नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने जाति, धर्म और भाषाई पहचान वाले राजनीतिक दलों की मान्यता समाप्त करने की मांग करने वाली याचिका पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि आप पार्टियों के नाम पर मत जाइए, उनकी नीतियों पर जाइए. कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ये संसद का काम है. कोर्ट का काम कानून बनाना नहीं है. मामले की अगली सुनवाई 7 मई 2024 को होगी.
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याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है. याचिका 2019 में दायर की गई थी. याचिका में मांग की गई है कि उन राजनीतिक दलों की मान्यता खत्म की जाए जिनकी पहचान किसी न किसी रुप में जाति, धर्म या भाषाई से जुड़ी हुई हो. गुरुवार को सुनवाई के दौरान केंद्रीय विधि मंत्रालय ने कोर्ट से कहा कि इस मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं है.
निर्वाचन आयोग ने कहा कि उसने 2005 में एक नीति बनाई थी जिसके तहत किसी भी राजनीतिक दल को धार्मिक या जातीय नाम दिए जाएंगे. हालांकि 2005 के पहले बनी ऐसी पार्टियां काम कर सकती हैं. तब अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि पार्टियां और उसके उम्मीदवार जाति या धर्म के नाम पर वोट नहीं मांग सकते लेकिन इसी आधार पर वे राजनीतिक दल का गठन कैसे कर सकते हैं ? उन्होंने कहा कि ये कानून में गंभीर खामी है.
उपाध्याय ने कहा कि जाति और धर्म का इस्तेमाल करने वाले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में बाधक हैं, और ऐसा करना संविधान के मौलिक ढांचे के खिलाफ है. तब कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना कोर्ट का काम नहीं है. अगर हम इस पर फैसला करेंगे तो इसका मतलब है कि कोर्ट नीतिगत मामलों में दखल देगी. संसद को इस पर विचार करने दीजिए ये संसद का काम है. इस पर उपाध्याय ने इस मामले पर अंतिम सुनवाई की तिथि तय करने का आग्रह किया. तब कोर्ट ने 7 मई 2024 की तिथि तय की.