नई दिल्ली: आज पूरा देश भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की पुण्यतिथि को शहीद दिवस के रूप में मनाता है. लाहौर की जेल में 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी. भगत सिंह की दिल्ली से कई सारी यादें जुड़ी हुई हैं.
दिल्ली, विधानसभा और संसद भवन में उनकी प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के वाइस रीगल लॉज के तहखाने में बनी भगत सिंह की स्मृतियों से जुड़ी एक कोठरी को संरक्षित भी किया गया है. इस कोठरी में शहीद ए आजम भगत सिंह को अंग्रेजों ने एक दिन के लिए कैद करके रखा था. अब यह इमारत डीयू कुलपति का कार्यालय है. कोठरी में सुराही, लालटेन और एक खाट रखी गई है, जिस पर रात को कैद के दौरान भगत सिंह सोए थे. साथ ही शहीदों के चित्र भी रखे गए हैं.
इसी कक्ष में एक पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र भी खोला गया है, जिसमें शहीद भगत सिंह के लेखन और विद्वानों द्वारा उनके ऊपर हुए अन्य काम प्रदर्शित किए गए हैं. यह कोठरी छात्रों को दिखाने के लिए महीने के दूसरे और चौथे शनिवार को खोली जाती है. डीयू का एक कॉलेज भी भगत सिंह के नाम से है और सुखदेव और राजगुरू के नाम से भी एक-एक कॉलेज है.
उल्लेखनीय है कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने आठ अप्रैल 1929 को संसद भवन स्थित केंद्रीय असेंबली में बम फेंका था और गिरफ्तारी दी थी. उन्हें गिरफ्तार करके संसद मार्ग थाने ले जाया गया था. थाने के इसका रिकॉर्ड मौजूद है. उसी समय ट्रायल के दौरान भगत सिंह को डीयू में कैद करके रखा गया था. इसके बाद छह जून को दिल्ली सेशन कोर्ट में भगत सिंह का बयान दर्ज किया गया था. 12 जून को उन्हें सजा सुनाई गई थी. फिर 14 जून को लाहौर भेज दिया गया था. जानकारी के अनुसार भगत सिंह दरियागंज में वर्ष 1923 में हुए सांप्रदायिक दंगे को भी कवर करने के लिए दिल्ली आए थे. तब वे गणेश शंकर विद्यार्थी के कानपुर से छपने वाले अखबार प्रताप में नौकरी करते थे. उस समय वे सीताराम बाजार स्थित एक धर्मशाला में रुके थे.
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