नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में दिल्ली नगर निगम के चुनाव प्रचार के साथ ही आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति भी अपने चरम पर पहुंच चुकी है. चुनाव में इस बार भी ग्रामीण इलाकों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होने वाली है. दिल्ली के पूर्वी, बाहरी और दक्षिणी क्षेत्रों की लगभग 30 विधानसभाओं में 360 से ज्यादा गांव बसते हैं, जिनकी आबादी लगभग 30 लाख से ज्यादा है. आज भी दिल्ली के गांवों में पंचायत और खाप पंचायतों द्वारा चुनाव से पहले अहम निर्णय लिए जाते हैं.
नरेला, बवाना, मुस्तफाबाद, विकासपुरी, पटापटगंज, तुगलकाबाद, बदरपुर, छतरपुर, मुनिरका, द्वारका पालम, नजफगढ, मुंडका, नांगलोई, बवाना कुछ ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां एमसीडी चुनाव में पिछले तीन बार से गांव देहात के क्षेत्र का काफी प्रभाव देखने को मिला है. यहां 360 से ज्यादा गांव है और इनकी आबादी लगभग 30 लाख के आसपास है. जो हर बार निगम चुनाव में अपना असर छोड़ती है. इन क्षेत्रों से बड़ी संख्या में पार्षद चुनकर आते हैं. जिसको देखते हुए इस बार दिल्ली देहात के गांवोंं पर सभी राजनीतिक दलों की नजरें हैं. आप, भाजपा और कांग्रेस द्वारा गांव देहात के क्षेत्रों में भी पूरी ताकत के साथ चुनाव प्रचार कर समर्थन जुटाने का प्रयास किया जा रहा है. इसके साथ ही ये दल दिल्ली के गांवों में होने वाली पंचायतों में भी अपनी बात रख रही हैं. हालांकि गांव देहात के मतदाताओं का मूड इस बार किसकी तरफ होगा यह तो मतगणना के दिन ही पता चल सकेगा.
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एमसीडी चुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक दलों द्वारा इस बार मुख्य तौर पर बड़ी संख्या में गांव देहात से आने वाले प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा गया है. यहां के चुनावी मुद्दों में कच्ची सड़क, कॉलोनियों का नियमितीकरण, सड़कों का रखरखाव, साफ-सफाई व जल निकासी की व्यवस्था करना आदि प्रमुख है. हालांकि इन मुद्दों को लेकर पहले की सरकारों द्वारा कोई पुख्ता कदम नहीं उठाया गया है. दिल्ली के गांव देहातों में आज भी राजनीतिक चौपाल लगती है और गांव के अंदर लगने वाली पंचायतों या खाप पंचायतों में चुनाव को लेकर अहम फैसले लिए जाते हैं.
इस बार के एमसीडी चुनाव में गांव के अंदर म्यूटेशन का मुद्दा भी प्रमुख होने वाला है क्योंकि गांव में म्यूटेशन बंद होने के कारण संपत्तियों का हस्तांतरण नहीं हो पा रहा है. सरल शब्दों में कहा जाए तो गांव देहात में कोरोना महामारी की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी. जिसके बाद लोग अपनी ही संपत्ति को अपने नाम ट्रांसफर नहीं करवा नहीं पा रहे हैं. जो इस समय गांव देहात में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. वहीं दूसरा बड़ा मुद्दा गांवों में सीवर लाइन नहीं होने का है. जिसकी वजह से गांव के लोगों को जल निकासी की समस्या का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा दिल्ली के गांवों को मुख्य शहर से कनेक्ट करने की समस्या भी एक प्रमुख मुद्दा है. सड़कों की बदहाली के साथ ही पर्याप्त संख्या में डीटीसी बसों का ना होना यह भी एक बड़ी समस्या है. जिसको लेकर इस बार ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।
दिल्ली के आसपास के राज्यों में किसानों को राहत देते हुए खेती से जुड़े हुए उपकरणों जैसे ट्रैक्टर आदि की खरीद पर पर उन्हें सरकार द्वारा सब्सिडी दी जा रही है. लेकिन दिल्ली में ट्रैक्टर का पंजीकृत करवाना पड़ता है और खेती के उपकरणों की खरीद पर दिल्ली में कोई सब्सिडी भी नहीं मिलती. जिसकी वजह से लोगों में अलग से नाराजगी बनी हुई है. पालम गांव के प्रधान सुरेंद्र सोलंकी ने बातचीत के दौरान बताया कि म्यूटेशन बंद होने की समस्या इस समय गांव देहात की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. यहां परिवारों में संपति को लेकर झगड़े हो रहे हैं. जिसको लेकर भी सरकार से नाराजगी बनी हुई है. दिल्ली के अर्बन गांव लाडो सराय के पंचायत सदस्य चौधरी नरेश प्रधान ने बातचीत के दौरान बताया कि गांव के अंदर पीने के पानी और सीवर की लाइनों की समस्या काफी लंबे समय से बनी हुई है. जिसको लेकर काम न होने से लोगों को हर रोज परेशानी का सामना करना पड़ता है.
दिल्ली के गांव के पंचायत सदस्य पारस त्यागी ने बताया कि खेती के उपकरणों को लेकर जिस तरह से बाकी राज्यों की सरकारें सब्सिडी दे रही हैं वैसी कोई सुविधा दिल्ली सरकार नहीं दे रही है. जिसको लेकर दिल्ली के किसान और गांव के लोग काफी नाराज हैं. बाहरी दिल्ली के बवाना गांव के पंचायत के सदस्य चौधरी धारा सिंह ने बातचीत में बताया कि बाहरी दिल्ली के गांवों में कोई विकास नहीं हुआ है. ना सड़कें बनी हैं और ना ही कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप हुआ है.
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