नई दिल्ली: सफलता अच्छी शिक्षा और प्रशिक्षण पर ही निर्भर नहीं होती है. सफलता के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कड़ी मेहनत और हौसला . इस बात का प्रमाण हैं लाडो बाई. मध्यप्रदेश के झाबुआ की रहने वाली लाडो बाई ने 12 वर्ष की आयु से चित्रकारी शुरू की. इसके लिए उन्होंने कहीं कोई प्रशिक्षण नहीं लिया. उन्होंने बताया कि भोपाल में भारत भवन के निर्माण के दौरान वह कोयला जला कर मध्य प्रदेश की पिथौरा चित्रकारी करती थीं.
इसके लिए उनको प्रति दिन 5 रुपये दिहाड़ी मिलती थी. उस समय भारतीय कलाकार, चित्रकार, कवि और लेखक जगदीश स्वामीनाथन (जे स्वामीनाथन) ने लाडो बाई का मार्गदर्शन किया. उन्होंने लाडो बाई से उनके ऑफिस में उनके साथ चित्रकारी करने के लिए कहा. इसके बाद तो लाडो बाई की किस्मत ही बदल गई. पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने उनको पुरुस्कृत किया.
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हाल ही में दिल्ली में आयोजित हुई G20 सम्मेलन के लिए जब सौंदर्यकरण का काम हो रहा था, उस समय लाडो बाई ने दिल्ली की दीवारों पर पिथौर चित्रकारी की. इसके लिए उनको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पुरुस्कृत किया. लाडो बाई के परिवार में उनको मिलाकर 8 लोग हैं, जिसमें 4 बेटे और 3 बेटियां है. उन्होंने सभी को पिथोरा चित्रकारी सिखाई है . वर्तमान में सभी इस चित्रकला के जरिए अपना जीवनयापन कर रहे हैं.
प्रगति मैदान ने आयोजित प्रथम 'आत्मनिर्भर भारत उत्सव' में लाडो बाई ने अपनी चित्रकलाओं को प्रदर्शित किया है. इसमें हर साइज की चित्रकारी है। इनकी कीमत 500 से लेकर 15,000 रुपए तक है. वहीं जब कोई विदेशी इनको खरीदता है, तो इनकी कीमत कुछ बढ़ जाती हैं.
लाडो बाई ने बताया कि पिथौर चित्रकला केवल चित्रकारी नहीं है, बल्कि मध्यप्रदेश में आस्था का प्रतीक है।.ऐसा नहीं है कि इसको कभी भी बनाया जा सकता है. इसलिए वर्ष में एक बार जमीन पर मिट्टी का लेप करने के बाद उस पर अपने इष्ट पिथौरा बाबा की चित्रकारी की जाती है . इसमें चांद, सूरज, 12 घोड़े, सांप, बिच्छू और धरती माता की चित्र बनाई जाती हैं और पूजा की जाती है .इसके लिए वर्ष में एक दिन पूरे गांव के लोगों के लिए भोज की व्यवस्था की जाती हैं. इसके बाद वह वर्षभर ऐतिहासिक पिथौर पेंटिंग बनाती हैं. यह पूजन रक्षा बंधन के समय किया जाता हैं.
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