नई दिल्ली: हर महीने में दो प्रदोष पड़ते हैं, जिसमें पहला कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में होता है. प्रदोष व्रत का नाम दिन के अनुसार होता है. इस बार प्रदोष व्रत रविवार को है. रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है, जिसके बारे में आचार्य शिव कुमार शर्मा ने बताया कि रवि प्रदोष का व्रत रखने से यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है. साथ ही आयु का लाभ भी होता है और जीवन से समस्त दुखों का नाश होता है.
चैत्र कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 19 मार्च (रविवार) सुबह 8:07 बजे से
चैत्र कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि समाप्त: 20 मार्च (सोमवार) सुबह 4:55 तक
प्रदोष व्रत पूजा का शुभ समय: प्रदोष काल 06:31 PM से 08:54 PM तक
दूर होंगी बाधाएं: इस दिन ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जाप करते हुए, प्रदोष काल में शिवलिंग पर जलाभिषेक करें. साथ ही शिवलिंग पर 11 बेलपत्र अर्पित कर भगवान शिव से प्रार्थना करें. इससे विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त होंगी और जल्द ही विवाह का योग बनेगा.
व्रत में बरतें सावधानी: आचार्य शिव कुमार शर्मा ने बताया कि भगवान शिव का नाम आशुतोष है, जिसका अर्थ है शीघ्र प्रसन्न होने वाले. रवि प्रदोष के व्रत के दौरान कुछ सावधानियां बरतना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि भगवान शिव निष्ठा, लगन और सत्यता को ग्रहण करते हैं. जो व्यक्ति निश्चल होता है और श्रद्धा के साथ प्रदोष का व्रत रखता है, उसी का व्रत फलीभूत होता है. यह एक बेहद महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे करने से आध्यात्मिक उन्नति, गुरु और ईश्वर कृपा तो मिलती ही है, साथ ही धन-धान्य में भी वृद्धि होती है.
रवि प्रदोष व्रत का महत्व: प्रदोष व्रत को करने से समाज में प्रतिष्ठा, धन की प्राप्ति, मन को शांति मिलती हैं. इसके पीछे एक पौराणिक व्याख्यान है. एक बार की बात है कि चंद्रमा को तपेदिक रोग हो गया था. यह रोग असाध्य था, जिससे उनको मृत्यु तुल्य कष्ट हो रहा था. तब उन्होंने भगवान शिव की आराधना की, जिसपर भगवान शिव ने उनको संजीवनी मंत्र से पुनः स्वस्थ कर दिया. उस दिन सोमवार व त्रयोदशी तिथि थी. इसलिए प्रदोष व्रत को स्वास्थ्य व संपत्ति के लिए बेहद शुभ माना जाता है. साथ ही यह आरोग्य की प्राप्ति के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है.
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