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कंगाली की तरफ बढ़ रही साउथ एमसीडी, आंकड़े बता रहे कहानी - 2020 में साउथ एमसीडी का रेवेन्यू

सबसे अमीर मानी जाने वाली साउथ MCD लगातार कंगाली की ओर बढ़ रही है. एक तरफ जहां सिर्फ फाइनेंस कमीशन लागू होने और दिल्ली सरकार से फंड नहीं मिलने के चलते निगम कर्मचारियों की सैलरी निकालने के अलावा अन्य सभी मामलों में फिर से कर कदम रख रही है तो वहीं दूसरी तरफ निगम का रेवेन्यू साल दर साल कम होता जा रहा है.

साउथ एमसीडी का रेवेन्यू
साउथ एमसीडी का रेवेन्यू
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Published : Feb 26, 2021, 8:21 PM IST

Updated : Mar 3, 2021, 9:44 PM IST

नई दिल्ली: तीनों निगमों में सबसे अमीर मानी जाने वाली साउथ MCD लगातार कंगाली की ओर बढ़ रही है. एक तरफ जहां सिर्फ फाइनेंस कमीशन लागू होने और दिल्ली सरकार से फंड नहीं मिलने के चलते निगम कर्मचारियों की सैलरी निकालने के अलावा अन्य सभी मामलों में फिर से कर कदम रख रही है तो वहीं दूसरी तरफ निगम का रेवेन्यू साल दर साल कम होता जा रहा है. बीते कई सालों के ऐसे ही कुछ आंकड़े निगम की असली स्थिति बयां कर रहे हैं.

कंगाली की ओर बढ़ती हुई साउथ एमसीडी!

150 करोड़ से घटकर 16 करोड़ ही हुआ रेवेन्यू

साल 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ साउथ MCD में अपना राज कायम किया था. 2017 से 2018 यानी वित्तीय वर्ष साल 2017-18 में निगम के विज्ञापन विभाग का रेवेन्यू टारगेट 120 करोड़ था लेकिन असल में इस साल निगम ने 133.73 करोड़ रुपये कमाए.

अगले साल 2018-19 में रिवेन्यू बढ़कर 149.77 करोड़ हुआ लेकिन उसके बाद से जैसे इस रेवेन्यू को भी किसी की नजर लग गई. साल 2019-20 में निगम का रेवेन्यू टारगेट 160 करोड़ था लेकिन यहां निगम असल में 2017 के आंकड़ों से भी नीचे पहुंच गई. इस साल निगम ने कुल 128.57 करोड़ रुपये कमाए.

कोरोना को कारण बताकर साल 2020-21 में निगम में रेवेन्यू टारगेट 165 करोड़ से घटाकर 80 करोड़ किया गया लेकिन इस साल निगम को महज 16.63 करोड़ रुपए ही प्राप्त हुए.

साउथ एमसीडी के बजट के बारे में जानिए
साउथ एमसीडी के बजट के बारे में जानिए

विपक्ष ने बीजेपी को बताया जिम्मेदार
विपक्ष में बैठी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही रेवेन्यू के नीचे आते स्लोप के लिए भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार बताती हैं.

नेता विपक्ष प्रेम चौहान कहते हैं न कि भारतीय जनता पार्टी खुद को कंगाल बताकर दिल्ली सरकार से फंड की मांग करती है लेकिन खुद अब ही टैक्स काटकर, कभी पार्किंग माफियाओं को फायदा पहुंचा कर तो कभी निजी कंपनियों के साथ भागीदारी कर अपना रेवेन्यू घटाती जा रही है.

उन्होंने कहा कि असल में ये बड़ी कंपनियां भारतीय जनता पार्टी के बड़े बड़े नेताओं की ही हैं जिन्हें फायदा पहुंचाया जाता है और ऐसे में निगम का रेवेन्यू साल दर साल कम होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह सही वक्त है कि दिल्ली की जनता एक बेहतर विकल्प चुनेगी.

दिल्ली सरकार ने भी कम दी बकाया राशि

निगम के ही आंकड़े बताते हैं कि बीते सालों में दिल्ली सरकार से मिलने वाला पैसा भी कम ही हुआ है. साल 2018-19 के निगम के आंकड़े बताते हैं निगम का कुल 1667.64 करोड़ दिल्ली सरकार पर बकाया था लेकिन सरकार ने सिर्फ 927.89 करोड़ दिया.

