नई दिल्ली: परिस्थियां अक्सर इम्तिहान लेती हैं, जो हार न मानकर हर मुश्किल से लड़ जाते हैं वही किस्मत के सिकंदर कहलाते हैं. हम बात कर रहे हैं तेलंगाना के आदिवासी इलाके में जन्में ऐसे ही एक सिकंदर अजमेरा उमेश चंद्रा की है. महज 3 साल की उम्र में नक्सलियों ने उनके पिता की हत्या कर दी इस दर्द के कुछ ही दिन बाद मां का साया भी उनके सिर से उठ गया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
लड़ रहे हैं चुनाव
तेलंगाना से प्रतिज्ञा लेकर दिल्ली पहुंचे अजमेरा उमेश चंद्रा जेएनयू के छात्र हैं, और इस बार इलेक्शन में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में काउंसलर के पद पर एबीवीपी के उम्मीदवार भी हैं. अजमेरा का कहना है कि अब उनका कहना है कि नक्सलियों का खात्मा ही उनका लक्ष्य है. उमेश चंद्रा अपनी काबिलियत के बल पर जेएनयू में एमफिल में पढ़ाई कर रहे हैं. ईटीवी भारत से हुई खास बातचीत में अजमेरा उमेश चंद्रा ने अपने जिंदगी के उन संघर्ष भरे पलों को साझा किया जो किसी की भी हिम्मत तोड़कर रख दें. उन्होंने बताया कि वे तेलंगाना के करीमनगर जिले से ताल्लुक रखते हैं जो कि नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. उनके पिता साल 997 में इन्हीं नक्सलियों के आतंक का शिकार हो गए थे और कुछ ही दिन बाद मां ने भी दम तोड़ दिया था. जिसके चलते करीब 3 साल की उम्र में ही अभिभावकों को खो दिया था.
उन्होंने बताया कि उनके पिता एक समाज सेवक थे, उनका काम नक्सलियों को नहीं पसंद आया और उन्हें जान से मार दिया गया. वहीं उनकी मां नक्सलियों की बार-बार दी जाने वाली धमकी और हमले से परेशान हो कर चल बसीं. उन्होंने बताया कि उनका और बड़े भाई का पालन पोषण उनके चाचा-चाची ने किया है.
'नक्सलवाद को खत्म करना जिंदगी का लक्ष्य'
साथ ही कहा कि नक्सलियों ने चाचा पर भी हमला किया था लेकिन वह बच गए थे. उमेश चंद्रा ने बताया कि उन्हें पढ़ाई के लिए बचपन से ही संघर्ष करना पड़ा रहा है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि जिस नक्सलवाद की वजह से बचपन में अनाथ हो गया अब उसी नक्सलवाद को खत्म करना ही ज़िंदगी का लक्ष्य बन गया है. वहीं जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में खड़े होने के पीछे जेएनयू में उनके बीते सालों के कटु अनुभव रहे हैं. अपने अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि वो 2015 में जेएनयू में आये थे. उस समय विश्वविद्यालय में देशविरोधी नारे लग रहे थे. उन्होंने कहा कि कई ऐसे तत्व हैं जो छात्रों का ब्रेनवॉश करके उनमें गलत विचार डालते हैं. देश के इतने बड़े विश्वविद्यालय में डर्टी पॉलिटिक्स खेली जाती है और तो और देश को टुकड़ों में तोड़ने की योजनाएं बनती हैं. उन्होंने कहा कि अपने अनुभवों से यह समझ आया कि बड़े पैमाने पर नक्सलवाद को खत्म करना है तो शुरुआत उसकी जड़े खत्म करने से करनी होगी.
लेफ्ट देता है झूठा प्रलोभन-अजमेरा
उन्होंने कहा कि जेएनयू में अर्बन नक्सल बहुत बड़ी समस्या है जो भी नया छात्र आता है उसे लेफ्ट झूठे प्रलोभन देकर अपने विचारों से प्रभावित करता है. वहीं जिन छात्रों को हॉस्टल नहीं मिल पाता है. उन छात्रों को वो चुनाव तक अपने साथ रखते हैं. उसके बाद हॉस्टल से निकाल देते हैं और इस दौरान तक उस छात्र का ब्रेनवॉश कर देते हैं. उनमें से कुछ छात्र इनके डर्टी पॉलिटिक्स का शिकार हो जाते हैं. उमेश चंद्रा ने कहा कि वामपंथ और अर्बन नक्सल को देश से हटना है इसी उद्देश्य से छात्रसंघ चुनाव में खड़ा हुआ हूं. इसके अलावा वो कहते हैं कि राष्ट्रवाद मेरे लिए देश से नक्सलिज्म को खत्म कर चौमुखी विकास करना है. उन्होंने कहा कि जेएनयू में जो विचारधारा की लड़ाई होती है. वह बहुत ही खराब होती है जो छात्र पढ़ाई करने के लिए आते हैं लेफ्ट के लोग उनके जीवन को खराब करते हैं. साथ ही कहा जो आज खुद को लेफ्ट यूनिटी बोल रहे हैं वह धोखा है वह लोग आज एकजुट होकर भी एक नहीं है एक दूसरे से लड़ते रहते हैं.
इसके अलावा उन्होंने कहा कि आज जेएनयू में एबीवीपी काफी मजबूत हुई है जिसके कारण लेफ्ट को एक साथ आना पड़ा है. यह सब 2015 के छात्रसंघ चुनाव में मिली लेफ्ट को हार का की नतीजा है.
बता दें कि 2015 में एबीवीपी ने संयुक्त सचिव और काउंसलर पर जीत दर्ज की थी. अजमेरा उमेशचंद्र ने कहा कि वह इस बार के छात्रसंघ चुनाव में हॉस्टल, स्पोर्ट्स सुविधा, मेडिकल सेंटर, मेरिट कम मीन्स स्कॉलरशिप, प्लेसमेंट सेल जैसे मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं उन्होंने कहा कि जिस तरह से देश में बदलाव हो रहा है. उसी तरह इस बार के छात्रसंघ के चुनाव में लेफ्ट यूनिटी को एबीवीपी के हाथों बुरी तरह से हार मिलने जा रही है.