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'प्रताड़ित पतियों' का हल्लाबोल! तंग आकर मांगा पुरूष आयोग - Goverment

देश में कई ऐसे कानून हैं जिससे महिलाओं को संरक्षण मिलता है. अदालतों में उनकी बात सुना जाती है. उनकी समस्याओं पर संज्ञान लेने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग भी है. समय-समय पर ये बात उठती रही है कि महिलाओं के लिए बने कानून अक्सर पुरूषों के प्रताड़ना के कारण बन जाते हैं क्योंकि अक्सर छोटी-मोटी बातों को लेकर महिलाओं की ओर से झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया जाता है. घरेलू हिंसा, और दहेज प्रताड़ना दो ऐसे कानून हैं जिनसे खासी परेशानी है क्योंकि इनका सकारात्मक उपयोग बहुत कम ही हुआ है.

पुरूष आयोग की मांग
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Published : Mar 3, 2019, 6:23 PM IST

नई दिल्ली: देश में महिलाओं की सक्रियता आए दिन देखने को मिलती है, लेकिन अब पुरुष आयोग की मांग भी जोर पकड़ रही है. इसे लेकर रविवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर सैकड़ों की संख्या में लोग उमड़े.

पुरूष कल्याण ट्रस्ट के बैनर तले सैकड़ों की संख्या में लोग दिल्ली के जंतर-मंतर पर जुटे और पुरुष आयोग की मांग बुलंद की. इनका कहना था कि देश में महिला अयोग है, पशु पक्षियों के लिए आयोग है, अन्य कई सारे आयोग हैं लेकिन पुरुषों के लिए कोई आयोग नहीं है जो पुरुषों की समस्याओं को सुन सके.

पुरूष आयोग के लिए आंदोलन

6 साल तक परिवार हुआ प्रताड़ित
आंदोलन में भाग लेने आए लोगों ने कहा कि आए दिन पुरूषों को कानून के दुरूपयोग का सामना करना पड़ता है लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती. यहां मौजूद पंजाब से आईं सुरिन्दर कौर ने बताया कि कुछ साल पहले उनके बेटे पर उनकी बहू ने घरेलू उत्पीड़न का झूठा केस दर्ज करवा दिया. पूरे 6 साल उनका परिवार खुद को बेकसूर साबित करने के लिए लड़ता रहा.

महिलाओं को सजा क्यों नहीं हुई
उन्होंने कहा कि इस दौरान उनके बेटे सहित पूरा परिवार मानसिक यातना की स्थिति से गुजरा. उन्होंने कहा कि अगर मेरा बेटा दोषी साबित हो जाता तो उसे सजा होती लेकिन कोर्ट में ये साबित हो गया कि उनकी बहू ने झूठा मुकदमा दर्ज करवाया है, बावजूद इसके उसे कोई सजा नहीं हुई.

पुरूषों के लिए नहीं कोई कानून
यहां मौजूद एक और शख्स ने पूछने पर बताया कि देश में ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया जो पुरूषों को कानून के दुरूपयोग से संबंधित उत्पीड़न से संरक्षण देता हो. उन्होंने कहा कि इस देश में हर 8 मिनट में एक विवाहित पुरूष आत्महत्या कर लेता है. ये आंकड़ा भयावह है.

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कई हैं उत्पीड़न के शिकार यहां
वालंटियर के तौर पर काम कर रहे कुछ लोगों ने बताया कि वे भी खुद ऐसे उत्पीड़न के शिकार रहे हैं. उनमें से एक व्यक्ति ने कहा कि कुछ दिन पहले उन पर भी ऐसा केस कर दिया गया था. थाने में जब उन्होंने अपना पक्ष रखना चाहा तो पुलिस ने उनसे कहा कि हम आपकी कोई बात नहीं सुन सकते क्योंकि आपके लिए कोई कानून नहीं है.

वुंडेड भीष्मा के जरिए छलका दर्द
आंदोलन स्थल पर एक बड़ा सा स्टेचू बनाया गया है, जिसमें कई तीर लगे हैं. उन तीनों पर वे सारे मुद्दे लिखे हैं, जिनके जरिए पुरुषों को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है. पुरुष कल्याण ट्रस्ट के उपाध्यक्ष ऋत्विक बिसरिया ने बताया कि हमने ये 'वुंडेड भीष्मा' बनाया है. इसके जरिए हम दिखाना चाहते हैं कि एक निर्दोष मर्द को किस तरह समाज में प्रताड़ित होना पड़ता है.