2019-20 में पांचवें फाइनेंस कमीशन के बाद डिमांड 1296.81 की थी लेकिन मिला सिर्फ 741.44 करोड़. साल 2020-21 में 1158.17 करोड़ मिलना था लेकिन दिया गया सिर्फ 461.99 करोड़. ऐसे में निगम पिछले कई सालों से वित्तीय संकट में है.

बीजेपी-आप दोनों ही कर रही राजनीति: कांग्रेस

कांग्रेस दल के नेता अभिषेक दत्त कहते हैं कि निगम की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी और दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी सरकार दोनों ही का निगम के लोगों और दिल्ली की आम जनता की तरफ कोई ध्यान नहीं है.

एक तरफ दिल्ली सरकार पहले ही फंड कटौती करने के बावजूद फंड जारी नहीं कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ निगम में बैठे नेताओं का भी रेवेन्यू की ओर कोई ध्यान ही नहीं है. ऐसे में जब पैसा ही नहीं है तो निगम को कैसे चलाया जाए. उन्होंने निगम को भंग करने की मांग की है.

'जनता के लिए काम कर रही साउथ एमसीडी'

वहीं आरोपों का जवाब देते हुए नेता सदन नरेंद्र चावला कहते हैं कि दिल्ली सरकार की हरकतों के चलते साउथ MCD कि यह स्थिति हुई है जहां तक रेवेन्यू की बात है तो खोलना के चलते हर चीज प्रभावित हुई तो निगम पर भी असर पड़ा हालांकि कोशिश की जा रही है कि रिवेन्यू को बढ़ाया जाए.

उन्होंने कहा कि मौजूदा वक्त में विपक्ष का काम महज आलोचना करना है जबकि सच्चाई है कि भारतीय जनता पार्टी निगमों को बेहतर बनाने के लिए काम कर रही है और लगातार करती रहेगी.

गौरतलब है कि अगले ही साल नगर निगम चुनाव भी होने हैं ऐसे में आम आदमी पार्टी दावा कर रही है कि भ्रष्टाचार से परेशान हो चुकी दिल्ली अबकी बार आम आदमी पार्टी को ही विकल्प के तौर पर चुनेगी, जबकि भाजपा नेताओं का कहना है कि निगम में भारतीय जनता पार्टी इसलिए हैं क्योंकि लोगों का विश्वास भारतीय जनता पार्टी पर है और यह अबकी बार भी कायम रहेगा.

नई दिल्ली: तीनों निगमों में सबसे अमीर मानी जाने वाली साउथ MCD लगातार कंगाली की ओर बढ़ रही है. एक तरफ जहां सिर्फ फाइनेंस कमीशन लागू होने और दिल्ली सरकार से फंड नहीं मिलने के चलते निगम कर्मचारियों की सैलरी निकालने के अलावा अन्य सभी मामलों में फिर से कर कदम रख रही है तो वहीं दूसरी तरफ निगम का रेवेन्यू साल दर साल कम होता जा रहा है. बीते कई सालों के ऐसे ही कुछ आंकड़े निगम की असली स्थिति बयां कर रहे हैं.

कंगाली की ओर बढ़ती हुई साउथ एमसीडी!

150 करोड़ से घटकर 16 करोड़ ही हुआ रेवेन्यू

साल 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ साउथ MCD में अपना राज कायम किया था. 2017 से 2018 यानी वित्तीय वर्ष साल 2017-18 में निगम के विज्ञापन विभाग का रेवेन्यू टारगेट 120 करोड़ था लेकिन असल में इस साल निगम ने 133.73 करोड़ रुपये कमाए.

अगले साल 2018-19 में रिवेन्यू बढ़कर 149.77 करोड़ हुआ लेकिन उसके बाद से जैसे इस रेवेन्यू को भी किसी की नजर लग गई. साल 2019-20 में निगम का रेवेन्यू टारगेट 160 करोड़ था लेकिन यहां निगम असल में 2017 के आंकड़ों से भी नीचे पहुंच गई. इस साल निगम ने कुल 128.57 करोड़ रुपये कमाए.

