नई दिल्ली: दुनियाभर में महामारी के असर के साथ ही देश में करीब 6 महीने के लिए लॉकडाउन लगाया था. यही लॉकडाउन कुछ लोगों के लिए किस्मत का ताला बंद कर देने वाला साबित हुआ. दिल्ली में प्राइवेट बसें चलाने वाले लोग इन्हीं कुछ लोगों में शामिल हैं. आलम यह है कि ऐसे लोग पिछले 11 महीने से बिना कामकाज के बसों को लेकर अपने घर बैठे हैं और आज भी सरकार से मदद की आस लगा रहे हैं.
दिल्ली में 1.50 लाख प्राइवेट बसें
एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली में करीब 1.50 लाख प्राइवेट बसें चलती हैं. यह प्राइवेट बसें स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों और कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर इंडस्ट्री या टूर एंड ट्रेवल्स आदि के लिए काम में लाई जाती थीं. लॉकडाउन के समय इन बसों के पहिए कुछ ऐसे थमें कि आजतक शुरू नहीं हो पाए हैं. इन्हें चलाने वाले करीब 25 हजार ऑपरेटर और बसों से जुड़े ड्राइवर-कंडक्टर अब रोजी रोटी के लिए भी परेशान हैं.
खड़े-खड़े धूल फांक रहीं बसें
एक तरफ जहां स्कूल और कॉलेज अभी तक खुले नहीं हैं तो वहीं दफ्तरों में भी वर्क फ्रॉम होम बेसिस पर काम हो रहा है. आज तक अधिकतर बसें खड़ी-खड़ी धूल फांक ही खड़ी हैं. जिन जगहों पर दफ्तर खुले हैं वहां अब इन बसों की जरूरत नहीं बची. जिन चुनिंदा जगहों पर जरूरत है वहां भी डिमांड घट जाने के चलते सस्ते में भी बसें चलानी पड़ रही हैं. इसके चलते परेशानी और बढ़ गई है.
क्या है परेशानी!
स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी ऑपरेटर एकता मंच के महासचिव श्याम लाल गोला कहते हैं कि परेशानी एक नहीं बल्कि कई है. एक तरफ जहां बसें नहीं चलने से आमदनी खत्म हो गई है तो वहीं दूसरी तरफ खड़ी बसों का मेंटेनेंस भी बहुत ज्यादा है. जिन लोगों के पास बसें हैं उन्हें किस्त टाइम पर ही देनी पड़ती है लेकिन बिना आमदनी यह कैसे मुमकिन हो. इससे अलग परिवार का पेट पालना है जोकि आज से मुश्किल पहले कभी नहीं हुआ.
सरकार से मदद की उम्मीद
ऑपरेटरों का कहना है कि उन्हें सरकार से किसी विशेष पैकेज की आस थी लेकिन विशेष पैकेज तो दूर सरकार ने खड़ी बसों के खर्चों को भी कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. मसलन रोड टैक्स और किस्तों में भी कोई छूट नहीं मिली है. मौजूदा समय में दिल्ली के प्राइवेट बस ऑपरेटरों की मांग है कि सरकार को उनकी तरफ भी ध्यान देना चाहिए और तंगी से जूझ रहे ऐसे तमाम ऑपरेटर्स के लिए कुछ विशेष सहायता का ऐलान करना चाहिए.