नई दिल्ली: कहते हैं न जो बात हजार शब्द नहीं कह पाते, वह एक फोटो बयां कर देती है. इसी बात को संत कबीरदास के शब्दों में कहें तो 'लिखा-लिखी की बात नहि, 'देखा-देखी बात' है. फोटोजर्नलिज्म पत्रकारिता का एक रूप है, जिसको मात्र देख कर ही पूरी कहानी लिखी जा सकती है. फोटोजर्नलिस्ट के बारे में कहा जाता है कि वह दुनिया को अपनी आंखों की बजाए अपने कैमरे के लेंस से देखते हैं. फोटोजर्नलिस्ट हर अच्छी और बुरी परिस्थितियों में अपना काम पूरी दृढ़ता से करते हैं.
कोरोना काल में जब सभी लोग अपने घरों में बैठे थे, उस समय आपको घर बैठे आंखों देखी तस्वीरें पहुंचाने में फोटो पत्रकारों का बड़ा योगदान रहा. फोटो पत्रकारों ने अपनी जान की परवाह किए बिना ऐसे तमाम चित्रों से देश दुनिया को रूबरू कराया, जिनको आज भी देख कर रूह कांप जाती है. महामारी के दौर को फोटो पत्रकारों ने किस तरह जिया और उस डरावने दौर को किस तरह अपने कमरे में कैद किया? ऐसे फोटो और अन्य कई सुन्दर व अद्भुत फोटो पत्रकारिता की प्रदर्शनी आयोजित की गई है.
"द बिग पिक्चर 2023'' का आयोजन: दरअसल, दिल्ली के लोदी रोड स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में "द बिग पिक्चर 2023" नामक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है. यह प्रदर्शनी ऑल इंडिया वर्किंग न्यूज कैमरामैन एसोसिएशन द्वारा लगायी गई है. इसमें देशभर के 66 फोटो पत्रकारों की 260 फोटोज को प्रदर्शित किया गया है. इसमें कोरोना महामारी, वाइल्ड लाइफ, आस्था, स्पोर्ट्स, महाकुंभ, लैंडस्केप्स, दिल्ली के टूरिस्ट प्लेस, श्री नगर, प्रोटेस्ट आदि तमाम फोटो को दर्शाया गया है.
फोटो प्रदर्शनी का आयोजन: प्रदर्शनी के क्यूरेटर और फोटोजर्नलिस्ट नीरज पॉल ने बताया कि ऑल इंडिया वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन में देशभर के फोटो जर्नलिस्ट मेंबर हैं. यह एसोसिएशन हर दो साल में एक फोटो प्रदर्शनी का आयोजन करती है, जिसमें देशभर के तमाम फोटो जर्नलिस्ट अपनी उम्दा फोटो का प्रदर्शन करते हैं. इसमें ज्यादातर दिल्ली के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया कि 2018 के बाद 5 फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है.
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समाचार में फोटो की लोकप्रियता बढ़ी: गौरतलब है कि जब अखबार छपने शुरू हुए थे, उस समय फोटो का इस्तेमाल नहीं किया जाता था. सबसे पहले 1842 में लंदन में 'इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज' ने फोटो से साथ समाचारों को छापना शुरू किया था. इसके बाद अमेरिका ने भी अपनाया. वहीं अमेरिका-स्पेन युद्ध, प्रथम विश्व युद्ध, क्रीमिया युद्ध तथा स्पेन के गृह युद्ध के समय फोटो पत्रकारिता पनपनी शुरू हुई. इसके बाद धीरे-धीरे फोटो पत्रकारिता का विकास होता गया. फोटो पत्रकारिता की शुरुआत युद्ध की रिपोर्टिंग से हुई, परंतु बाद में समारोहों, उत्सवों, समाचार आदि पर भी तस्वीरें खींची जाने लगी.
बता दें, 20वीं शताब्दी में, फोटो पत्रकारिता की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. हर किसी के हाथ में एक छोटा या बड़ा कैमरे वाला मोबाइल है, जिससे फोटो जर्नलिज्म काफी आसान हो गया है. अब मोबाइल के जरिए भी सुंदर फोटो खींची जाने लगी है.
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