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SC बार एसोसिएशन के सचिव पद से निलंबन के खिलाफ वकील अशोक अरोड़ा की याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव पद से निलंबित करने के खिलाफ वकील अशोक अरोड़ा की याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दिया है. कोर्ट ने पिछले 25 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

Supreme Court Bar Association
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन
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Published : Oct 6, 2020, 12:25 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील अशोक अरोड़ा की सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव पद से निलंबित करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है. जस्टिस मुक्ता गुप्ता की बेंच ने कहा कि अशोक अरोड़ा की याचिका में कोई मेरिट नहीं है.

सचिव पद से निलंबन के खिलाफ वकील अशोक अरोड़ा की याचिका खारिज
निलंबन नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ बताया था

कोर्ट ने पिछले 25 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. अशोक अरोड़ा ने कहा था कि वर्तमान कार्यकारिणी का कार्यकाल 10 दिसंबर को खत्म हो रहा है. अरोड़ा ने कहा कि नियम 35 के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन का जनरल हाउस ही उन्हें निलंबित कर सकता है. और वह भी दुर्व्यवहार की शिकायत की जांच के बाद उन्होंने कहा था कि उनका निलंबन नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है.

निलंबन में नियमों का उल्लंघन नहीं किया गया

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से वकील अरविंद निगम ने कहा था कि नियम 35 केवल किसी सदस्य के निष्कासन से जुड़ा है, इसलिए इस नियम की दलील नहीं दी जा सकती है. निगम ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की एग्जीक्यूटिव कमेटी की बैठक सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के नियम 14 के मुताबिक हुई थी. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के निर्वाचित पदों से किसी को निकालने की पहले भी परंपरा रही है. उन्होंने कहा था कि नैसर्गिक न्याय के सभी सिद्धांतों को पालन किया गया. जब अरोड़ा को निकाला गया तो दवे ने बातचीत में हिस्सा नहीं लिया और अरोड़ा को अपना पक्ष रखने का मौका मिला था. यहां तक कि अरोड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की थी उसे बिना शर्त वापस भी ले लिया था.

एससीबीए से अपने निलंबन को चुनौती दी थी

अशोक अरोड़ा ने याचिका में कहा था कि एससीबीए की कार्यकारी समिति ने पिछले 8 मई को सचिव पद से निलंबित कर दिया था. कार्यकारी समिति ने एससीबीए के सहायक सचिव रोहित पांडे को सचिव की जिम्मेदारियों को संभालने संबंधी प्रस्ताव पारित किया था. एससीबीए ने ये फैसला अशोक अरोड़ा की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे को एससीबीए अध्यक्ष पद से हटाने और उनकी प्राथमिक सदस्यता समाप्त करने के लिए एक असाधारण बैठक बुलाई थी.

दफ्तर का राजनीतिक उपयोग करने का आरोप

अशोक अरोड़ा ने आरोप लगाया था कि दुष्यंत दवे राजनीतिक उद्देश्यों के लिए एससीबीए के दफ्तर का उपयोग कर रहे हें. हालांकि अशोक अरोड़ा की ओर से बुलाई गई असाधारण बैठक रद्द कर दी गई थी. एससीबीए ने 7 जून के अशोक अरोड़ा को नोटिस जारी कर पूछा था कि कथित रुप से आरोल लगाने के लिए उनके खिलाफ तीन सदस्यीय समिति की एकतरफा जांच क्यों न शुरु की जाए.



पहली बैठक से ही बाधा खड़ी करने की कोशिश

एससीबीए की कार्यकारी समिति ने अशोक अरोड़ा पर आरोप लगाया था कि समिति में शत्रुता का वातावरण पैदा करने, समिति के सामंजस्यपूर्ण कामकाज में बाधा पहुंचाना, एससीबीए के अधिकारियों के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग, एससीबीए के कोषाध्यक्ष को धमकाने, गैरकानूनी तरीके से एससीबीए की कार्यकारी समिति की बैठक बुलाना और बैठकों के मिनट्स तैयार नहीं करना शामिल है.

एससीबीए ने आरोप लगाया था कि अरोड़ा ने कार्यकारी समिति की 18 दिसंबर 2019 को हुई पहली बैठक से ही विरोधी और बाधा खड़ी करने का रुख अपना रहे हैं. एक बैठक में उन्होंने एससीबीए के अध्यक्ष पर चिल्लाया था. उन्होंने एससीबीए के अध्यक्ष दुष्यंत दवे को 'निर्लज्ज प्राणी' कहा था और उनके ख़िलाफ़ अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया था.