जारी किया गया है हेल्पलाइन नंबर
ऋत्विक बिसारिया ने इस आंदोलन की पूरी रूपरेखा के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि हमने एक हेल्पलाइन भी जारी की है, जिसके जरिए हम करोड़ों लोगों की सहायता कर चुके हैं. उन्होंने महिलाओं और पुरुषों के मामले में सरकारी सुविधाओं का तुलनात्मक उदाहरण देकर बताया कि किस तरह पुरुष आयोग वर्तमान की सबसे बड़ी जरूरत है.

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पुरूष आयोग है एक वर्तमान जरुरत
कई अन्य लोगों से भी हमने बातचीत की, जिन्होंने पुरुष आयोग की जरूरत पर बल दिया. उन्होंने बताया कि उनके द्वारा जारी हेल्पलाइन नंबर पर प्रत्येक माह करीब साढ़े छह हजार फोन आते हैं. उन्होंने कहा कि, ये आंकड़ा बताने के लिए काफी है कि लोग किस तरह से प्रताड़ना के शिकार हैं.

नई दिल्ली: देश में महिलाओं की सक्रियता आए दिन देखने को मिलती है, लेकिन अब पुरुष आयोग की मांग भी जोर पकड़ रही है. इसे लेकर रविवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर सैकड़ों की संख्या में लोग उमड़े.

पुरूष कल्याण ट्रस्ट के बैनर तले सैकड़ों की संख्या में लोग दिल्ली के जंतर-मंतर पर जुटे और पुरुष आयोग की मांग बुलंद की. इनका कहना था कि देश में महिला अयोग है, पशु पक्षियों के लिए आयोग है, अन्य कई सारे आयोग हैं लेकिन पुरुषों के लिए कोई आयोग नहीं है जो पुरुषों की समस्याओं को सुन सके.

पुरूष आयोग के लिए आंदोलन

6 साल तक परिवार हुआ प्रताड़ित
आंदोलन में भाग लेने आए लोगों ने कहा कि आए दिन पुरूषों को कानून के दुरूपयोग का सामना करना पड़ता है लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती. यहां मौजूद पंजाब से आईं सुरिन्दर कौर ने बताया कि कुछ साल पहले उनके बेटे पर उनकी बहू ने घरेलू उत्पीड़न का झूठा केस दर्ज करवा दिया. पूरे 6 साल उनका परिवार खुद को बेकसूर साबित करने के लिए लड़ता रहा.

महिलाओं को सजा क्यों नहीं हुई
उन्होंने कहा कि इस दौरान उनके बेटे सहित पूरा परिवार मानसिक यातना की स्थिति से गुजरा. उन्होंने कहा कि अगर मेरा बेटा दोषी साबित हो जाता तो उसे सजा होती लेकिन कोर्ट में ये साबित हो गया कि उनकी बहू ने झूठा मुकदमा दर्ज करवाया है, बावजूद इसके उसे कोई सजा नहीं हुई.

पुरूषों के लिए नहीं कोई कानून
यहां मौजूद एक और शख्स ने पूछने पर बताया कि देश में ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया जो पुरूषों को कानून के दुरूपयोग से संबंधित उत्पीड़न से संरक्षण देता हो. उन्होंने कहा कि इस देश में हर 8 मिनट में एक विवाहित पुरूष आत्महत्या कर लेता है. ये आंकड़ा भयावह है.

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कई हैं उत्पीड़न के शिकार यहां
वालंटियर के तौर पर काम कर रहे कुछ लोगों ने बताया कि वे भी खुद ऐसे उत्पीड़न के शिकार रहे हैं. उनमें से एक व्यक्ति ने कहा कि कुछ दिन पहले उन पर भी ऐसा केस कर दिया गया था. थाने में जब उन्होंने अपना पक्ष रखना चाहा तो पुलिस ने उनसे कहा कि हम आपकी कोई बात नहीं सुन सकते क्योंकि आपके लिए कोई कानून नहीं है.

