नई दिल्ली: राजधानी में प्रजा फाउंडेशन ने शुक्रवार को दिल्ली में नागरिक मुद्दों की स्थिति पर 2023 की रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट का उद्देश्य ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम), सीवरेज, वायु और पानी की गुणवत्ता की बढ़ती समस्याओं को समझना है, जो दिल्ली के जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करती है. बताया गया कि बढ़ती शंकाओं के साथ सारी नागरिक शिकायतों की संख्या में 36 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
फाउंडेशन के सीईओ मिलिंद म्हस्के ने बताया कि दिल्ली में सीवरेज से संबंधित शिकायतों में 2019 की तुलना में 2022 में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसके अतिरिक्त 2019 से 2022 के बीच जल प्रदूषण के बारे में शिकायतें 39 प्रतिशत बढ़ी हैं. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा 2016 में स्रोत पर कचरे के प्रभावी संग्रह और पृथक्करण को अनिवार्य करने की योजना बनाई गई थी. इस योजना को पूरी तरह धरातल पर उतारने के लिए दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) प्रयास कर रहा है. लेकिन अभी वह इसमें बहुत पीछे है.
उन्होंने कहा कि एमसीडी घर से 100 प्रतिशत कूड़ा एकत्रित करने का दावा करती है, जबकि 2016 से 2022 के बीच कचरा एकत्र न किए जाने संबंधी शिकायतें बढ़कर 285 प्रतिशत हो गई है. एमसीडी अपने वार्डों में कूड़े के स्त्रोत के निस्तारण में अभी बहुत पीछे है. हालांकि, साल 2021-22 में उत्पन्न कुल कचरे में से केवल 46 प्रतिशत कचरा एमसीडी सुविधाओं में संसाधित किया गया था.
2022 में लैंडफिल साइट पर जाने वाले कूड़े की मात्रा कम होने की बजाए बढ़ गई. इसलिए रिपोर्ट के माध्यम से फाउंडेशन ने एमसीडी को सुझाव दिया है कि दिसंबर 2024 तक सभी लैंडफिल स्थलों को साफ करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लैंडफिल साइट भेजे गए ताजा कचरे की मात्रा को कम करने और अपशिष्ट प्रबंधन के विकेंद्रीकृत तरीकों का पता लगाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
मिलिंद म्हस्के, सीईओ, प्रजा फाउंडेशन
भूजल व जल प्रदूषण से फैलती हैं बीमारियां: दिल्ली में सीवरेज और विभिन्न औद्योगिक अनुपचारित कचरे को बड़ी मात्रा में छोड़े जाने के कारण यमुना नदी अत्यधिक प्रदूषित हो गई है. इसके अलावा दिल्ली की लैंडफिल साइटों पर लगी आग से उत्पन्न खतरनाक धुएं से लोगों को सांस संबंधी बीमारियां होती हैं. इसके कारण 2021 में एमसीडी और राज्य अस्पतालों में इसके 2,07,752 मामले सामने आए. यमुना में होने वाले जल प्रदूषण और उससे होने वाले भूजल प्रदूषण के चलते दिल्ली में वर्ष 2021 में 1,26,649 लोगों को दस्त, 9,335 लोगों को टाइफाइड और 819 लोगों को हैजा जैसी बीमारी हुई.
वहीं, दिल्ली के एस.टी.पी. की स्थिति से पता चलता है कि उपचार के बाद भी अपशिष्ट जल अत्यधिक प्रदूषित था. दिल्ली, वायु प्रदूषण की बड़ी चुनौतियों का भी सामना कर रही है. 2020 को छोड़कर पिछले सात वर्षों में दिल्ली में औसत वार्षिक वायु गुणवत्ता सूचकांक (ए.क्यू.आई) का स्तर 'खराब' रहा है. इसके अलावा 2022 में 365 दिनों में से 55% दिनों में एक्यूआई खराब या बहुत खराब श्रेणी में था. नवंबर में यह बढ़कर 446 से अधिक हो गया था, जो अधिक था.
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दिल्ली के विधायकों ने भी कम उठाए जनहित के मुद्दे: फाउंडेशन के अनुसंधान एवं विश्लेषण प्रमुख योगेश मिश्रा ने बताया कि 2022 में लगभग एक साल (अप्रैल से दिसंबर) के लिए दिल्ली नगर निगम में कोई निर्वाचित परिषद नहीं थी. इस कारण लोकतांत्रिक तरीके से नागरिक मुद्दों को संबोधित करने में कमी आई. वहीं 2022 में सबसे अधिक शिकायतें जल आपूर्ति (1,99,205) और सीवरेज (1,38,545) संबंधित थीं. वहीं, विधायकों द्वारा जलापूर्ति के 55 और सीवरेज 9 मुद्दे उठाए गए थे.
इसके अलावा 2016 से 2022 तक प्रदूषण और सीवरेज पर उठाए गए मुद्दों में क्रमश: 13 प्रतिशत और 36 प्रतिशत की कमी आई है. रिपोर्ट में दिए गए सभी आंकड़े, दिल्ली सरकार द्वारा आरटीआई के दिए गए जवाब और विभिन्न विभागों द्वारा जारी रिपोर्ट्स से संबंधित हैं.
योगेश मिश्रा, प्रजा फाउंडेशन के अनुसंधान एवं विश्लेषण प्रमुख
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