कोरोना को कारण बताकर साल 2020-21 में निगम में रेवेन्यू टारगेट 165 करोड़ से घटाकर 80 करोड़ किया गया लेकिन इस साल निगम को महज 16.63 करोड़ रुपए ही प्राप्त हुए.

साउथ एमसीडी के बजट के बारे में जानिए
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विपक्ष ने बीजेपी को बताया जिम्मेदार
विपक्ष में बैठी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही रेवेन्यू के नीचे आते स्लोप के लिए भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार बताती हैं.

नेता विपक्ष प्रेम चौहान कहते हैं न कि भारतीय जनता पार्टी खुद को कंगाल बताकर दिल्ली सरकार से फंड की मांग करती है लेकिन खुद अब ही टैक्स काटकर, कभी पार्किंग माफियाओं को फायदा पहुंचा कर तो कभी निजी कंपनियों के साथ भागीदारी कर अपना रेवेन्यू घटाती जा रही है.

उन्होंने कहा कि असल में ये बड़ी कंपनियां भारतीय जनता पार्टी के बड़े बड़े नेताओं की ही हैं जिन्हें फायदा पहुंचाया जाता है और ऐसे में निगम का रेवेन्यू साल दर साल कम होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह सही वक्त है कि दिल्ली की जनता एक बेहतर विकल्प चुनेगी.

दिल्ली सरकार ने भी कम दी बकाया राशि

निगम के ही आंकड़े बताते हैं कि बीते सालों में दिल्ली सरकार से मिलने वाला पैसा भी कम ही हुआ है. साल 2018-19 के निगम के आंकड़े बताते हैं निगम का कुल 1667.64 करोड़ दिल्ली सरकार पर बकाया था लेकिन सरकार ने सिर्फ 927.89 करोड़ दिया.

2019-20 में पांचवें फाइनेंस कमीशन के बाद डिमांड 1296.81 की थी लेकिन मिला सिर्फ 741.44 करोड़. साल 2020-21 में 1158.17 करोड़ मिलना था लेकिन दिया गया सिर्फ 461.99 करोड़. ऐसे में निगम पिछले कई सालों से वित्तीय संकट में है.

बीजेपी-आप दोनों ही कर रही राजनीति: कांग्रेस

कांग्रेस दल के नेता अभिषेक दत्त कहते हैं कि निगम की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी और दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी सरकार दोनों ही का निगम के लोगों और दिल्ली की आम जनता की तरफ कोई ध्यान नहीं है.

एक तरफ दिल्ली सरकार पहले ही फंड कटौती करने के बावजूद फंड जारी नहीं कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ निगम में बैठे नेताओं का भी रेवेन्यू की ओर कोई ध्यान ही नहीं है. ऐसे में जब पैसा ही नहीं है तो निगम को कैसे चलाया जाए. उन्होंने निगम को भंग करने की मांग की है.

'जनता के लिए काम कर रही साउथ एमसीडी'

वहीं आरोपों का जवाब देते हुए नेता सदन नरेंद्र चावला कहते हैं कि दिल्ली सरकार की हरकतों के चलते साउथ MCD कि यह स्थिति हुई है जहां तक रेवेन्यू की बात है तो खोलना के चलते हर चीज प्रभावित हुई तो निगम पर भी असर पड़ा हालांकि कोशिश की जा रही है कि रिवेन्यू को बढ़ाया जाए.

उन्होंने कहा कि मौजूदा वक्त में विपक्ष का काम महज आलोचना करना है जबकि सच्चाई है कि भारतीय जनता पार्टी निगमों को बेहतर बनाने के लिए काम कर रही है और लगातार करती रहेगी.

गौरतलब है कि अगले ही साल नगर निगम चुनाव भी होने हैं ऐसे में आम आदमी पार्टी दावा कर रही है कि भ्रष्टाचार से परेशान हो चुकी दिल्ली अबकी बार आम आदमी पार्टी को ही विकल्प के तौर पर चुनेगी, जबकि भाजपा नेताओं का कहना है कि निगम में भारतीय जनता पार्टी इसलिए हैं क्योंकि लोगों का विश्वास भारतीय जनता पार्टी पर है और यह अबकी बार भी कायम रहेगा.

Last Updated : Mar 3, 2021, 9:44 PM IST
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