बुजुर्गों का घर से निकलना दूभर है. अधिकारी कुछ कदम उठाते भी हैं तो एनिमल एजीओ वाले उन्हें काम नहीं करने देते हैं.

एनजीओ के हस्तक्षेप से निगम पार्षद भी बेबस हैं. एनजीओ के लोग उन पर एनिमल क्रुएलिटी का केस करने की धमकी देते हैं. दिल्ली के जामिया नगर, ओखला, बदरपुर, महरौली, मुनिरका, रानीबाग, न्यू मोतीनगर, कर्मपुरा, भारत नगर, सीलमपुर, दिलशाद गार्डन, आश्रम, हजरत निजामुद्दीन, सीमापुरी, दिलशाद कॉलोनी, भजनपुरा, जैतपुर, शाहीन बाग समेत तमाम इलाकों में आवारा कुत्तों की समस्या गंभीर बनी हुई है. अधिकारियों का कहना है कि टीकाकरण व नसबंदी का काम निगम की ओर से एनजीओ वालों को दिया जाता है. लेकिन वे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, इसलिए कुत्तों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.

एमसीडी के वेटरनरी विभाग में 15 साल से नहीं हुई भर्तीः राजधानी में जगह-जगह कुत्तों की संख्या बढ़ने का कारण यह भी है कि दिल्ली नगर निगम के वेटरनरी विभाग में पिछले 15 सालों से भर्ती नहीं हुई है. निगम पार्षद राजपाल सिंह ने बताया कि पहले एमसीडी के हर जोन में 12 से 15 लोगों की टीम होती थी. यह टीम आवारा कुत्ते, बंदर, गाय समेत अन्य मवेशियों को पकड़कर शेल्टर होम पहुंचाती थी.

विभाग के कर्मचारी एक-एक कर रिटायर होते गए और नई भर्ती हुई नहीं. इस कारण अब कर्मचारियों की संख्या हर जोन में दो से तीन के बीच रह गई है. अब यह विभाग पूरी तरह से एनजीओ पर निर्भर हो गया है और एनजीओ वाले निगम से फंड लेते हैं लेकिन काम नहीं कर रहे हैं. राजपाल सिंह ने बताया कि दिल्ली सरकार निगम को फंड नहीं दे रही है जिस कारण निगम में भर्तियां नहीं हो पा रही हैं. अब तो निगम में भी आम आदमी पार्टी की सत्ता है फिर भी निगम को फंड नहीं मिल रहा है.

वसंत कुंज और जामिया नगर में कुत्ते ले चुके हैं मासूमों की जानः जामिया नगर में वर्ष 2015 में सात साल के मासूम को पांच-छह कुत्तों ने नोंचकर मार डाला था. बच्चे के साथियों ने कुत्तों को भगाने का प्रयास किया तो कुत्तों ने उन्हें भी दौड़ा लिया था. इस घटना के बाद लंबे समय तक लोगों ने उधर जाना बंद कर दिया था. वहीं पिछले माह वसंत कुंज में आवारा कुत्तों ने दो सगे भाइयों को नोच कर मार डाला था. इसी इलाके में पिछले सप्ताह आवारा कुत्तों ने रंगपुरी पहाड़ी में एक और बच्चे को बुरी तरह से नोचा था. इलाज के बाद अब वह स्वस्थ है.

निगम पार्षदों के पास आती हैं शिकायतेंः कुत्तों से परेशान लोग निगम पार्षदों के ऑफिस व नगर निगम के अधिकारियों से शिकायत करते हैं. बुजुर्ग पार्क में मॉर्निंग-इवनिंग वॉक करने, मंदिर या कहीं और जाते हैं तो उन्हें आवारा कुत्ते काट लेते हैं या गिरा देते हैं. दरअसल नगर निगम के पास आवारा कुत्तों को रखने के लिए पर्याप्त संख्या में शेल्टर होम नहीं हैं. न ही कुत्तों के इलाज के लिए पर्याप्त अस्पताल हैं. कुत्तों को मोतियाबिंद हो जाता है तो उन्हें रात में दिखाई नहीं देता है, जिससे वे आक्रामक हो जाते हैं.

