नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में यूं तो चुनी हुई सरकार है, लेकिन केंद्र शासित प्रदेश होने के लिहाज से यहां सरकार के सर्वेसर्वा उपराज्यपाल हैं. उनका फैसला ही अंतिम माना जाता है. एमसीडी चुनाव संपन्न होने के साथ ही अब उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच तकरार की नई जमीन तैयार हो गई है. इसकी शुरुआत एमसीडी में पार्षद के मनोनयन से हो सकती है. (Tussle between LG Saxena and CM Arvind Kejriwal)
आम आदमी पार्टी एमसीडी में जीत हासिल करने के बाद अब वहां मेयर, डिप्टी मेयर आदि पदों के लिए नाम तय करने की तैयारियों में जुट गई है, साथ ही एमसीडी मामलों के जानकार 10 लोगों को मनोनीत करने के संबंध में नाम तय कर उपराज्यपाल को भेजने की तैयारी में है. वहीं मौजूदा परंपरा से अलग अगर उपराज्यपाल केंद्र सरकार की सिफारिश पर मनोनीत पार्षदों का नाम तय करते हैं तो उन्हें दिल्ली सरकार के हमले का सामना करना पड़ सकता है. बीजेपी लगातार मांग कर रही है कि केंद्र सरकार के अधीन आने से उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की सिफारिश की जगह केंद्र की सलाह पर एमसीडी में 10 पार्षद मनोनीत करें.
एमसीडी में पार्षद मनोनीत करने का क्या है नियम? दिल्ली नगर निगम (डीएमसी) एक्ट में प्रावधान है कि उपराज्यपाल शहर के स्थानीय निकायों के 10 विशेषज्ञ लोगों को मनोनीत कर सकते हैं. ऐसे लोग जिनकी उम्र 25 साल से अधिक होने के साथ एमसीडी प्रशासन का अनुभव होगा, उन्हें पार्षद मनोनीत किया जा सकता है. एमसीडी चुनावी नतीजे आने के बाद सियासी गलियारे में इस समय मनोनीत सदस्यों की चर्चा भी आम है.
एमसीडी मामलों के जानकार जगदीश ममगाईं बताते हैं कि नई दिल्ली नगरपालिका परिषद यानी (एनडीएमसी) दिल्ली छावनी बोर्ड भी केंद्र सरकार के अधीन है और उनमें केंद्र सरकार ही सदस्य और अन्य नियुक्तियां करती है. इस तरह अब एमसीडी भी केंद्र सरकार के अधीन आ गई है. इसलिए उपराज्यपाल के पास अधिकार है कि वो पाषर्द मनोनीत कर सकते हैं.
उपराज्यपाल के अधिकार से क्या बीजेपी को मिलेगा फायदा? प्रदेश बीजेपी एमसीडी में 10 पार्षद मनोनीत कराने के मामले में काफी सक्रिय हो चुकी है और वह एमसीडी में पार्षद मनोनीत कराने के लिए विशेषज्ञों की सूची बनाने में जुट गई है. बीजेपी की कोशिश है कि एमसीडी में सदन की पहली बैठक से पहले केंद्र सरकार की सिफारिश पर उपराज्यपाल पार्षद मनोनीत कर दें. इन मनोनीत पार्षदों के माध्यम से उसकी एमसीडी के नरेला, मध्य को सिविल लाइन जोन में बहुमत हासिल करने की मंशा है.
मनोनीत पार्षदों को केवल जोन समितियों के चुनाव में मतदान करने का अधिकार है और बीजेपी इसका लाभ उठाना चाहती है. चुनाव नतीजों के अनुसार बीजेपी का एमसीडी के 12 में से चार जोन में पहले ही बहुमत है. इस मामले में बीजेपी के सफल होने पर वह स्थाई समिति के अध्यक्ष पद पर कब्जा कर सकती है.
आम आदमी पार्टी को इससे क्या होगा नफा-नुकसान? एमसीडी चुनाव में कुल 250 सीटों में से 134 सीटें आम आदमी पार्टी को मिली है और 104 सीटें बीजेपी को. केंद्र सरकार की सलाह पर एमसीडी में अगर 10 पार्षद मनोनीत हुए तो सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच का अंतर कम हो जाएगा. ऐसे में एमसीडी के 12 जोनों में से कई जोन और समितियों में बीजेपी का कब्जा होगा.
