नई दिल्ली: शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और इग्नू ने रविवार को 'ज्ञान उत्सव' कार्यक्रम का आयोजन किया था. जिसका विषय भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं पर राष्ट्रीय विचार विमर्श था. इस दौरान जहां परीक्षा पद्धतियों को पारदर्शी बनाने की बात की गई वहीं RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी अपने विचार रखे.
'आधुनिक युग में भी अंधाधुध अनुसरण किया जा रहा'
उन्होंने अंग्रेजी प्रशासकीय सेवा का विरोध किया और कहा कि अंग्रेजों की बनाई गई शासन प्रक्रिया का आधुनिक युग में भी अंधाधुध अनुसरण किया जा रहा है. जो कि गलत है. साथ ही उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं को भारतीय भाषाओं में करवाने का आग्रह किया और कहा कि अगर संप्रभु राष्ट्र बनना है. तो स्वभाषा का व्यवहार करना होगा.
स्वदेशी विचारों से पूर्ण रहा कार्यक्रम
इग्नू में आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं के ऊपर विचार विमर्श के आयोजन में कई बड़ी हस्तियों ने भाग लिया. वहीं इस दौरान RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत भी उपस्थित रहे.
उनकी अध्यक्षता में संपन्न हुआ यह कार्यक्रम स्वदेशी विचारों से पूर्ण रहा. उन्होंने कहा कि भारत आज भी आंखें बंद कर उस प्रशासकीय सेवा पद्धति का अनुसरण कर रहा है. जो अंग्रेजों ने भारत पर राज करने के लिए अपनी सहूलियत के हिसाब से बनाई थी.
उन्होंने कहा कि समकालीन भारत में अंग्रेजी संस्कृति को ही महत्व दिया जा रहा है सबसे ज्यादा वहां की भाषा लोकप्रिय बनी हुई है. उन्होंने कहा यदि हम अपना संप्रभु राष्ट्र बनाना चाहते हैं तो हमें पुरातन प्रशासकीय सेवा पद्धति को छोड़ना होगा.
'स्वदेशी भाषा को प्राथमिकता देनी होगी'
साथ ही विदेशी भाषा को बढ़ावा देने की जगह स्वदेशी भाषा को प्राथमिकता देनी होगी. उन्होंने कहा कि भारतवर्ष में जितनी भी प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की जाए उसमें इस बात का खासा ध्यान रखा जाए कि वह भारत की राजकीय भाषा में हो ना कि विदेशी भाषा अंग्रेजी में.
प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर आयोजित इस विचार विमर्श कार्यक्रम में 200 से अधिक वर्तमान एवं पूर्व लोक सेवक शिक्षा विद, राज्य लोक सेवा आयोगों के भूतपूर्व एवं वर्तमान चेयरमैन व सदस्यों के साथ-साथ कर्मचारी चयन आयोग के पूर्व सदस्य भी सम्मिलित हुए.