एनजीओ से निगम के अधिकारी भी हो जाते हैं परेशानः निगम के अधिकारियों का कहना है कि जैसे ही कर्मचारी कुत्तों को पकड़ने जाते हैं, उनके पास एनिमल एनजीओ वालों का फोन आ जाता है. वेटरनरी विभाग की टीम कुत्तों को पकड़ती है तो एनजीओ वाले सवाल करते हैं कि कुत्ते क्यों उठाया. कुत्ते को जहां से उठाया है वापस वहीं छोड़कर आओ. इससे अधिकारी भी बेबस हो जाते हैं.

इसलिए जुटते हैं कुत्तेः राजधानी के कई इलाकों में जगह-जगह खुली मीट आदि की दुकानों से निकलने वाला अपशिष्ट स्थानीय दुकानदार इधर-उधर फेंक देते हैं. इसे खाने के लिए दिन-रात दर्जनों कुत्ते घूमते रहते हैं. वहीं, कुछ मांसाहारी होटलों, रेस्टोरेंट से भी जूठन आदि इधर-उधर फेंक दिया जाता है. चोरी-छिपे ऐसे अपशिष्ट डालने वाले दुकानदारों व होटल मालिकों पर कार्रवाई न किए जाने से यह समस्या और बढ़ जाती है.

कुत्तों के संबंध में ये हैं नियम

  1. आवारा कुत्तों से कैसा बर्ताव किया जाए, यह बताना निगम की जिम्मेदारी है.
  2. कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नसबंदी व लोगों को रेबीज से बचाने के लिए टीकाकरण करना निगम की जिम्मेदारी है.

कुत्तों के बारे में यह भी जानें

  1. टीकाकरण नहीं हुआ है तो कुत्ते के काटने से रेबीज का खतरा रहता है. भले ही कुत्ता किसी भी नस्ल का हो, पालतू हो या आवारा.
  2. पालतू कुत्ते का टीकाकरण व निगम में उसका रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है.
  3. पालतू कुत्ता सड़क, पार्क आदि में मल-मूत्र फैलाता है तो उसकी सफाई करना कुत्ते के मालिक की जिम्मेदारी है.

इसलिए हमलावर हो जाते हैं आवारा कुत्ते

  1. मोतियाबिंद हो जाने पर उन्हें रात को दिखाई नहीं देता है. दिन में भी उन्हें कम दिखता है. इससे वह आगंतुकों को पहचान नहीं पाते और असुरक्षा की भावना में किसी पर भी हमला कर देते हैं.
  2. पेट में कीड़े हो जाने के कारण कुत्तों को बेचैनी होती है, वे चिड़चिड़े होकर हमलावर हो जाते हैं. होटलों से निकला बासी, संक्रमित फंगलयुक्त मीट, अंडा, चिकन या अन्य भोजन खाने से ये कीड़े होते हैं.
  3. रेक्टल इंचिंग (मलाशय में खुजली) होने के कारण भी कुत्ते बेचैन होकर आक्रामक हो जाते हैं. फीमेल डॉग में यह पीरियड्स के दौरान होता है.
  4. प्रजनन के समय फीमेल डॉग अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर आक्रामक हो जाती है. पास आने पर वह हमला कर देती है.
  5. अजनबी के आने पर कुत्ते उन पर हमला कर देते हैं क्योंकि उन्हें अपने आसपास रहने वाले लोगों की पहचान होती है.

यह भी पढ़ेंः Same Sex Marriage: 'सुप्रीम' सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा- 5 वर्षों में समाज में समलैंगिक संबंधों की स्वीकार्यता बढ़ी है

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