इसलिए सूत्र बताते हैं कि दिल्ली सरकार के बाद अब एमसीडी की सत्ता हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी भी एमसीडी में 10 पार्षद मनोनीत कराने की तैयारी में जुट गई है. वह भी एमसीडी के विशेषज्ञों की सूची तैयार करने में लग गई है. क्योंकि वह भी इन मनोनीत पार्षदों की मदद से नजफगढ़ जोन में बहुमत हासिल करना चाहती है इसके अलावा उसकी मध्य जोन में काफी अपनी स्थिति मजबूत करने की मंशा है एमसीडी सदन की पहली बैठक होने के एक सप्ताह बाद जोन समितियों के चुनाव होंगे.
क्या इससे पहले भी पार्षदों के मनोनयन को लेकर हुआ था मतभेद? 1997 में केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी. बीजेपी मुख्य विपक्षी दल था. इस दौरान दिल्ली में बीजेपी की सरकार थी. तब एमसीडी की कमान केंद्र सरकार के अधीन थी. लेकिन उपराज्यपाल ने दिल्ली बीजेपी सरकार की सिफारिश पर पार्षद मनोनीत किए थे. 1998 में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उसने बीजेपी सरकार की सिफारिश पर 10 मनोनीत पार्षदों को हटाकर अपनी पसंद के पार्षद मनोनीत करने की सिफारिश की. लेकिन हाईकोर्ट में उसके निर्णय पर रोक लगा दी थी.
2002 में एमसीडी में कांग्रेस सरकार बन गई लेकिन प्रदेश कांग्रेस व उसकी दिल्ली सरकार के बीच टकराव होने के कारण कई साल तक पार्षद मनोनीत नहीं हो सके. जबकि इस दौरान 2004 तक केंद्र में बीजेपी की सरकार थी 2012 में भी दिल्ली सरकार ने तीनों एमसीडी में पार्षद मनोनीत किए थे.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक? राजनीतिक विश्लेषक मनोज मिश्र कहते हैं केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करने वाले उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के साथ एमसीडी के भी मुखिया हैं. दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार व उपराज्यपाल के बीच तकरार जगजाहिर है. उपराज्यपाल की ओर से दिल्ली सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप ही नहीं किया जाता, बल्कि वह दिल्ली सरकार के खिलाफ विभिन्न मामलों में आदेश ही देते रहते हैं अब उनके बीच एमसीडी के संबंध में भी टकराव देखने को मिलने के आसार इनकार नहीं किया जा सकता है. वह पहले से ही एमसीडी के मामलों में दिशा निर्देश दे रहे हैं इस कारण एमसीडी में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद भी उनका यह सिलसिला जारी रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
उपराज्यपाल और सीएम के बीच कब से शुरू हुई थी तकरार? दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के बीच टकराव की शुरुआत जून महीने में उसी वक्त शुरू हो गई थी जब सक्सेना को पदभार ग्रहण किए महज एक सप्ताह हुआ था. दिल्ली सरकार के कुछ अहम विभागों के अधिकारियों की मीटिंग बुलाए जाने पर आम आदमी पार्टी के विधायकों ने उपराज्यपाल पर संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन करने अपने दायरे से बाहर जाकर काम करने और दिल्ली सरकार के कार्य क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया था. उसके बाद तो दोनों पक्षों के बीच तलवारें खिंच गई. तल्खी तब और बढ़ गई जब उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री के सिंगापुर दौरे की फाइल पर मंजूरी देने से इनकार कर दिया था. पौधरोपण के कार्यक्रम में बैकग्राउंड पर प्रधानमंत्री और उपराज्यपाल का फोटो लगाए जाने से नाराज मुख्यमंत्री और मंत्री ने कार्यक्रम का वॉकआउट कर दिया तो जवाब में उपराज्यपाल ने भी दिल्ली सरकार के परिवहन मंत्री की गैरमौजूदगी में ही परिवहन विभाग के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट की शुरुआत कर दी.
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दोनों पक्षों के बीच संबंध उस वक्त और खराब हो गए जब उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार की नई आबकारी नीति को लेकर मुख्य सचिव से रिपोर्ट तलब की और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी उसके बाद तो डीटीसी बस खरीद मामले की जांच विधायक अमानतुल्लाह खान के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश दिल्ली जल बोर्ड के मामले में मुख्यमंत्री के द्वारा संपत्ति खरीद के एक मामले की जांच के आदेश देने के आरोप में दिल्ली सरकार के अलग-अलग विभागों के कई बड़े अधिकारियों को सस्पेंड करने और हाल ही में बिजली सब्सिडी की जांच के आदेशों की वजह से दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल की बीच दूरियां और बढ़ती चली गई. आम आदमी पार्टी ने उपराज्यपाल खादी ग्राम उद्योग में उनके कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाए आरोप लगाने वाले आम आदमी पार्टी नेताओं को कोर्ट के नोटिस भिजवा दिए और पार्टी नेताओं को हटाने का निर्देश दिया और एमसीडी में भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है.