नई दिल्लीः सनातन धर्म में रवि प्रदोष व्रत का विशेष महत्व बताया गया है. रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है. 13 अगस्त यानी कि रविवार को रवि प्रदोष व्रत है. सनातन धर्म में सावन का महीना बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. ऐसे में सावन के महीने में पढ़ने वाले प्रदोष व्रत का भी काफी महत्व बताया गया है. इस साल अधिक मास लगने से सावन दो महीने का है. इसलिए इस बार सावन के महीने में कुल चार प्रदोष व्रत पढ़ रहे हैं.
गाजियाबाद स्थित शिव शंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र के आचार्य शिव कुमार शर्मा के मुताबिक रविवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को रवि प्रदोष कहते हैं. सावन के महीने में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त में सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है. रवि प्रदोष व्रत के दिन शिवलिंग पर बेलपत्र के साथ मुट्ठी भर गेहूं अर्पित करें ऐसा करने से कैरियर में बड़ी सफलता के योग बनते हैं.
शुभ मुहूर्त
- अधिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 13 अगस्त (रविवार) सुबह 08:19 से शुरू
- अधिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि समाप्त: 14 अगस्त (सोमवार) सुबह 10:25 AM तक
- प्रदोष व्रत की पूजा का समय: प्रदोष काल 07:03 PM से 09:12 PM तक
आचार्य शिव कुमार शर्मा बताते हैं कि भगवान शिव का नाम आशुतोष है. आशुतोष का अर्थ है शीघ्र प्रसन्न होने वाले. थोड़े से प्रयास से भगवान शिव को प्रसन्न कर सकते हैं. रवि प्रदोष के व्रत के दौरान सावधानी बरतनी बेहद जरूरी होती है क्योंकि भगवान शिव निष्ठा, लगन और सत्यता को ग्रहण करते हैं. जो व्यक्ति निश्चल होता है. श्रद्धा के साथ प्रदोष का व्रत रखता है. उसके व्रत फलीभूत होते हैं. प्रदोष व्रत बेहद महत्वपूर्ण व्रत है. व्रत करने से आध्यात्मिक उन्नति ,गुरु और ईश्वर कृपा मिलती है और धन-धान्य की वृद्धि होती है.
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