वुंडेड भीष्मा के जरिए छलका दर्द
आंदोलन स्थल पर एक बड़ा सा स्टेचू बनाया गया है, जिसमें कई तीर लगे हैं. उन तीनों पर वे सारे मुद्दे लिखे हैं, जिनके जरिए पुरुषों को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है. पुरुष कल्याण ट्रस्ट के उपाध्यक्ष ऋत्विक बिसरिया ने बताया कि हमने ये 'वुंडेड भीष्मा' बनाया है. इसके जरिए हम दिखाना चाहते हैं कि एक निर्दोष मर्द को किस तरह समाज में प्रताड़ित होना पड़ता है.

जारी किया गया है हेल्पलाइन नंबर
ऋत्विक बिसारिया ने इस आंदोलन की पूरी रूपरेखा के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि हमने एक हेल्पलाइन भी जारी की है, जिसके जरिए हम करोड़ों लोगों की सहायता कर चुके हैं. उन्होंने महिलाओं और पुरुषों के मामले में सरकारी सुविधाओं का तुलनात्मक उदाहरण देकर बताया कि किस तरह पुरुष आयोग वर्तमान की सबसे बड़ी जरूरत है.

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पुरूष आयोग है एक वर्तमान जरुरत
कई अन्य लोगों से भी हमने बातचीत की, जिन्होंने पुरुष आयोग की जरूरत पर बल दिया. उन्होंने बताया कि उनके द्वारा जारी हेल्पलाइन नंबर पर प्रत्येक माह करीब साढ़े छह हजार फोन आते हैं. उन्होंने कहा कि, ये आंकड़ा बताने के लिए काफी है कि लोग किस तरह से प्रताड़ना के शिकार हैं.

Intro:देश में महिलाओं की सक्रियता आए दिन देखने को मिलती है। लेकिन अब पुरुष आयोग की मांग भी जोर पकड़ रही है। इसे लेकर आज दिल्ली के जंतर मंतर पर सैकड़ों की संख्या में लोग उमड़े।


Body:पुरुष कल्याण ट्रस्ट के बैनर तले वर्षों से चल रहे आंदोलन को बृहद रूप देते हुए आज सैकड़ों की संख्या में लोग दिल्ली के जंतर मंतर पर जुटे और पुरुष आयोग की मांग बुलंद की। इनका कहना था कि देश में महिला अयोग है पशु पक्षियों के लिए आयोग है अन्य कई सारे आयोग हैं लेकिन पुरुषों के लिए कोई आयोग नहीं है जो पुरुषों की समस्याओं को सुन सके।

यहां आंदोलन स्थल पर एक बड़ा सा स्टेचू बनाया गया है, जिसमें कई तीर लगे हैं। उन तीनों पर वे सारे मुद्दे लिखे हैं, जिनके जरिए पुरुषों को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। पुरुष कल्याण ट्रस्ट के उपाध्यक्ष ऋत्विक बिसरिया ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि हमने यह 'वुंडेड भीष्मा' बनाया है। इसके जरिए हम दिखाना चाहते हैं कि एक निर्दोष मर्द को किस तरह समाज में प्रताड़ित होना पड़ता है।

ऋत्विक बिसारिया ने इस आंदोलन की पूरी रूपरेखा के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि हमने एक हेल्पलाइन भी जारी की है, जिसके जरिए हम करोड़ों लोगों को सहायता कर चुके हैं। उन्होंने महिलाओं और पुरुषों के मामले में सरकारी सुविधाओं का तुलनात्मक उदाहरण देकर बताया कि किस तरह पुरुष आयोग वर्तमान की सबसे बड़ी जरूरत है। कई अन्य लोगों से भी हमने बातचीत की, जिन्होंने पुरुष आयोग की जरूरत पर बल दिया।

आंदोलन स्थित है कई ऐसे बैनर पोस्टर लगाए गए हैं जिनमें पुरुषों की आत्महत्या या अन्य मुद्दों को रेखांकित किया गया है। गौरतलब है कि इस आंदोलन में महिलाएं भी शामिल हैं। ऐसी ही एक महिला से ईटीवी भारत के बातचीत की उन्होंने अपने बेटे का उदाहरण देते हुए बताया कि पुरुषों को जब झूठे केस में फंसाया जाता है या उन्हें प्रताड़ित होना पड़ता है, तो इससे घर की महिलाएं भी परेशान होती हैं।


Conclusion:
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