नई दिल्ली: भारतीय रेल में सोशल मीडिया के माध्यम से यात्रियों की मदद की पहल तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु के समय में शुरू हुई थी. आज के समय में ये एक कामयाब सिस्टम है जिसमें सभी छोटे-बड़े अधिकारी शामिल होते हैं. इसी तर्ज पर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्रबंधक राकेश शर्मा ने यात्रियों का खोया हुआ सामान लौटाने के लिए एक अलग तरीका अपनाया है. इसके लिए वो सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं.
नई दिल्ली स्टेशन प्रबंधक राकेश शर्मा पिछले 2 साल से इस काम में लगे हुए हैं. सोशल मीडिया की मदद से वो अब तक 100 से ज्यादा रेल यात्रियों का खोया हुआ सामान लौटा चुके हैं. खास बात है कि वह अपनी नौकरी के बाद निजी समय इस काम के लिए समर्पित करते हैं.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में राकेश शर्मा ने बताया कि रेलवे में लॉस्ट एंड फाउंड के लिए एक अलग सिस्टम बना हुआ है. वो भी कारगर है लेकिन जो सामान उनके पास आता है वो अपने लेवल पर उसे यात्री तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं. अक्सर प्रयास करने पर उन्हें यह यात्री मिल जाते हैं लेकिन जब नहीं मिलते तो वो इसे रेलवे स्टोर में जमा करा देते हैं.
खोये हुए सामान को यात्रियों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया राकेश शर्मा की खासा मदद करता है. वो बताते हैं कि जब उन्हें कोई सामान ला कर देता है तब वो उससे पूछते हैं कि यह सामान उसे कहां से मिला है. सीट नंबर और रेल गाड़ी का नाम पता होने पर यात्री को ढूंढना आसान हो जाता है. इसके लिए वो पीएनआर के जरिए यात्री से जुड़ी हुई डिटेल निकाल कर उसे सोशल मीडिया पर ढूंढते हैं. कई बार पूरी प्रक्रिया बहुत आसान रहती है लेकिन जब वो यात्री को नहीं ढूंढ पाते तब अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर खोए हुए सामान की जानकारी के साथ एक पोस्ट डाल देते हैं. हैशटैग और लोकेशन टैग की मदद से यात्री उन तक पहुंच जाते हैं और राकेश उनसे जरूरी जानकारी और बताई डिटेल्स के हिसाब से सामान लौटा देते हैं.
इस मुहिम के चलते राकेश शर्मा का नाम अब सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेश तक पहुंच गया है. पिछले ही दिनों उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के एक नागरिक को उसका खोया हुआ सामान लौटाया था जिसके बाद उन्हें काफी सराहना मिली थी. हाल ही में उन्हें एक सोने का लॉकेट मिला है जिसके मालिक की उन्हें तलाश है.
राकेश शर्मा की माने तो रेल यात्रियों को उनका खोया हुआ सामान लौटा कर उन्हें बहुत खुशी मिलती है. वो कहते हैं कि रेल में नौकरी करना उनके लिए अभिमान की बात है. ऐसे में जब उनके छोटे-छोटे कामों से ही रेल की छवि बेहतर होती है तो उन्हें नई प्रेरणा मिलती है.