नई दिल्ली: डिजिटल युग में इंटरनेट के जरिए सूचना पलक झपकते ही सामने वाले को मिल जाती है. सात समंदर पार भी चाहे फेस टू फेस बात करनी हो या फिर संदेश के जरिए चुटकियों में लोग कर लेते हैं.
यही वजह है कि पहले की तरह अब डाकघरों में चिट्ठी भेजने वालों की भीड़ नहीं होती. सरकारी पत्र व सूचनाएं भेजे जाने के लिए पोस्ट ऑफिस की भूमिका सिमट कर रह गई है.
पोस्ट ऑफिस पर घटता विश्वास
पोस्ट ऑफिस जिसका देश में सबसे बड़ा नेटवर्क हुआ करता था, आखिर अपना विश्वास क्यों खो रहा है? यह दिल्ली के हितेश शर्मा हमें बताते हैं. वे कहते कि एक पत्र का इंतजार वह बड़ी बेसब्री से कर रहे थे. स्पीड पोस्ट से वह पत्र आने वाला था. 23 जुलाई को दिल्ली के बाराखंभा रोड से यह पत्र स्पीड पोस्ट के जरिए उनके नाम भेजा गया. तो उन्हें तकरीबन 14 दिन बाद मिला.
हितेश बताते हैं कि उन्होंने दिल्ली मेट्रो से कुछ जानकारी मांगी थी. इसके लिए आरटीआई लगाई थी और उस आरटीआई का जवाब उनके पास जुलाई के दूसरे पखवाड़े में आना था. जवाब आने में देरी को लेकर जब उन्होंने संपर्क किया तो पता चला कि 23 जुलाई को उनके पते पर स्पीड पोस्ट के जरिए पत्र भेज दिया गया. मगर 24 जुलाई, 25 जुलाई के बाद एक-एक तारीख निकलती चली गई और वह स्पीड पोस्ट उन्हें बाहरी दिल्ली के समयपुर बादली इलाके में स्थित घर पर 7 अगस्त को प्राप्त हुआ.
स्पीड पोस्ट की तारीख व मोहर भी लिफाफे पर 23 जुलाई की लगी हुई थी. आखिर क्या वजह रही कि उन्हें 14 दिन बाद वह स्पीड पोस्ट मिला? उनका कहना है अगर कोई वैसा अतिआवश्यक पत्र जिसमें कहीं नियुक्ति का मामला हो या अन्य कोई जानकारी मांगी गई हो, स्पीड पोस्ट जो पोस्ट ऑफिस के जरिये सबसे जल्दी पत्र भेजने का जरिया है, वह 14-15 दिन बाद अगर लोगों को मिलेगा तो यह उनकी जिंदगी के साथ खिलवाड़ होगा.
उनकी शिकायत जैसे पोस्ट ऑफिस में ढेरों शिकायत हैं. गलत पते पर हमेशा पोस्टमैन द्वारा डिलीवरी, रिटायर्ड हो चुके पोस्टमैन को विभाग द्वारा काम लेना, इन शिकायतों को उन्होंने एक पत्र में लिखकर अब केंद्र सरकार को भेजा है. उन्होंने केंद्रीय संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद के नाम इस घटना व अन्य शिकायतों का जिक्र कर उन्होंने एक पत्र भेजा है और उम्मीद जताई है कि वे पोस्ट ऑफिस की व्यवस्था को दुरुस्त बनाएं.