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अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस पर पढ़िए पुरुषों के संघर्ष की कहानी, परिवार के लिए किया त्याग आज वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर - वृद्धाश्रम में जिंदगी जीने को मजबूर

अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस पर हम आपको कुछ ऐसे पुरुषों की कहानी से रूबरू करा रहे हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी परिवार पर न्यौछावर कर दी. परिवार को हर एक सहूलियत देने की कोशिश की लेकिन जब इनके आराम करने के दिन आए तो इनके परिवार ने इन्हें वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा दिया. पढ़ें इस खबर में. International Mens Day 2023

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Nov 19, 2023, 10:31 AM IST

Updated : Nov 19, 2023, 11:51 AM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की तर्ज पर हर साल 19 नवंबर को भारत समेत तकरीबन 80 देशों में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है. यह दिन खासकर पुरुषों को भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न हिंसा और असमानता से बचाने और उन्हें उनका अधिकार दिलाने के लिए मनाया जाता है. इस खास दिन पर हम आपके लिए कुछ ऐसे पुरूषों की कहानियां लेकर आए हैंं, जिन्होंने तमाम उम्र अपने परिवार के लिए गुजारा, लेकिन आज वृद्धाश्रम में जिंदगी जीने को मजबूर हैं.

अकेले जीने को हैं मजबूर: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के रहने वाले राजेंद्र प्रसाद अवस्थी गाजियाबाद की दुहाई स्थित वृद्ध आश्रम में रहते हैं. इनकी उम्र 74 साल है. राजेंद्र प्रसाद ने मुश्किल हालातों से लड़कर 12वीं तक की पढ़ाई की लेकिन अपने बेटों को पोस्ट ग्रेजुएशन तक पढ़ाया. छोटी सी नौकरी की कमाई से बच्चों की पढ़ाई पूरी करनी मुश्किल हुई तो प्रोविडेंट फंड तक निकाल लिया. इससे भी काम ना चला तो बैंकों से कर्ज लेकर कॉलेज की फीस जमा की. इतनी मशक्कत के बाद भी आज वह अपना बुढ़ापा एक अनाथआश्रम में गुजारने को मजबूर हैं.

परिवार का किया पिंडदान: राजेंद्र प्रसाद बताते हैं कि बच्चों की पढ़ाई तक तो सब कुछ ठीक था. पढ़ने के बाद बेटों की नौकरी भी लग गई. नौकरी लगने के बाद पत्नी ने बेटे का रिश्ता अपनी रिश्तेदारी में तय कर दिया, जो कि राजेंद्र प्रसाद को नागवार गुजरा. उन्होंने अपने पत्नी और बेटों को समझाने की काफी कोशिश की लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी. राजेंद्र प्रसाद इतने आहत हुई कि वह अपने बेटे की शादी में भी शामिल नहीं हुए. उनके बेटे पत्नी और बहू गुजरात शिफ्ट हो गए और उन्हें अकेला छोड़ गए.

कुछ साल नौकरी की लेकिन जहां नौकरी करते थे वह कंपनी बंद हो गई. अखबार में इश्तहार देख दोहे आश्रम जाकर रहने लगे. उन्होंने बेटों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन बेटों ने पिता से बात करने को मना कर दिया. पत्नी ने भी कोई रुचि नहीं दिखाई. राजेंद्र प्रसाद इतने आहत हुई कि उन्होंने गंग नहर पर अपने परिवार वालों का पिंडदान कर दिया. राजेंद्र प्रसाद बताते हैं की परिवार के लिए उन्होंने सब कुछ किया, लेकिन आज 74 साल की उम्र में उनका परिवार उन्हें भूल चुका है. उनकी देखभाल करना तो दूर उनसे बात तक नहीं करना चाहता है.

ये भी पढ़ें: दिल्ली की दो साल की बच्ची का दिल अब चेन्नई के बच्चे में धड़केगा, AIIMS के डॉक्टरों का चमत्कार

पिता की कोठी बेच घर से निकाला: हापुड़ के रहने वाले ललित शर्मा की उम्र तकरीबन 72 वर्ष है. ललित शर्मा के दो बेटे हैं. एक समय में ललित शर्मा काफी समृद्ध थे. शर्मा परिवार के लिए काफी समर्पित थे. ललित शर्मा की चांदनी चौक में कोठी और गाजियाबाद में घर था. ललित शर्मा ने कई बड़ी कंपनियों में बतौर केमिस्ट नौकरी की. ललित शर्मा ने अपने परिवार को तमाम सुख सुविधा दी लेकिन आज परिवार ने उनको बेघर कर दिया. ललित शर्मा बताते हैं कि बेटों ने ससुराल वालों के साथ मिलकर चांदनी चौक की कोठी भेज दी. कोठी को बेचकर आए पैसों से कोई काम न खड़ा कर बल्कि घूमने फिरने में पैसे को बर्बाद किया. उनका गाजियाबाद में एक घर है जिसे फिर उनके बेटे बेचना चाहते हैं जिसका अभी कोर्ट केस चल रहा है.