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील अशोक अरोड़ा की सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव पद से निलंबित करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है. जस्टिस मुक्ता गुप्ता की बेंच ने कहा कि अशोक अरोड़ा की याचिका में कोई मेरिट नहीं है.

सचिव पद से निलंबन के खिलाफ वकील अशोक अरोड़ा की याचिका खारिज
निलंबन नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ बताया था

कोर्ट ने पिछले 25 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. अशोक अरोड़ा ने कहा था कि वर्तमान कार्यकारिणी का कार्यकाल 10 दिसंबर को खत्म हो रहा है. अरोड़ा ने कहा कि नियम 35 के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन का जनरल हाउस ही उन्हें निलंबित कर सकता है. और वह भी दुर्व्यवहार की शिकायत की जांच के बाद उन्होंने कहा था कि उनका निलंबन नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है.

निलंबन में नियमों का उल्लंघन नहीं किया गया

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से वकील अरविंद निगम ने कहा था कि नियम 35 केवल किसी सदस्य के निष्कासन से जुड़ा है, इसलिए इस नियम की दलील नहीं दी जा सकती है. निगम ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की एग्जीक्यूटिव कमेटी की बैठक सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के नियम 14 के मुताबिक हुई थी. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के निर्वाचित पदों से किसी को निकालने की पहले भी परंपरा रही है. उन्होंने कहा था कि नैसर्गिक न्याय के सभी सिद्धांतों को पालन किया गया. जब अरोड़ा को निकाला गया तो दवे ने बातचीत में हिस्सा नहीं लिया और अरोड़ा को अपना पक्ष रखने का मौका मिला था. यहां तक कि अरोड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की थी उसे बिना शर्त वापस भी ले लिया था.

एससीबीए से अपने निलंबन को चुनौती दी थी

अशोक अरोड़ा ने याचिका में कहा था कि एससीबीए की कार्यकारी समिति ने पिछले 8 मई को सचिव पद से निलंबित कर दिया था. कार्यकारी समिति ने एससीबीए के सहायक सचिव रोहित पांडे को सचिव की जिम्मेदारियों को संभालने संबंधी प्रस्ताव पारित किया था. एससीबीए ने ये फैसला अशोक अरोड़ा की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे को एससीबीए अध्यक्ष पद से हटाने और उनकी प्राथमिक सदस्यता समाप्त करने के लिए एक असाधारण बैठक बुलाई थी.

दफ्तर का राजनीतिक उपयोग करने का आरोप

अशोक अरोड़ा ने आरोप लगाया था कि दुष्यंत दवे राजनीतिक उद्देश्यों के लिए एससीबीए के दफ्तर का उपयोग कर रहे हें. हालांकि अशोक अरोड़ा की ओर से बुलाई गई असाधारण बैठक रद्द कर दी गई थी. एससीबीए ने 7 जून के अशोक अरोड़ा को नोटिस जारी कर पूछा था कि कथित रुप से आरोल लगाने के लिए उनके खिलाफ तीन सदस्यीय समिति की एकतरफा जांच क्यों न शुरु की जाए.



पहली बैठक से ही बाधा खड़ी करने की कोशिश

एससीबीए की कार्यकारी समिति ने अशोक अरोड़ा पर आरोप लगाया था कि समिति में शत्रुता का वातावरण पैदा करने, समिति के सामंजस्यपूर्ण कामकाज में बाधा पहुंचाना, एससीबीए के अधिकारियों के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग, एससीबीए के कोषाध्यक्ष को धमकाने, गैरकानूनी तरीके से एससीबीए की कार्यकारी समिति की बैठक बुलाना और बैठकों के मिनट्स तैयार नहीं करना शामिल है.

एससीबीए ने आरोप लगाया था कि अरोड़ा ने कार्यकारी समिति की 18 दिसंबर 2019 को हुई पहली बैठक से ही विरोधी और बाधा खड़ी करने का रुख अपना रहे हैं. एक बैठक में उन्होंने एससीबीए के अध्यक्ष पर चिल्लाया था. उन्होंने एससीबीए के अध्यक्ष दुष्यंत दवे को 'निर्लज्ज प्राणी' कहा था और उनके ख़िलाफ़ अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया था.

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