नई दिल्ली/गाजियाबाद: सनातन धर्म में सीता नवमी का विशेष महत्व बताया गया है. सीता नवमी के दिन मां सीता की पूजा-अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति के साथ ही जीवन की सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है. वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन राजा जनक के यहां मां सीता का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन को मां सीता के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
सीता नवमी का व्रत सुहागिनों और अविवाहित महिलाओं द्वारा रखा जाता है. मान्यता है कि सीता नवमी के दिन व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में बाधा बन रहे कष्टों का नाश होता है. पति-पत्नी के बीच वैवाहिक रिश्ते और मधुर होते हैं. प्रेम बढ़ता है. अविवाहित कन्याओं द्वारा सीता नवमी का व्रत रखने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है. जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो, उनको भी सीता नवमी पर व्रत रख पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से जल्द विवाह का योग बनता है.
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक माता सीता मां लक्ष्मी का स्वरूप हैं. सीता नवमी के दिन माता सीता पूजा अर्चना करने से मां लक्ष्मी स्वयं प्रसन्न होती हैं और साधक को विशेष आशीर्वाद प्रदान करती हैं. इस विशेष दिन पूजा पाठ करने से रोग, दोष और परिवारिक संकट दूर होते हैं.
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि प्रारंभ: 28 अप्रैल (शुक्रवार) शाम 04:01 बजे से शुरू.
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि समाप्त: 29 अप्रैल (शनिवार) शाम 06:22 बजे पर समाप्त.
उदया तिथि: सीता नवमी 29 अप्रैल (शनिवार) को मनाई जाएगी.
सीता नवमी पूजा-विधि
० सीता नवमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें. संभव हो तो पवित्र नदी में स्नान करें. अन्यथा घर पर नहाने के पानी में गंगा जल डालकर स्नान कर सकते हैं. स्नान के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहने.
० मंदिर की साफ-सफाई करें और पूजा के स्थान को गंगा जल डालकर शुद्ध करें.
० चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और माता सीता की प्रतिमा स्थापित करें.
० सीता नवमी के व्रत का संकल्प लें. सीता माता को फल, फूल और मिठाई का भोग लगाएं.
० सीता नवमी की पूजा के बाद आरती करें. पूजा-पाठ, आरती समाप्त होने के बाद प्रसाद वितरित करें. सीता नवमी के व्रत का पारण अगले दिन करें.
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