ये भी पढ़ें: दिल्ली AIIMS के डॉक्टरों ने एक बार फिर किया चमत्कार, 34 वर्षीय पर्वतारोही को दिया नया जीवनदान

नई दिल्ली/गाजियाबाद: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की तर्ज पर हर साल 19 नवंबर को भारत समेत तकरीबन 80 देशों में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है. यह दिन खासकर पुरुषों को भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न हिंसा और असमानता से बचाने और उन्हें उनका अधिकार दिलाने के लिए मनाया जाता है. इस खास दिन पर हम आपके लिए कुछ ऐसे पुरूषों की कहानियां लेकर आए हैंं, जिन्होंने तमाम उम्र अपने परिवार के लिए गुजारा, लेकिन आज वृद्धाश्रम में जिंदगी जीने को मजबूर हैं.

अकेले जीने को हैं मजबूर: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के रहने वाले राजेंद्र प्रसाद अवस्थी गाजियाबाद की दुहाई स्थित वृद्ध आश्रम में रहते हैं. इनकी उम्र 74 साल है. राजेंद्र प्रसाद ने मुश्किल हालातों से लड़कर 12वीं तक की पढ़ाई की लेकिन अपने बेटों को पोस्ट ग्रेजुएशन तक पढ़ाया. छोटी सी नौकरी की कमाई से बच्चों की पढ़ाई पूरी करनी मुश्किल हुई तो प्रोविडेंट फंड तक निकाल लिया. इससे भी काम ना चला तो बैंकों से कर्ज लेकर कॉलेज की फीस जमा की. इतनी मशक्कत के बाद भी आज वह अपना बुढ़ापा एक अनाथआश्रम में गुजारने को मजबूर हैं.

परिवार का किया पिंडदान: राजेंद्र प्रसाद बताते हैं कि बच्चों की पढ़ाई तक तो सब कुछ ठीक था. पढ़ने के बाद बेटों की नौकरी भी लग गई. नौकरी लगने के बाद पत्नी ने बेटे का रिश्ता अपनी रिश्तेदारी में तय कर दिया, जो कि राजेंद्र प्रसाद को नागवार गुजरा. उन्होंने अपने पत्नी और बेटों को समझाने की काफी कोशिश की लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी. राजेंद्र प्रसाद इतने आहत हुई कि वह अपने बेटे की शादी में भी शामिल नहीं हुए. उनके बेटे पत्नी और बहू गुजरात शिफ्ट हो गए और उन्हें अकेला छोड़ गए.

कुछ साल नौकरी की लेकिन जहां नौकरी करते थे वह कंपनी बंद हो गई. अखबार में इश्तहार देख दोहे आश्रम जाकर रहने लगे. उन्होंने बेटों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन बेटों ने पिता से बात करने को मना कर दिया. पत्नी ने भी कोई रुचि नहीं दिखाई. राजेंद्र प्रसाद इतने आहत हुई कि उन्होंने गंग नहर पर अपने परिवार वालों का पिंडदान कर दिया. राजेंद्र प्रसाद बताते हैं की परिवार के लिए उन्होंने सब कुछ किया, लेकिन आज 74 साल की उम्र में उनका परिवार उन्हें भूल चुका है. उनकी देखभाल करना तो दूर उनसे बात तक नहीं करना चाहता है.

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पिता की कोठी बेच घर से निकाला: हापुड़ के रहने वाले ललित शर्मा की उम्र तकरीबन 72 वर्ष है. ललित शर्मा के दो बेटे हैं. एक समय में ललित शर्मा काफी समृद्ध थे. शर्मा परिवार के लिए काफी समर्पित थे. ललित शर्मा की चांदनी चौक में कोठी और गाजियाबाद में घर था. ललित शर्मा ने कई बड़ी कंपनियों में बतौर केमिस्ट नौकरी की. ललित शर्मा ने अपने परिवार को तमाम सुख सुविधा दी लेकिन आज परिवार ने उनको बेघर कर दिया. ललित शर्मा बताते हैं कि बेटों ने ससुराल वालों के साथ मिलकर चांदनी चौक की कोठी भेज दी. कोठी को बेचकर आए पैसों से कोई काम न खड़ा कर बल्कि घूमने फिरने में पैसे को बर्बाद किया. उनका गाजियाबाद में एक घर है जिसे फिर उनके बेटे बेचना चाहते हैं जिसका अभी कोर्ट केस चल रहा है.

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Last Updated : Nov 19, 2023, 11:51 AM IST
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